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रघुपति राजीवनयन ,सोभातनु ...

भजन - रघुपति राजीवनयन ,सोभातनु ...

तुलसीदास हिन्दीके महान कवी थे, जिन्होंने रामचरितमानस जैसी महान रचना की ।


रघुपति राजीवनयन,सोभातनु कोटिमयन ॥

करुनारस-अयन चयन-रूप भूप, माई ।

देखो सखि अतुल छबि, संत, कंज-कानन-रबि,

गावत कल कीरति कबि-कोबिद समुदाई ॥

मज्जन करि सरजु-तीर ठाढ़े रघुबंस-बीर,

सेवत पद-कमल धीर निरमल चितलाई ।

ब्रह्ममंडली-मुनींद्रबृंद-मध्य इंदु-बदन-

राजत सुखसदन लोक-लोचन-सुखदाई ॥

बिथुरित सिररुह बरूथ कुंचित बिच सुमन-जूथ,

मनि जुत सिसु फनि-अनीक ससि-समीप आई ।

जनु सबीत दै अँकोर राखे जुग रुचिर मोर,

कुंडल-छबि निरखि चोर सकुचत अधिकाई ॥

ललित भ्रकुति तिलक भाल चिबुक अधर द्विजरसाल,

हास चारुतत, कपोल नासिका सुहाई ।

मधुकर जुग पंकज बिच सुक बिलोकि नीरज पैलरत

मधुप-अवलि मानो बीच कियो जाई ॥

सुंदर पट पीत बिसद, भ्राजत बनमाल उरसि,

तुलसिका प्रसून रचित बिबिध बिधि बनाई ।

तरु-तमाल अधबिच जनु त्रिबिध कीर पाँति,

रुचिर हेमजाल अन्तर परि ताते न उड़ाई ॥

संकर ह्रदि-पुंडरीक निसि बस हरि चंचरीक,

निर्ब्यलीक मानस-गृह संतत रहे छाई ॥

अतिसय आनंदमूल तुलसीदास सानुकूल,

हरन सकल सूल, अवध-मंडन रघुराई ॥

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Last Updated : December 15, 2007

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