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श्रीकृष्ण माधुरी - पद १९१ से १९५

`श्रीकृष्ण माधुरी` पदावलीके संग्रहमें भगवान् श्रीकृष्णके विविध मधुर वर्णन करनेवाले पदोंका संग्रह किया गया है, तथा मुरलीके मादकताका भी सरस वर्णन है ।


१९१.
राग नट.
मुरली भई सोति बजाइ ।
कहूँ बन मैं रहति डारी, ताहि यह सुघराइ ॥१॥
बचनही हरि रिझै लीन्हें, अधर पूरत नाद ।
दिनै दिन अधिकान लागी, अब करैगी बाद ॥२॥
सुनौ री इहि दूरि कीजै, यहै करौ बिचार ।
अबहिं तैं करनी करी यह बहुरी कहाँ लगार ॥३॥
ढंग याके भले नाही, बहुत गईं डराइ ।
सूर स्याम सुजान रीझे, देह गति बिसराइ ॥४॥

१९२.
मुरली दूरि बनि है ।
अबही तैं ऐसे ढँग याके, बहौरि काहि यह गनि है ॥१॥
लागी यह कर पल्लव बैठन, दिन दिन बाढति जाति ।
अबही तैं तुम सजग होहु री, मैं जु कहति अकुलाति ॥२॥
यह ब्रज मैं नहिं भली बात है, देखौ हृद बिचारि ।
सूर स्याम वाही के ह्वै गए, सब ब्रजनारि बिसारि ॥३॥

१९३.
राग बिहागरौ
अबही ते हम सबनि बिसारी ।
ऐसे बस्य भए हरि वाके, जाति न दसा बिचारी ॥१॥
कबहूँ कर पल्लव पै राखत, कबहुँ अधर लै धारी ।
कबहुँ लगाइ लेत हिरदै सौं, नेकहुँ करत न न्यारी ॥२॥
मुरली स्याम किए बस अपने, जे कहियत गिरिधारी ।
सूरदास प्रभु कैं तन मन धन बाँस बँसुरिया प्यारी ॥३॥

१९४.
राग रामकली
मुरली भई स्याम तन मन धन ।
अब वाकौं तुम दूरि करावति, जाके बस्य भए नँद नंदन ॥१॥
कबहुँ अधर, कबहुँ राखत कर, कबहुँ गावत हैं हिरदै धरि ।
कबहुँ बजाइ मगन आपुन ह्वै, लटकि रहत मुखधारि तापर ढरि ॥२॥
ऐसे पगे रहत हैं जासौं, ताहि करौ कैसैं तुम न्यारी ।
सूर स्याम हम सबनि बिसारी, वह कैसे अब जाति बिसारी ॥३॥

१९५.
राग सूहौ
मुरली हरि कौं भावे री ।
सदा रहति मुखही सौं लागी, नाना रंग बजावै री ॥१॥
छहौ राग, छत्तीसौ रागिनि इक इक नीकैं गावैं री ।
जैसेहि मन रीझत है हरि कौ, तैसिहि भाँति रिझावैं ॥२॥
अधरन कौं अमृत पुनि अँचवति, हरि के मनहि चुरावै री ।
गिरधर कौं अपने बस कीन्हें, नाना नाच नचावै री ॥३॥
उन कौ मन अपनौ करि लीन्हौं, भरि-भरि बचन सुनावै री ।
सूरज प्रभु ढिग तैं कहि बाकौ ऐसौ कौन टरावै री ॥४॥

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Last Updated : September 06, 2011

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