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मांडवी
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কুশধ্বজ
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कुशध्वज
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மாண்டவி
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మాండవీ
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ਮਾਂਡਵੀ
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ମାଣ୍ଡବୀ
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മാണ്ടവി
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مانڈوی
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مانٛڈوی
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માંડવી
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ಮಾಂಡವೀ
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वेल मांडवी जाणें
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वेल मांडवी वाढणें
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குஷ்த்வஜ்
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ਕੁਸ਼ਧਵਜ
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કુશધ્વજ
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കുശധ്വജന്
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कुशध्वजः
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کُھشدوج
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କୁଶଧ୍ୱଜ
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पंच महासरोवरें
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संत निवृत्तीनाथांचे अभंग - चेतवि चेतवि सावधान जिवीं ...
संत निवृत्तीनाथांचे अभंग संत निवृत्तीनाथ हे संत ज्ञानेश्वर महाराजांचे थोरले बंधू होत.सर्वसामान्य जनतेला संस्कृत भाषेतील भगवद्गीता समजत नव्हती म्हणून निवृत्तीनाथांनी ज्ञानेश्वरांना प्राकृत(मराठी)भाषेत लिहीण्यास सांगितली, तीच "ज्ञानेश्वरी". The eldest, Nivrutti, joined the nath sect and became Nivruttinath. He also become the guru of Dnyaneshwar. He, at the age of fourteen, instructed Dnyaneshwar, who was twelve, to write a commentry on the Bhagavad Gita
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न्हंय
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कुलदैवत - घाणा
मराठीतील लोकगीतांना मातीचा वास आहे, कुळाचे ओज आहे, कारुण्याची चाल आहे, सुगरणीचा साज आहे आणि घरंदाज घरमालकिणीचा साटोपही आहे.
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एकनाथी भागवत - श्लोक १५ वा
नाथमहाराजांचा हा प्रासादिक ग्रंथ परमपूज्य असल्याने यावर भक्तजनांची आदरबुद्धी आहे.
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मांडव
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मांडौ
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पणजी
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संग्राहिका - सौ. यशोदा पाटील
लग्नात मुली, स्त्रीया, आजीबाई मोठ्या उत्साहाने गाणी म्हणत.
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लग्नातील गाणी - संग्रह ४
लग्नात मुली, स्त्रीया,आजीबाई मोठ्या उत्साहाने गाणी म्हणत.
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ओवीगीते - संग्रह ५
सासर-माहेरविषयींच्या कल्पना ओवी गीतांतून गाऊन सामान्य स्त्रियांनी असामान्य जग उभे केले आहे.
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सीरध्वज
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ओवीगीते - संग्रह ८०
सासर-माहेरविषयींच्या कल्पना ओवी गीतांतून गाऊन सामान्य स्त्रियांनी असामान्य जग उभे केले आहे.
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वेल - मी प्रभुराया! त्वदंगणांती...
साने गुरूजींचे संपूर्ण नाव - पांडुरंग सदाशिव साने
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अध्याय ६९ वा - श्लोक ३१ ते ३५
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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अक्षरांची लेणी - देवाचे महत्त्व
लोकगीते म्हणजे लोकांच्या मानसिकतेची निर्मिती. ती कधीच जुनी होत नाही, उलट त्यातील गोडवा वाढतच जातो.
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वैशाख वद्य १२
दिन विशेष - वर्षातील प्रत्येक दिवसाचे ऐतिहासीक महत्व.
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अध्याय छ्त्तीसावा - श्लोक १ ते ५०
श्रीधरस्वामी रचित ’ श्रीरामविजय ’ ग्रंथाचे पारायण केल्याने जीवनातील वनवास संपून सुख प्राप्त होते .
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केशवचैतन्यकथातरु - अध्याय दुसरा
वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते.
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पुष्कल
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सीताकल्याण
विविध कवींच्या प्राचीन कविता शके १८२७ मध्ये श्री. भावे यांनी प्रसिद्ध केल्या.
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अध्याय आठवा - श्लोक १५१ ते २००
श्रीधरस्वामी रचित ’ श्रीरामविजय ’ ग्रंथाचे पारायण केल्याने जीवनातील वनवास संपून सुख प्राप्त होते.
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वीरेश्वरकृत
विविध कवींच्या प्राचीन कविता शके १८२७ मध्ये श्री. भावे यांनी प्रसिद्ध केल्या.
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अध्याय सहावा - समास सहावा
श्रीसद्गुरुलीलामृत
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भाग २ - लीळा ३०१ ते ३१०
प्रस्तुतचे भागात श्रीचक्रधरस्वामींचे सेंदुरणीस आगमन झाल्यानंतर भटोबासांस ईश्वरप्रतीत होऊन स्वामींचे खडकुलीस प्रयाण होईपर्यंतचा इतिवृतांत आला आहे.
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शिवाजी महाराजांचा पोवाडा - शिवगौरव
इतिहासाचे साधन म्हणून पोवाड्यांचे महत्व विशेष आहे. पोवाडे हे गीत-नाट्यरूप असल्यामुळे त्यात मनोरंजन व प्रचार यांचा मेळ घातला जातो.
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स्त्रीजीवन - मुलगी
मुलाला पाळण्यात हलवताना, जात्यावर दळण दळताना, झोपाळ्यावर झोके घेताना स्त्रियांना ओव्या, गाणी आपोआप स्फुरतात, त्यातीलच काही ओव्यांचा हा संग्रह.
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केशवचैतन्यकथातरु - अध्याय पहिला
वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते.
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केशवचैतन्यकथातरु - अध्याय चवथा
वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते.
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