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जागिये कृपानिधान जानराय ,...

भजन - जागिये कृपानिधान जानराय ,...

तुलसीदास हिन्दीके महान कवी थे, जिन्होंने रामचरितमानस जैसी महान रचना की ।


जागिये कृपानिधान जानराय, रामचन्द्र !

जननी कहै बार-बार, भोर भयो प्यारे ॥

राजिवलोचन बिसाल, प्रीति बापिका मराल,

ललित कमल-बदन ऊपर मदन कोटि बारे ॥

अरुन उदित, बिगत सर्बरी, ससांक-किरन ही,

दीन दीप-ज्योति मलिन-दुति समूह तारे ॥

मनहुँ ग्यान घन प्रकास बीते सब भव बिलास,

आस त्रास तिमिर-तोष-तरनि-तेज जारे ॥

बोलत खग निकर मुखर, मधुर, करि प्रतीति,

सुनहु स्त्रवन, प्रान जीवन धन, मेरे तुम बारे ॥

मनहुँ बेद बंदी मुनिबृन्द सूत मागधादि बिरुद-

बदत 'जय जय जय जयति कैटभारे' ॥

बिकसित कमलावली, चले प्रपुंज चंचरीक,

गुंजत कल कोमल धुनि त्यगि कंज न्यारे ।

जनु बिराग पाइ सकल सोक-कूप-गृह बिहाइ ॥

भृत्य प्रेममत्त फिरत गुनत गुन तिहारे,

सुनत बचन प्रिय रसाल जागे अतिसय दयाल ।

भागे जंजाल बिपुल, दुख-कदम्ब दारे ।

तुलसीदास अति अनन्द, देखिकै मुखारबिंद,

छूटे भ्रमफंद परम मंद द्वंद भारे ॥

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Last Updated : December 15, 2007

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