हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|सूरदास भजन|श्रीकृष्ण माधुरी|

श्रीकृष्ण माधुरी - पद १७६ से १८०

`श्रीकृष्ण माधुरी` पदावलीके संग्रहमें भगवान् श्रीकृष्णके विविध मधुर वर्णन करनेवाले पदोंका संग्रह किया गया है, तथा मुरलीके मादकताका भी सरस वर्णन है ।


१७६.
राग टोडी
हरि के बराबरि बेनु कोऊ न बाजवै।
जग जीवन बिदित मुनिन नाच जो नचावै ॥१॥
चतुरानन, पंचानन, सहसानन ध्यावै।
ग्वाल बाल लिए जमुन कच्छ बछ चरावै ॥२॥
सुर, नर, मुनि अखिल लोक, कोउ न पार पावै।
तारन तरन अगिनित गुन निगम नेति गावै ॥३॥
तिन कौ जसुमति आँगन ताल दै नचावै।
सुरज प्रभु कृपा धाम भक्त बस कहावै ॥४॥

१७७.
मुरली सुनत देह गति भूली।
गोपी प्रेम हिंडोरे झूली ॥१॥
कबहूँ चकित जु होहिं सयानी।
स्वेद चलै द्रवि जैसे पानी ॥२॥
धीरज धरि इक एक सुनावै।
इक कहि कैं आपहि बिसरावै ॥३॥
कबहूँ सुधि, कबहूँ सुधि नाही।
कबहूँ मुरली नाद समाही ॥४॥
कबहूँ तरनी सब मिलि बोलैं।
कबहूँ रहैं धीर, नहिं डोलैं ॥५॥
कबहूँ चल, कबहुँ फिरि आवैं।
कबहुँ लाज तजि लाज लजावैं ॥६॥
मुरली स्याम सुहागिनि भारी।
सूरदास प्रभु की बलिहारी ॥७॥

१७८.
राग बिहागरौ
अधर धरि मुरली स्याम बजावत ।
सारँग, गौड औ नटनारायन, गौरी सुरहि सुनावत ॥१॥
आपु भए रस बस ताहि कें, औरन बस करवावत ।
ऐसौ को त्रिभुवन जल थल मैं, जो सिर नाहिं धुनावत ॥२॥
सुभग मुकट कुंडल मनि स्त्रवनन देखत नारिनि भावत ।
सूरदास प्रभु गिरिधर नागर मुरली धरन कहावत ॥३॥

१७९
राग सारंग.
अधर रस मुरली लूटन लागी ।
जा रस कौं षट रितु तप कीन्हौ, सो रस पियति सभागी ॥१॥
कहाँ रही, कहँ तैं यह आई, कौनें याहि बुलाई ?
चक्रित भई कहति ब्रजबासिनि, यह तौ भली न आई ॥२॥
सावधान क्यों होति नाहिं तुम, उपजी बुरी बलाई ।
सूरदास प्रभु हम पै ताकौं कीन्ही सौति बजाई ॥३॥

१८०.
राग मलार
अधर मधु मूईं हम राखि ।
संचित किएँ रही स्त्रद्धा सौं, सकी न सकुचनि चाखि ॥१॥
सहि सहि सीत, जाइ जमुना जल, दीन वचन मुख भाषि ।
पूजि उमापति बर पायौ हम, मनही मन अभिलाषि ॥२॥
सोइ अब अमृत पिवत है मुरली, सबहिनि के सिर नाखि ।
लियौ छडाइ सकल सुनि सूरज, बेनु धुरि दै आँखि ॥३॥

N/A

References : N/A
Last Updated : September 06, 2011

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP