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श्रीभुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्र

श्रीभुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्र

स्तोत्र (Stotra) का अर्थ है देवताओं की स्तुति में लिखे गए भजन या प्रार्थनाएँ।


पार्वत्युवाच-

त्रिलोकेश! जगन्नाथ ! देवदेव! सदाशिव ! ।

त्वत् प्रसादान्महादेव ! श्रुतं तन्त्रं पृथग्विधम् ॥२॥

श्री पार्वती ने कहा - हे त्रिलोकेश ! हे जगन्नाथ ! हे देवदेव ! हे सदाशिव ! हे महादेव ! आपके प्रसाद से नाना प्रकार के तन्त्रों का मैं श्रवण कर चुकी हूँ।

इदानीं वर्तते श्रद्धागमशास्त्रे ममैव हि ।

यदि प्रसन्नो भगवन् ! ब्रूह्युपायं महोदयम् ॥३॥

इस समय मुझमें आगमशास्त्र में श्रद्धा हो रही है। हे भगवन् । यदि आप प्रसन्न हैं , तो मुझे महोदय लाभ के उपाय को बतावें ।

नानातन्त्रे महादेव ! श्रुतं नानाविधं मतम् ।

कृतार्थास्मि कृतार्थास्मि कृतकार्यास्मि शङ्कर ! ॥४॥

हे महादेव ! नाना तन्त्रों में नाना प्रकार के मतों का मैंने श्रवण किया है। हे शङ्कर ! इससे मैं कृत-कृतार्थ बन गयी हूँ एवं कृतकार्य भी बनी हूँ।

प्रसन्ने शङ्करे नाथ! किं भयं जगतीतले ।

विना शिव-प्रसादेन न सिध्यति कदाचन ।

इदानीं श्रोतुमिच्छामि भुवनाया रहस्यकम् ॥५॥

हे नाथ ! शङ्कर प्रसन्न होने पर इस पृथिवीतल पर कैसा भय ? कोई भय नहीं है । शिव के अनुग्रह के बिना कदापि कुछ सिद्ध नहीं होता । सम्प्रति मैं भुवनेश्वरी के रहस्य को सुनने की इच्छा कर रही हूँ ।

श्री शङ्कर उवाच -

शृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि गुह्याद्गुह्यतरं परम् ।

पठित्वा परमेशानि मन्त्रसिद्धिमवाप्नुयात् ॥६॥

श्री शङ्कर ने कहा - हे देवि ! मैं गुह्य से गुह्यतर श्रेष्ठ रहस्य को बता रहा हूँ , श्रवण करें । हे महेशानि ! इसे पाठ कर (साधक) मन्त्र-सिद्धि का लाभ कर सकता है ।

अथ श्रीभुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्रम्

ॐ आद्या श्रीभुवना भव्या भवबन्ध-विमोचनी ।

नारायणी जगद्धात्री शिवा विश्वेश्वरी परा ॥७॥

गान्धारी परमा विद्या जगन्मोहनकारिणी ।

सुरेश्वरी जगन्माता विश्वमोहनकारिणी ॥८॥

भुवनेशी महामाया देवेशी हरवल्लभा ।

कराला विकटाकारा महाबीज-स्वरूपिणी ॥९॥

त्रिपुरेशी त्रिलोकेशी दुर्गा त्रिभुवनेश्वरी ।

माहेश्वरी शिवाराध्या शिव-पूज्या सुरेश्वरी ॥१०॥

नित्या च निर्मला देवी सर्वमङ्गल-कारिणी ।

सदाशिव-प्रिया गौरी सर्वमङ्गल शोभिनी ॥११॥

शिवदा सर्वसौभाग्य-दायिनी मङ्गलात्मिका ।

घोरदंष्ट्रा-करालास्या मधु-मांस-बलि-प्रिया ॥१२॥

सर्वदुःख-हरा चण्डी सर्वमङ्गलकारिणी ।

पार्वती तारिणी देवी भीमा भय-विनाशिनी ॥१३॥

त्रैलोक्य-जननी तारा तारिणी तरुणा क्षमा ।

भक्तिमुक्तिप्रदा भुक्तिप्रदा शङ्कर-वल्लभा ॥१४॥

उमा गौरी प्रिया साध्वीप्रिया च वारुणप्रिया ।

भैरवी भैरवानन्ददायिनी भैरवात्मिका ॥१५॥

ब्रह्मपूज्या च ब्रह्माणी रुद्राणी रुद्रपूजिता ।

रुद्रेश्वरी रुद्ररूपा त्रिपुटा त्रिपुरा मता ॥१६॥

वसुदा नाथरूपा च विश्वनाथ-प्रपूजिता ।

आनन्दरूपिणी श्यामा रघुनाथ-वरप्रदा ॥१७॥

आनन्दार्णवमग्ना सा राजराजेश्वरी मता ।

भवानी च भवानन्द-दायिनी भवगोहिनी ॥१८॥

सुरराजेश्वरी चण्डी प्रचण्डा घोरनादिनी ।

घनश्यामा घनवती महाघन-निनादिनी ॥१९॥

घोरजिह्वा ललजिह्वा देवेशी नगनन्दिनी ।

त्रैलोक्य-मोहिनी विश्व-मोहिनी विश्वरूपिणी ॥२०॥

षोडशी त्रिपुरा ब्रह्मदायिनी ब्रह्मदाऽनघा ।

इत्येतत् परमं ब्रह्म-स्तोत्रं परमकारणम् ॥२१॥

श्रीभुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्र संक्षिप्त भावार्थ

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श्रीभुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्र फलश्रुति

यः पठेत् परया भक्त्या जीवन्मुक्तः स एव हि ।

ब्रह्माद्या देवताः सर्वा मुनयस्तन्त्रकोविदाः ।

पठित्वा परया भक्त्या ब्रह्मसिद्धिमवाप्नुयात् ॥२२॥

जो परम भक्ति के साथ इसका पाठ करता है , वही जीवन्मुक्त हो जाता है । ब्रह्मादि देवता , समस्त मुनिगण , तन्त्रवित् पण्डितगण , परम भक्ति के साथ इसका पाठ कर , ब्रह्म-सिद्धि का लाभ कर सकते हैं ।

इति मुण्डमालातन्त्रे पार्वतीश्वरसंवादे नवमपटालान्तर्गतं भुवनेश्वरीस्तोत्रम् च श्रीभुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।

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Last Updated : August 14, 2025

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