चतुर्भुजां महादेवीं नागयज्ञोपवीतिनीम् ।
महाभीमां करालास्य सिद्धविद्याधरैर्युताम् ॥
मुण्डभालावलकर्णी मुक्तकेशीं स्मिताननाम् ।
एवं ध्यायेन्महादेवीं सर्वकामार्थ सिद्धये ॥
देवी चतुर्भुजा ,
सर्प का यज्ञोपवीत धारण करनेवाली , महाभीमा
करालवदना , सिद्ध और विद्याधरों से वेष्टिन ,
मुण्डमाला से अलंकृत ,
केश खोले हुए और हास्यमुखी हैं । सर्वकामार्थ सिद्धि के
लिये देवी का इस प्रकार ध्यान करना चाहिये ।
दस महाविद्या कवच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् ।
आद्याया महाविद्यायाः सर्व्वाभीष्टफलप्रदम् ॥१॥
हे देवि ! महाविद्या का कवच कहता हूं-सुनो , यह सब अभीष्ट फल का
देनेवाला है ।
अथ महाविद्या कवच
कवचस्य ऋषिर्देवि सदाशिव इतीरितः ।
छन्दोऽनुष्टुब् देवता च महाविद्या प्रकीर्तिता ॥
धर्मार्थकाममोक्षाणां विनियोगश्च साधने ॥२॥
इस कवच के ऋषि सदाशिव ,
छंद अनुष्टुप् , देवता महाविद्या और धर्म ,
अर्थ ,
काम मोक्षरूप फल के साधन में इसका विनियोग है ।
ऐंकार: पातु शीर्षे मां कामबीजं तथा हृदि ।
रमाबीजं सदा पातु नाभौ गुह्ये च पादयोः ॥३॥
ऐं बीज मेरे मस्तक ,
क्लीं बीज हृदय ,
एवं श्रीं बीज मेरी नाभि , गुह्य और चरण की रक्षा
करें।
ललाटे सुंदरी पातु उग्रा मां कण्ठदेशतः ।
भगमाला सर्व्वगात्रे लिंगे चैतन्यरूपिणी ॥४॥
सुदरी मेरे मस्तक की ,
उग्रा कंठ की ,
भगमाला सब शरीर की और चैतन्यरूपिणी देवी लिंगस्थान की रक्षा
करें।
पूर्वे मां पातु वाराही ब्रह्माणी दक्षिणे तथा ।
उत्तरे वैष्णवी पातु चेन्द्राणी पश्चिमेऽवतु ॥५॥
वाराही पूर्वदिशा में ,
ब्रह्माणी दक्षिण में ,
वैष्णवी उत्तर में और इन्द्राणी पश्चिम में रक्षा करें।
माहेश्वरी च आग्नेय्यां नैर्ऋते कमला तथा ।
वायव्यां पातु कौमारी चामुण्डा ईशकेऽवतु ॥६॥
माहेश्वरी अग्निकोण में ,
कमला नैर्ऋत में कौमारी वायुकोण में और चामुण्डा ईशान दिशा
में रक्षा करें।
महाविद्या कवच फलश्रुति
इदं कवचमज्ञात्वा महाविद्याञ्च यो जपेत् ।
न फलं जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥७॥
इस कवच को विना जाने जो मनुष्य महाविद्या का मंत्र जपता है , वह
करोड़ोंकल्प में भी उसको फल प्राप्त नहीं होता ।
इति श्रीरुद्रयामले महाविद्याकवचम् ॥