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राम राम रटु , राम राम रटु...

भजन - राम राम रटु , राम राम रटु...

तुलसीदास हिन्दीके महान कवी थे, जिन्होंने रामचरितमानस जैसी महान रचना की ।


राम राम रटु, राम राम रटु, राम राम जपु जीहा ।

राम-नाम-नवनेह-मेहको, मन! हठि होहि पपीहा ॥१॥

सब साधन-फल कूप सरित सर, सागर-सलिल निरासा ।

राम-नाम-रति-स्वाति सुधा सुभ-सीकर प्रेम-पियासा ॥२॥

गरजि तरजि पाषान बरषि, पबि प्रीति परखि जिय जानै ।

अधिक-अधिक अनुराग उमँग उर, पर परमिति पहिचानै ॥३॥

रामनाम-गत, रामनाम-मति, रामनाम अनुरागी ।

ह्वै गये हैं जे होहिगे, त्रिभुवन, तेइ गनियत बड़भागी ॥४॥

एक अंग मम अगम गवन कर, बिलमु न छिन-छिन छाहै ।

तुलसी हित अपनो अपनी द्सि निरुपधि, नेम निबाहैं ॥५॥

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Last Updated : December 14, 2007

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