पार्वत्युवाच-
त्रिलोकेश! जगन्नाथ ! देवदेव!
सदाशिव ! ।
त्वत् प्रसादान्महादेव ! श्रुतं
तन्त्रं पृथग्विधम् ॥२॥
श्री पार्वती ने कहा - हे त्रिलोकेश ! हे जगन्नाथ !
हे देवदेव ! हे सदाशिव ! हे महादेव ! आपके प्रसाद से नाना प्रकार के तन्त्रों का
मैं श्रवण कर चुकी हूँ।
इदानीं वर्तते
श्रद्धागमशास्त्रे ममैव हि ।
यदि प्रसन्नो भगवन् !
ब्रूह्युपायं महोदयम् ॥३॥
इस समय मुझमें आगमशास्त्र में
श्रद्धा हो रही है। हे भगवन् । यदि आप प्रसन्न हैं ,
तो मुझे महोदय लाभ के उपाय को
बतावें ।
नानातन्त्रे महादेव ! श्रुतं
नानाविधं मतम् ।
कृतार्थास्मि कृतार्थास्मि
कृतकार्यास्मि शङ्कर ! ॥४॥
हे महादेव ! नाना तन्त्रों में
नाना प्रकार के मतों का मैंने श्रवण किया है। हे शङ्कर ! इससे मैं कृत-कृतार्थ बन
गयी हूँ एवं कृतकार्य भी बनी हूँ।
प्रसन्ने शङ्करे नाथ! किं भयं
जगतीतले ।
विना शिव-प्रसादेन न सिध्यति
कदाचन ।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि भुवनाया
रहस्यकम् ॥५॥
हे नाथ ! शङ्कर प्रसन्न होने पर इस पृथिवीतल
पर कैसा भय ? कोई भय नहीं है । शिव के अनुग्रह के बिना कदापि कुछ
सिद्ध नहीं होता । सम्प्रति मैं भुवनेश्वरी के रहस्य को सुनने की इच्छा कर रही हूँ ।
श्री शङ्कर उवाच -
शृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि
गुह्याद्गुह्यतरं परम् ।
पठित्वा परमेशानि
मन्त्रसिद्धिमवाप्नुयात् ॥६॥
श्री शङ्कर ने कहा - हे देवि ! मैं गुह्य से
गुह्यतर श्रेष्ठ रहस्य को बता रहा हूँ , श्रवण करें । हे महेशानि ! इसे
पाठ कर (साधक) मन्त्र-सिद्धि का लाभ कर सकता है ।
अथ श्रीभुवनेश्वरी शतनाम
स्तोत्रम्
ॐ आद्या श्रीभुवना भव्या
भवबन्ध-विमोचनी ।
नारायणी जगद्धात्री शिवा
विश्वेश्वरी परा ॥७॥
गान्धारी परमा विद्या
जगन्मोहनकारिणी ।
सुरेश्वरी जगन्माता
विश्वमोहनकारिणी ॥८॥
भुवनेशी महामाया देवेशी
हरवल्लभा ।
कराला विकटाकारा
महाबीज-स्वरूपिणी ॥९॥
त्रिपुरेशी त्रिलोकेशी दुर्गा
त्रिभुवनेश्वरी ।
माहेश्वरी शिवाराध्या
शिव-पूज्या सुरेश्वरी ॥१०॥
नित्या च निर्मला देवी
सर्वमङ्गल-कारिणी ।
सदाशिव-प्रिया गौरी सर्वमङ्गल
शोभिनी ॥११॥
शिवदा सर्वसौभाग्य-दायिनी
मङ्गलात्मिका ।
घोरदंष्ट्रा-करालास्या
मधु-मांस-बलि-प्रिया ॥१२॥
सर्वदुःख-हरा चण्डी
सर्वमङ्गलकारिणी ।
पार्वती तारिणी देवी भीमा
भय-विनाशिनी ॥१३॥
त्रैलोक्य-जननी तारा तारिणी
तरुणा क्षमा ।
भक्तिमुक्तिप्रदा भुक्तिप्रदा
शङ्कर-वल्लभा ॥१४॥
उमा गौरी प्रिया साध्वीप्रिया च
वारुणप्रिया ।
भैरवी भैरवानन्ददायिनी
भैरवात्मिका ॥१५॥
ब्रह्मपूज्या च ब्रह्माणी
रुद्राणी रुद्रपूजिता ।
रुद्रेश्वरी रुद्ररूपा त्रिपुटा
त्रिपुरा मता ॥१६॥
वसुदा नाथरूपा च
विश्वनाथ-प्रपूजिता ।
आनन्दरूपिणी श्यामा
रघुनाथ-वरप्रदा ॥१७॥
आनन्दार्णवमग्ना सा
राजराजेश्वरी मता ।
भवानी च भवानन्द-दायिनी
भवगोहिनी ॥१८॥
सुरराजेश्वरी चण्डी प्रचण्डा
घोरनादिनी ।
घनश्यामा घनवती महाघन-निनादिनी
॥१९॥
घोरजिह्वा ललजिह्वा देवेशी
नगनन्दिनी ।
त्रैलोक्य-मोहिनी विश्व-मोहिनी
विश्वरूपिणी ॥२०॥
षोडशी त्रिपुरा ब्रह्मदायिनी
ब्रह्मदाऽनघा ।
इत्येतत् परमं ब्रह्म-स्तोत्रं
परमकारणम् ॥२१॥
श्रीभुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्र संक्षिप्त भावार्थ
आद्या , श्रीभुवना , भव्या , भवबन्ध-विमोचनी , नारायणी , जगद्धात्री , शिवा , विश्वेश्वरी , परा , गान्धारी , परमा-विद्या , जगन्मोहन-कारिणी , सुरेश्वरी , जगन्माता , विश्वमोहनकारिणी , भुवनेशी , महामाया , देवेशी , हरवल्लभा , कराला , विकटाकारा , महाबीजस्वरूपिणी , त्रिपुरेशी , त्रिलोकेशी , दुर्गा , त्रिभुवनेश्वरी , माहेश्वरी , शिवाराध्या , शिवपूज्या , सुरेश्वरी , नित्या , निर्मला , देवी , सर्वमङ्गलकारिणी , सदाशिव-प्रिया , गौरी , सर्वमङ्गल शोभिनी , शिवदा , सर्वसौभाग्य दायिनी , मङ्गलात्मिका , घोरदंष्ट्रा , करालास्या , मधुमांसबलिप्रिया , सर्वदुःखहरा , चण्डी , सर्वमङ्गलकारिणी , पार्वती , तारिणीदेवी , भीमा , भयविनाशिनी , त्रैलोक्य-जननी , तारा , तारिणी , तरुणा , क्षमा , भक्ति-मुक्तिप्रदा , भुक्तिप्रदा , शङ्कर-वल्लभा , उमा , गौरीप्रिया , साध्वीप्रिया , वारुणप्रिया , भैरवी , भैरवानन्द-दायिनी , भैरवात्मिका , ब्रह्मपूज्या , ब्रह्माणी , रुद्राणी , रुद्रपूजिता , रुद्रेश्वरी , रुद्ररूपा , त्रिपुटा , त्रिपुरा , वसुदा , नाथरूपा , विश्वनाथ-प्रपूजिता , आनन्दरूपिणी , श्यामा , रघुनाथवरप्रदा , आनन्दार्णवमग्ना , राजराजेश्वरी , भवानी , भवानन्ददायिनी , भवगोहिनी , सुरराजेश्वरी , चण्डी , प्रचण्डा , घोरनादिनी , घनश्यामा , घनवती , महाघननिनादिनी , घोरजिह्वा , ललजिह्वा , देवेशी , नगनन्दिनी , त्रैलोक्यमोहिनी , विश्वमोहिनी , विश्वरूपिणी , षोडशी , त्रिपुरा , ब्रह्मदायिनी , ब्रह्मदा , अनद्या । यह परम कारण श्रेष्ठ
ब्रह्मस्तोत्र इस प्रकार है ।
श्रीभुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्र फलश्रुति
यः पठेत् परया भक्त्या
जीवन्मुक्तः स एव हि ।
ब्रह्माद्या देवताः सर्वा मुनयस्तन्त्रकोविदाः
।
पठित्वा परया भक्त्या
ब्रह्मसिद्धिमवाप्नुयात् ॥२२॥
जो परम भक्ति के साथ इसका पाठ
करता है , वही जीवन्मुक्त हो जाता है । ब्रह्मादि देवता , समस्त मुनिगण , तन्त्रवित् पण्डितगण , परम भक्ति के साथ इसका पाठ कर , ब्रह्म-सिद्धि का लाभ कर सकते
हैं ।
इति मुण्डमालातन्त्रे
पार्वतीश्वरसंवादे नवमपटालान्तर्गतं भुवनेश्वरीस्तोत्रम् च श्रीभुवनेश्वरी शतनाम
स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।