मृत्यु रक्षाकर कवच

कवचका अर्थ   सुरक्षात्मक   आवरण   या   सुरक्षा   प्रणाली  ।  

क्रियोड्डीश महातन्त्रराजः एकोनविंशः पटलः

मृत्युरक्षाकरम् कवच

क्रियोड्डीशमहातन्त्रराजः

अथैकोनविंशः पटलः

श्रीदेव्युवाच

भगवन्! देवदेवेश! देवताभिः प्रपूजितः ।

सर्वं मे कथितं देव कवचं न प्रकाशितम् ॥१॥

मृत्युरक्षाकरं देव सर्वाशुभविनाशनम् ।

कथयस्वाद्य मे नाथ यदि स्नेहोऽस्ति मां प्रति ॥२॥

श्री देवी जी ने कहा- हे देवदेवेश! देवताओं से प्रपूजित ! हे भगवन्! आपने मुझसे सब कुछ कहा ; परन्तु मृत्युरक्षाकर समस्त अशुभ-नाशक कवच को नहीं कहा। अत: यदि आपका मेरे प्रति स्नेह है तो इसे भी मुझसे कहिये ॥१-२ ॥

मृत्युरक्षाकरं कवचम्

श्रीश्वर उवाच

अस्य मृत्युञ्जय मन्त्रस्य वामदेव ऋषिर्गायत्रीच्छन्दः मृत्युञ्जयो देवता साधकाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोग ।

श्री ईश्वर ने कहा- इस मृत्युञ्जय मन्त्र के वामदेव ऋषि, गायत्री छन्द, मृत्युञ्जय देवता है, साधक के अभीष्ट की सिद्धि के लिए विनियोग करे ।

शिरो मे सर्वदा पातु मृत्युञ्जयसदाशिवः ।

सत्र्यक्षरस्वरूपो मे वदनं च महेश्वरः ॥३॥

मृत्युञ्जय सदाशिव मेरे शिर की एवं तीन अक्षरस्वरूप महेश्वर मेरे मुख की रक्षा करें।

पञ्चाक्षरात्मा भगवान् भुजौ मे परिरक्षतु ।

मृत्युञ्जयस्त्रिबीजात्मा ह्यायू रक्षतु मे सदा ॥४॥

पञ्चवर्णात्मक भगवान् सदाशिव मेरी दोनों भुजाओं की रक्षा करें। तीन बीजात्मा मृत्युञ्जय मेरी आयु की रक्षा करें।

बिल्ववृक्षसमासीनो दक्षिणामूर्तिरव्ययः ।

सदा मे सर्वतः पातु षट्त्रिंशद्वर्णरूपधृक् ॥५॥

बिल्ववृक्ष के नीचे वास करने वाले अव्यय सदाशिव , दक्षिणामूर्ति छत्तीस वर्ण रूप धारण करने वाले सभी स्थानों में मेरी रक्षा करें।

द्वाविंशत्यक्षरो रुद्रः कुक्षौ मे परिरक्षतु ।

त्रिवर्णात्मा नीलकण्ठः कण्ठं रक्षतु सर्वदा ॥६॥

चिन्तामणिर्बीजपूरे हार्द्धनारीश्वरो हरः ।

सदा रक्षतु मे गुह्यं सर्वसम्पत्प्रदायकः ॥७॥

सत्र्यक्षरस्वरूपात्मा कूटरूपी महेश्वरः ।

मार्तण्डभैरवो नित्यं पादौ मे परिरक्षतु ॥८॥

बाइस रूपात्मक रुद्र मेरी कुक्षि की , त्रिवर्णात्मक नीलकण्ठ मेरे कण्ठ की , बीजपूर में चिन्तामणि के सदृश अर्द्धनारीश्वर भगवान् सदाशिव मेरे गुह्यभाग को एवं त्र्यक्षरस्वरूपात्मा कूटरूपी महेश्वर मार्तण्डभैरव नित्य मेरे पैर की रक्षा करें।

ॐ जूं सः महाबीजस्वरूपस्त्रिपुरान्तकः ।

ऊर्ध्वमूर्द्धनि चेशानो मम रक्षतु सर्वदा ॥९॥

ॐ जूं सः इन महाबीजों के रूप को धारण करने वाले त्रिपुरान्तक मेरे ऊर्ध्व भाग की रक्षा करें।

