छिन्नमस्ता कवच

कवचका अर्थ सुरक्षात्मक आवरण या सुरक्षा प्रणाली   ।  


श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीये हुं हुं फट् स्वाहा ।

छिन्नमस्ता कवच

छिन्नमस्ता-ध्यान

प्रत्यालीढपदां सदैव दधतीं छिन्नं शिरः कर्तृकां

दिग्वस्त्रां स्वकबन्धशोणितसुधाधारां पिवन्तीं मुदा ।

नगाबद्धशिरोमणिं , त्रियनयनां हृद्युत्पलालंकृतां

रत्यांसक्तमनोभवोपरि दृढां ध्यायेज्जपासन्निभाम् ॥

दक्षे चातिसिता विमुक्त चिकुरा कर्तृस्तथा खर्परं

हस्ताभ्यां दधती रजोगुणभवो नाम्नापिसा वर्णिनी ।

यां दधती रजोगुणभवो नाम्नापिसा वर्णिनी ।

देव्याश्छिन्नकबन्धतः पतदसृग्धारां पिबन्तीं मुदा

नागाबद्धशिरोमणिर्म्मनुविदा ध्येय सदा सा सुरैः ॥

वामे कृष्णतनुस्तथैव दधती खङ्गं तथा खर्परं

प्रत्यालीढपदाकबन्धविगलद्रक्त पिबन्ती मुदा ।

सैषा या प्रलये समस्तभुवनं भोक्तुं क्षमा तामसी

शक्तिः सापि परात् परा भगवती नाम्ना परा डाकिनी ।

देवी प्रत्यालीढपदा हैं , अर्थात् युद्ध के लिये सन्नद्ध चरण किये एक आगे एक पीछे वीरवेष से खड़ी हैं। इन्होंने छिन्नशिर और खड्ग धारण किया है । देवी नग्न और अपने छिन्नगले से निकली हुई शोणित- धारा पान करतीं हैं। मस्तक में सर्पाबद्ध मणि , तीन नेत्र , और वक्ष:- स्थल कमलों की माला से अलंकृत है , यह रति में आसक्त काम पर दंडायमान है , इनके देह की कांति जपापुष्प के समान रक्तवर्ण है। देवी के दहिने भाग में श्वेत वर्णवाली , खुले केश , कैंची और खर्पर धारिणी एक देवी है , उनका नाम "वर्णिनी" है । यह वर्णिनी देवी के छिन्न गले से गिरती हुई रक्तधारा पान करती है । इनके मस्तक में नागाबद्ध मणि है । वाम भाग में खड्ग खर्पर धारिणी कृष्णवर्णा दूसरी देवी है , यह देवी के छिन्नगले से निकली हुई रुधिरधारा पान करती है । इनका दाहिना पाद आगे और वाम पाद पीछे के भाग में स्थित है । यह प्रलयकाल के समय संपूर्ण जगत्‌ को भक्षण करने में समर्थ हैं इनका नाम ' डाकिनी ' है ।

उक्तमंत्र का जप होम

लक्ष जपने से छिन्नमस्ता मन्त्र का पुरश्चरण होता है और उसका दशांश होम करना चाहिये ।

छिन्नमस्ता कवचम्

हुं बीजात्मिका देवी मुण्डकर्त धरापरा ।

हृदयं पातु सा देवी वर्णिनी डाकिनीयुता ॥

वर्णिनी डाकिनी से युक्त मुण्डक को धारण करनेवाली , हूँ बीजयुक्त महादेवी मेरे हृदय की रक्षा करे ।

श्रीं ह्रीं हुं ऐं चैव देवी पूर्व्वस्यां पातु सर्वदा ।

सर्वाङ्गं मे सदा पातु छिन्नमस्ता महाबला ॥

श्रीं ह्रीं हुं ऐं बीजात्मिका देवी मेरी पूर्व दिशा और महाबला छिन्नमस्ता सदा मेरे सर्वांग की रक्षा करे ।

वज्रवैरोचनीये हुं फट् बीजसमन्विता ।

उत्तरस्यां तथाग्नौ च वारुणे नैर्ऋतेऽवतु ॥

' वज्रवैरोचनीये हुं फट् ' इस बीजयुक्त देवी उत्तर , अग्नि , वारुण और नैऋत्य दिशा में रक्षा करे ।

इन्द्राक्षी भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी ।

सर्व्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै ॥

इन्द्राक्षी , भैरवी , असितांगी और संहारिणी देवी सर्वदा मेरी अन्यान्य सब दिशाओं में रक्षा करे ।

इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेच्छिन्नमस्तकाम् ।

न तस्य फलसिद्धिः स्यात्कल्पकोटिशतैरपि ॥

इस कवच को बिना जाने जो पुरुष छिन्नमस्ता का मंत्र जपता है करोड़ कल्प में भी उसको फल प्राप्त नहीं होता।

॥ इति छिन्नमस्ताकवचम्

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Last Updated : August 13, 2025

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