चैत्र शुक्लपक्ष व्रत - ईश्वर - गौरी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


ईश्वर - गौरी ( व्रतोत्सव ) -

इसी दिन ( चैत्र शुक्ल तृतीयाको ) काष्ठादिकी पूर्वनिर्मित शिव - गौरीकी मूर्तियोंको स्त्रान कराके उत्तम प्रकारके वस्त्र और आभूषणादिसे भूषितकर पूजन करे और डोल, पालने व सिंहासनादिमें उनको सावधानीके साथ विराजमान करके सायङ्कालके समय विविध प्रकारके गाजे - बाजे, लवाजमे, सौभाग्यवती स्त्रियों और सत्पुरुषोंके समारोहके साथ उनको नगरसे बाहर किसी पुष्पोद्यान या सरोवरके तटपर स्थापित करे और वहाँ कुछ कालतक क्रीड़ा - कौतुकादिकी कला प्रदर्शन करानेके पीछे उनको उसी प्रकार वापस लाकर यथास्थान स्थापित कर दे । इस प्रकार प्रतिवर्ष करते रहनेसे नगर, ग्राम और उपबस्ती आदिमें सर्वत्र ही उद्योग, उत्साह, आरोग्यता और सर्वसौख्य बढ़ते हैं ।

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Last Updated : January 16, 2009

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