हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|सूरदास भजन|श्रीकृष्ण माधुरी|

श्रीकृष्ण माधुरी - पद ३६ से ४०

इस पदावलीके संग्रहमें भगवान् श्रीकृष्णके विविध मधुर वर्णन करनेवाले पदोंका संग्रह किया गया है, तथा मुरलीके मादकताका भी सरस वर्णन है ।


३६.
राग कल्यान
सुंदर स्याम, सुँदर बर लीला,
सुंदर बोलत बचन रसाल।
सुंदर चारु कपोल बिराजत,
सुंदर उर जु बनी बनमाल ॥१॥
सुंदर चरन, सुँदर है नख मनि,
सुंदर कुंडल हेम जराल।
सुंदर मोहन नैन चपल किए,
सुंदर ग्रीवा बाहु बिसाल ॥२॥
सुंदर मुरली मधुर बजावत, सुंदर है मोहन गोपाल।
सूरदास जोरी अति राजति,
ब्रज कौं आवत सुंदर चाल ॥३॥


३७.
सुंदर स्याम, सखा सब सुंदर, सुन्दर बेष धरैं, गोपाल।
सुंदर पथ, सुंदर गति आवन, सुंदर मुरली शब्द रसाल ॥१॥
सुंदर लोग, सकल ब्रज सुंदर, सुंदर हलधर, सुंदर चाल।
सुंदर बचन, बिलोकनि सुंदर, सुंदर गुन, सुंदर बनमाल ॥२॥
सुंदर गोप, गाइ अति सुंदर, सुंदरि गन सब करति बिचार।
सूर स्याम सँग सब सुख सुंदर, सुंदर भक्त हेत अवतार ॥३॥


३८.
राग बिलावल
सुंदर ढोटा कौन कौ, सुंदर मृदु बानी।
कहि समुझायौ ग्वालिनी, जायौ नँदरानी ॥१॥
सुंदर मूरति देखि कैं घन घटा लजानी।
सुंदर नैनन हरि लियौ कमलन कौ पानी ॥२॥                
सुंदरता तिहु लोक की जसुमति ब्रज आनी।
सूरदास पुर मैं भई सुंदर रजधानी ॥३॥


३९.
राग गौरी
देखि सखी ! बन तैं जु बने ब्रज आवत हैं नँदनंदन।
सिखी सिखंड सीस, मुख मुरली, बन्यौ तिलक, उर चंदन ॥१॥
कुटिल अलक मुख, चंचल लोचन, निरखत अति आनंदन।
कमल मध्य मनु द्वै खग खंजन बँधे आइ उडि फंदन ॥२॥
अरुन अधर छबि दसन बिराजत, जब गावत कल मंदन।
मुक्ता मनौ नीलमनियमपुट, धरे भुरकि बर बंदन ॥३॥
गोप बेष गोकुल गो चारत हैं हरि असुर निकंदन।
सूरदास प्रभु सुजस बखानत नेति नेति स्त्रुति छंदन ॥४॥

४०.
राग सारंग
सीतल छैयाँ स्याम हैं ठाढे,
जानि भोजन की बिरियाँ।
बाम भुजाहि सखा अँस दीन्हे,
दच्छिन कर द्रुम डरियाँ ॥१॥
गाइनि घेरि, टेरि बलरामै,
ल्यावौ करत अबिरियाँ।
सूरदास प्रभु बैठि कदम तर,
खात दूध की खिरियाँ ॥२॥

श्याम सुन्दर है,उनकी लीला ( भी ) परम सुन्दर है; वे रसमय सुन्दर वाणी बोलते है । उनके अत्यंत मनोहर सुन्दर कपोल चकम रहे हैं, सुंदर वक्षस्थलपर वनमाला सजी है । चरण सुन्दर हैं, उनमें मणिके समान नख बडे ही भले लगते है; ( कानोंमे ) स्वर्णके जडाऊ कुण्डल अतीव सुन्दर है; सुन्दर मोहनने अपने नेत्र चपल कर रखे है, गर्दन सुन्दर है और भुजाएँ लम्बी हैं । वे सुंदर मुरलीके मधुर स्वरमे बजाते है, मोहन ( मोहनेवाले ) गोपाल ( स्वयं बडे ही ) सुन्दर है । सूरदासजी कहते है- ( दोनो भाइयोंकी ) जोडी अत्यन्त शोभित हो रही है, जो सुन्दर गतिसे व्रजकी ओर ( वनसे ) आ रहे हैं ॥३६॥

श्यामसुंदर तो सुन्दर हैं ही, ( उनके ) सभी सखा सुन्दर है और इतने सौन्दर्यपर भी उन्होंने गोपाल ( ग्वालिये ) का वेष धारण कर रखा है । सुन्दर मार्ग, सुन्दर गतिसे आना, सुन्दर मुरली, जिसके शब्द रसमय हैं । व्रजके सभी लोग सुन्दर है, पूरा व्रज सुन्दर है, श्रीबलराम सुन्दर है और उनकी गति भी सुन्दर है । वाणी सुन्दर, देखनेकी छटा सुन्दर, सुन्दर सूतमें गुथी वनमाला सुन्दर है । गोप सुंदर तथा गाये अत्यंत सुन्दर है, व्रजकी सुन्दरियोंका समुदाय ( श्यामकी इसी सुन्दरताका ) विचार किया करता है । सूरदासजी कहते है कि श्यामसुन्दरके साथ ( ही ) सब ( प्रकारके ) सुख सुन्दर है ( और ) सुन्दर भक्तोंके लिये ही उनका ( यह ) सुन्दर अवतार है ॥३७॥

( किसी गोपीने पूछा- ) ’ यह सुन्दर पुत्र किसका है, जिसकी वाणी ( इतनी ) कोमल तथा सुन्दर है? ’ तब एक गोपीने ( भली प्रकार ) वर्णन करके समझाया कि इन्हें श्रीनन्दरानीने जन्म दिया है । ( यह सुनकर प्रश्न करनेवाली गोपी कहने लगी-अरी ! ) इनके सुन्दर स्वरुपको देखकर बादलोकीं घटा ( समूह ) भी लज्जित हो गयी ( और इनके ) सुन्दर नेत्रोंने कमलोंकी शोभा भी हरण कर ली है । तीनो लोकोंकी सुन्दरता यशोदाजीने व्रजमे लाकर एकत्र कर दी है । सूरदासजी कहते है कि इसीसे ( इस ) नगरमें सुंदर राजधानी हुई है ॥३८॥

( गोपिका कहती है- ) सखी, देखो ! नन्दनन्दन वनसे सजे हुए व्रज आ रहे हैं । ( उनके ) मस्तकपर मयूरपिच्छ है, मुखसे मुरली लगी है, बडा सुन्दर तिलक है और वक्षःस्थल चन्दनचर्तित है । मुखपर कुटिल- टेढी अलके बिथुरी हुई है, चञ्चल नेत्र है, जो देखते ही अत्यधिक आनन्द देनेवाले हैं। ऐसा लगता है मानो कमलके बीचमें दो खञ्जन पक्षी उडते हुए आकर जालके फंदेमे बँध गये है । जब ( श्यामसुंदर ) सुंदर मन्दस्वरमे गाने लगते है, तब ( आपके ) लाल-लाल ओठोंकी दाँतोपर पडती हुई आभा ऐसी भली लगती है मानो नीलमणि ( नीलम ) के सम्पुट ( डिब्बे ) में सिंदूर छिडककर मोती रखे गये हो । सूरदासजी कहते हैं कि जो श्रीहरि गोपका वेष धारण करके गोकुलमे गाये चरा रहे है, वे ही असुरोंके विनाशक ( भी ) है । ( यही नही, ) वेद मेरे उन स्वामीका सुयश मन्त्रोद्वारा ’ नेति-नेति ’( ऐसे नही; वैसे नही ) कहकर वर्णन करते है ॥३९॥

भोजनका समय जानकर श्यामसुन्दर शीतल छायामे खडे है । बायी भुजा सखाके कंधेपर रखे और दाहिने हाथसे वृक्षकी डाल पकडे है । ( सखाओंसे वे कहते हैं- ) ’ गायोंको घेरकर ( एकत्र करके ) भैया बलरामजीको पुकारकर ( साथ ) ले आओ; तुमलोग ( तो ) देर कर रहे हो । ’ सूरदासजी कहते है कि मेरे स्वामी कदम्बवृक्षके नीचे बैठकर दूधसे बनी खीर खा रहे है ॥४०॥


References : N/A
Last Updated : November 19, 2010

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP