श्रीदेव्युवाच ।
भगवन्प्रमथाधीश देवदेव जगद्गुरो ।
युद्धस्य वारणं देव ज्वर देवरणं तथा ॥१॥
श्रीदेवीजी ने कहा- हे भगवन् ! हे प्रमथाधीश देवदेव
जगद्गुरो शंकर ! युद्ध और ज्वरादि का निवारण ॥१॥
क्षिप्रं भवेत्कथं नाथ कृपया परया वद ।
नाशुत्राता च जगतां त्वां विना परमेश्वर ॥२॥
किस प्रकार शीघ्र संपादित होता है , यह मुझसे कृपापूर्वक वर्णन
कीजिये। हे नाथ! हे देव ! हे परमेश्वर ! आपके अतिरिक्त जगत्का शीघ्र रक्षा
करनेवाला कोई नहीं है ॥२॥
ईश्वर उवाच ।
कथयामि तव स्नेहात्कवचं वारणं महत् ।
युद्धस्य च ज्वरादेश्व क्षिप्रं हि नगनन्दिनि ।
प्राकृतेनैव वाक्येन कथयामि शृणुष्व तत् ॥३॥
ईश्वर बोले- हे पर्वतनन्दिनी ! मैं तुम्हारे स्नेह से
वशीभूत होकर युद्ध और ज्वरादि का शीघ्र निवारण करनेवाला महत्कवच प्राकृत वचनों में
कहता हूं , सो सुनो ॥३॥