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कबहूँ मन बिस्त्राम न मान्...

भजन - कबहूँ मन बिस्त्राम न मान्...

तुलसीदास हिन्दीके महान कवी थे, जिन्होंने रामचरितमानस जैसी महान रचना की ।


कबहूँ मन बिस्त्राम न मान्यो ।

निसिदिन भ्रमत बिसारि सहज सुख, जहँ-तहँ इंद्रिन तान्यो ॥

जदपि बिषय सँग सह्यो दुसह दुख, बिषम-जाल अरुझान्यो ।

तदपि न तजत मूढ़, ममता बस, जानतहूँ नहिं जान्यो ॥

जन्म अनेक किये नाना बिधि कर्म कीच चित सान्यो ।

होइ न बिमल बिबेक नीर बिनु बेद पुरान बखान्यो ॥

निज हित नाथ पिता गुरु हरि सों हरषि ह्रदय नहिं आन्यो ।

तुलसीदास कब तृषा जाय सर खनतहिं जनम सिरान्यो ॥

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Last Updated : December 15, 2007

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