दक्षिणस्यां महादेवो रक्षेन्मे गिरिनायकः ।

अघोराख्यो महादेवः पूर्वस्यां परिरक्षतु ॥१०॥

गिरिनायक महादेव दक्षिण दिशा में मेरी रक्षा करें। अघोराक्ष्य महादेव पूर्व दिशा में रक्षा करें।

वामदेवः पश्चिमस्यां सदा मे परिरक्षतु ।

उत्तरस्यां सदा पातु सद्योजातस्वरूपधृक् ॥११॥

वामदेव पश्चिम दिशा में रक्षा करें। सद्योजातस्वरूप उत्तर दिशा में मेरी रक्षा करें।

मृत्युरक्षाकरं कवच फलश्रुति

इत्थं रक्षाकरं देवि कवचं देवदुर्लभम् ।

प्रातर्मध्याह्नकाले तु यः पठेच्छिवसन्निधौ ॥१२॥

सोऽभीष्टफलमाप्नोति कवचस्य प्रसादतः ।

हे देवि! देवदुर्लभ इस रक्षाकर कवच का जो व्यक्ति प्रातः और मध्याह्न काल में शिवसान्निध्य अर्थात् शिवमंदिर में पाठ करता है उसको इस कवच के प्रसाद से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

कवचं धारयेद्यस्तु साधको दक्षिणे भुजे ॥१३॥

सर्वसिद्धिकरं पुण्यं सर्वारिष्टविनाशनम् ।

जो साधक इस कवच को दाहिनी भुजा पर धारण करता है , उसकी समस्त विपत्तियाँ नष्ट होकर श्री की प्राप्ति होती है।

योगिनी भूतवेतालाः प्रेतकूष्माण्डपन्नगाः ॥१४॥

न तस्य हिंसां कुर्वन्ति पुत्रवत्या लयन्ति ते ।

योगिनी , भूत , वेताल , प्रेत , कूष्माण्ड , पन्नग उसकी किसी भी प्रकार से हिंसा नहीं करते ; अपितु उसका पुत्रवत् पालन करते हैं।

पठित्वाऽभ्यर्चयेद्देवि यथाविधिपुरःसरम् ॥१५॥

लक्षञ्च मूलमन्त्रस्य पुरश्चरणमुच्यते ।

हे देवि ! इस कवच का यथाविधि पाठ कर पूजन करे। मूलमन्त्र का एक लाख जप पुरश्चरण कहलाता है।

तद्धारणे महादेवि ! मृत्युरोगविनाशनम् ॥१६॥

एवं यः कुरुते मर्त्यः पुण्यां गतिमवाप्नुयात् ।

हे महादेवि! इसके धारण से मृत्यु एवं रोग नष्ट होते हैं। इस प्रकार करने से प्राणी पवित्र एवं उत्तम गति प्राप्त करता है।

इति ज्ञातं महादेवि! तस्य वक्त्रे स्थितं सदा ॥१७॥

कवचस्य प्रसादेन मृत्युमुक्तो भवेन्नरः ।

अन्यथा सिद्धिहानिः स्यात्सत्यमेतन्मनोरमे ॥१८॥

हे महादेवि! जो इस कवच को जानकर नित्य पाठ करता है, इस कवच के प्रसाद से मनुष्य मृत्युभय से मुक्त हो जाता है , अन्यथा हे मनोरमे ! सिद्धि की हानि होती है।

तव स्नेहान्महादेवि कथितं कवचं शुभम् ।

न देयं कस्यचिद्भद्रे यदीच्छेदात्मनो हितम् ॥१९॥

हे महादेवि! तुम्हारे स्नेहवश ही यह कवच मैंने तुमसे कहा है । है भद्रे ! अपनी समस्त कामनायें पूर्ण करने वाले इस कवच को अन्य किसी को नहीं देना चाहिये ।

इति श्रीक्रियोड्डीशे महातन्त्रराजे देवीश्वर- संवादे मृत्युरक्षाकरं कवच एकोनविंशतितमः पटलः ॥

N/A

References : N/A
Last Updated : August 12, 2025

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP