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दुर्मुखः
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دُرمُکھ
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ଦୁର୍ମୁଖ
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দুর্মুখ
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દુર્મુખ
Meanings: 6; in Dictionaries: 1
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दुर्मुख
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दुर्मूख
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ਦੁਰਮੁਖ
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giber
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hard-featured
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hot-mouthed
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black-mouthed
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foul-mouthed
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cuttle
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ribald
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ineloquent
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opprobrious
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scurrilous
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अपसृप्
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हरिद्रागणेशकवचम् - ईश्वर उवाच । श्रृणु वक्ष...
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते. Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.
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गणेशकवचम् - ध्यायेत् सिंहगतं विनायकमम...
‘कवच‘ स्तोत्राचे पठण केल्याने देवी/देवता अदृष्य रूपात उपासकांना सुरक्षात्मक कवच प्रदान करतात.
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खंड ६ - अध्याय २९
मुद्गल पुराणात श्री गणेशाच्या आठ अवतारांचे वर्णन आहे.
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भृगुसूत्रम् - तृतीयोऽध्यायः
‘ भृगुसूत्र’ नावे या ग्रंथात जन्मपत्रिकेचे फळ उत्तम प्रकारे अचूक कथन केले आहे.
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कृतयुगसन्तानः - अध्यायः ५४५
लक्ष्मीनारायणसंहिता
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खण्डः १ - अध्यायः ०८२
विष्णुधर्मोत्तर पुराण एक उपपुराण आहे. अधिक माहितीसाठी प्रस्तावना पहा.
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किष्किंधाकांडम् - काव्य २५१ ते ३००
किष्किन्धाकाण्डम् या प्रकरणातील श्लोकातील चवथे अक्षर श्री रा म ज य रा म ज य ज य रा म असे आहे.
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उत्तरकांडम् - काव्य १ ते ५०
उत्तरकाण्डम् या प्रकरणातील श्लोकातील सातवे अक्षर श्री रा म ज य रा म ज य ज य रा म असे आहे.
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पातालखण्डः - अध्यायः ४७
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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बृहत्संहिताः - अध्याय ८
’बृहत्संहिता’ ग्रंथात वास्तुविद्या, भवन निर्माण कला, वायुमंडळाची रचना, वृक्ष आयुर्वेद इ. विषय अंतर्भूत आहेत.
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जातकपारिजात - प्रथमद्वितीयभावफलाध्यायः
दैवज्ञश्रीवैद्यानाथरचित जातक पारिजात या संस्कृत ग्रंथात सूर्य फल, नवग्रह फल, योग पिहित, भाव विचार, विषाख्य कन्या, राज्ययोग, आयुर्बल, व्यत्ययविचार, अरिष्टादि योग आणि सर्व प्रकारचे अरिष्ट नाश होणारे उपाय वर्णन केले आहेत.
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कथाकल्पतरू - स्तबक ५ - अध्याय १०
'कथा कल्पतरू' या ग्रंथात चार वेद, सहा शास्त्रे, अठरा पुराणे, तसेच रामायण, महाभारत व श्रीमद्भागवत हे हिंदू धर्मिय वाङमय ओवीरूपाने वर्णिलेले आहे.
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हरिवंश पर्व - तृतीयोऽध्यायः
महर्षी व्यासांनी रचलेला हा महाभारताचा पुरवणी ग्रंथ आहे.
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