हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|नवविधाभक्तिनाम| ॥ समास नववां - आत्मनिवेदनभक्तिनाम ॥ नवविधाभक्तिनाम अनुक्रमणिका ॥ समास पहला - श्रवणभक्तिनिरूपणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - कीर्तनभजननिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - नामस्मरणभक्तिनाम ॥ ॥ समास चौथा - पादसेवनभक्तिनिरुपणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - अर्चनभक्तिनाम ॥ ॥ समास छठवां - वंदनभक्तिनाम ॥ ॥ समास सातवां - दास्यभक्तिनिरुपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - सख्यभक्तिनिरुपणनाम ॥ ॥ समास नववां - आत्मनिवेदनभक्तिनाम ॥ ॥ समास दसवां - मुक्तिचतुष्टये नाम ॥ नवविधाभक्तिनाम - ॥ समास नववां - आत्मनिवेदनभक्तिनाम ॥ ‘हरिकथा’ ब्रह्मांड को भेदकर पार ले जाने की क्षमता इसमें है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास नववां - आत्मनिवेदनभक्तिनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पीछे हुआ निरूपण । आठवें भक्ति के लक्षण । अब सुनो सावधान । भक्ति नवमी ॥१॥ नवमी जानिये निवेदन । कीजिये आत्मनिवेदन । वही सहजता से करूं कथन । प्रांजल रूप में ॥२॥ सुनो निवेदन के लक्षण । करें स्वयं को ईश्वरार्पण । करें तत्त्वविवरण । तो समझें ॥३॥ मैं भक्त ऐसे कहे । और विभक्तपन से ही भजे । ये सभी ही जानें । विलक्षण ॥४॥ लक्षण होकर विलक्षण । ज्ञान होकर अज्ञान । भक्त होकर विभक्तपन । वे होते ऐसे ॥५॥ भक्त याने विभक्त नहीं । और विभक्त याने भक्त नहीं । विचार के बिना कुछ भी नहीं । समाधान ॥६॥ तस्मात विचार करें । देव कौन यह पहचानें । अपना स्वयं खोज करें । अंतर्याम में ॥७॥ मैं कौन ऐसा प्रश्न कर । किया तत्त्व निरीक्षण अगर । स्पष्ट दिखता विचार । अहं नहीं ॥८॥ तत्त्व से तत्त्व जब हटे । तब अहं कैसे बचे । आत्मनिवेदन इस प्रकार से । हुआ सहज ही ॥९॥ तत्वरूप सकल भासे । विवेक देखने पर न रहे । प्रकृति न रहे आत्मा रहे । अहं कैसा ॥१०॥ एक मुख्य परमेश्वर । दूसरी प्रकृति जगदाकार । तीसरा मैं कैसा चोर । लाया बीच में ॥११॥ ऐसा यह सिद्ध ही रहता । मिथ्या ही लगे देहअहंता । परंतु विचार से देखा जाता । तो कुछ भी नहीं ॥१२॥ देखने पर तत्त्वविवंचना । पिंडब्रह्मांडतत्त्वरचना । विश्वाकार में व्यक्ति नाना । तत्त्वों से विस्तारित हुये ॥१३॥ साक्षत्व से तत्त्व न रहते । आत्म प्रचीति से साक्षत्व न बचे । आत्मा रहे आदि अंत में । अहं कैसा ॥१४॥ आत्मा एक स्वानंदघन । और अहमात्मा यह वचन । तो फिर अहम् कैसे भिन्न । बचा वहां ॥१५॥ सोहं हंसा यह उत्तर । इसका देखें अर्थांतर । देखने पर आत्मा का विचार । अहं कैसे वहां ॥१६॥ आत्मा निर्गुण निरंजन । उससे रहें अनन्य । अनन्य अर्थात् नहीं अन्य । अहं कैसे वहां ॥१७॥ आत्मा याने अद्वैत । जहां नहीं द्वैताद्वैत । वहां अहंपन का हेत । बचेगा कैसा ॥१८॥ आत्मा पूर्णत्व से परिपूर्ण । जहां नहीं गुणागुण । निखिल निर्गुण में अहं । कौन कैसा ॥१९॥त्वंपद तत्पद असिपद । निरसन कर सकल भेदाभेद । वस्तु मूलतः अभेद । अहं कैसा ॥२०॥ निरसन होते ही जीवशिवउपाधि । जीव कैसे शिव के आदि । स्वरूप में होने पर दृढबुद्धि । अहं कैसा ॥२१॥ अहं मिथ्या साच देव । देव भक्त अनन्यभाव । इस वचन का अभिप्राव । अनुभवी जानते ॥२२॥ इसका नाम आत्मनिवेदन । ज्ञानियों का समाधान । नवम भक्ति के लक्षण । वे किये निरुपित ऐसे ॥ २३॥ पंचभूतों में आकाश । सकल देवों में जगदीश । नवविधा भक्ति में विशेष । भक्ति नववीं ॥२४॥ नवमी भक्ति आत्मनिवेदन । होते ही चूके जन्ममरण । यह वचन सत्य प्रमाण । असत्य नहीं ॥२५॥ ऐसी यह नवविधा भक्ति । करके पाइये सायुज्यमुक्ति । सायुज्यमुक्ति को कल्पांत में भी । विचलता नहीं ॥२६॥ तीनों मुक्तियां है चंचल । सायुज्यमुक्ति जानो अचल । त्रैलोक्य का भी आता निर्वाण पल । सायुज्यमुक्ति रहेगी अविचल ॥२७॥ समस्त चत्वार मुक्ति में । वेदशास्त्र कहते ऐसे । तीन नष्ट होती इनमें । चौथी अविनाशी ॥२८॥ पहली मुक्ति वह सलोकता । दूसरी वह समीपता । तीसरी वह सरूपता । चौथी सायुज्यता मुक्ति ॥२९॥ ऐसी ये चत्वार मुक्ति । भगवद्भजन से प्राणी को मिलती । श्रोताओं यही स्पष्ट निरूपित की जाती । सावधानी से सुनें आगे ॥३०॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आत्मनिवेदनभक्तिनाम समास नववां ॥ ९॥ N/A References : N/A Last Updated : November 30, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP