चैत्र शुक्लपक्ष व्रत - तिथीशपूजन

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


तिथीशपूजन ( धर्मानुसंधान ) -

यह व्रत प्रतिपदादि प्रत्येक तिथिके स्वामीका पूजन करनेसे सम्पन्न होता है । विधान यह है कि प्रातः-स्त्रानादिके पीछे वेदी या चौकीपर रक्त वस्त्र बिछाकर उसपर अक्षतोका अष्टदल बनाये । उसके मध्यमें जिस दिन जो तिथि हो, उसके स्वामीकी सुवर्णमयी मूर्तिका पूजन करे । तिथियोंके स्वामी क्रमशः प्रतिपदाके ' अग्निदेव ', द्वितीयाके ' ब्रह्मा ', तृतीयाकी ' गौरी ', चतुर्थके ' गणेश ' पञ्चमीके ' सर्प ', षष्ठीके ' स्वामिकार्तिक ', सप्तमीके ' सूर्य ', अष्टमीके ' शिव ' ( भैव ), नवमीकी ' दुर्गा ', दशमीके ' अन्तक ' ( यमराज ) , एकादशीके ' विश्वेदेवा ', द्वादशीके ' हरि ' ( विष्णु ), त्रयोदशीके ' कामदेव ', चतुर्दशीके ' शिव ', पूर्णिमाके ' चन्द्रमा ' और अमाके ' पितर ' हैं । इनका व्रत और पूजन प्रतिदिन करते रहनेसे हर्ष, उत्साह और आरोग्यके वृद्धि होती है ।

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Last Updated : January 16, 2009

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