हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास भजन|भजन संग्रह २|
सखि नीके कै निरखि कोऊ सुठ...

भजन - सखि नीके कै निरखि कोऊ सुठ...

तुलसीदास हिन्दीके महान कवी थे, जिन्होंने रामचरितमानस जैसी महान रचना की ।


सखि नीके कै निरखि कोऊ सुठि सुंदर बटोही ।

मधुर मूरति मदनमोहन जोहन जोग,

बदन सोभासदन देखिहौं मोही ॥१॥

साँवरे गोरे किसोर, सुर-मुनि-चित्त-चोर

उभय-अंतर एक नारि सोही ।

मनहुँ बारिद-बिधु बीच ललित अति

राजति तड़ित निज सहज बिछोही ॥२॥

उर धीरजहि धरि, जन्म सफल करि,

सुनहु सुमुखि ! जनि बिकल होही

को जाने कौने सुकृत लह्यो है लोचन लाहु,

ताहि तें बारहि बार कहति तोही ॥३॥

सखिहि सुसिख दई प्रेम-मगन भई,

सुरति बिसरि गई आपनी ओही ।

तुलसी रही है ठाढ़ी पाहन गढ़ी-सी काढ़ी,

कौन जाने कहा तै आई कौन की को ही ॥४॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 15, 2007

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP