नवविधाभक्तिनाम - ॥ समास नववां - आत्मनिवेदनभक्तिनाम ॥

‘हरिकथा’ ब्रह्मांड को भेदकर पार ले जाने की क्षमता इसमें है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पीछे हुआ निरूपण । आठवें भक्ति के लक्षण । अब सुनो सावधान । भक्ति नवमी ॥१॥
नवमी जानिये निवेदन । कीजिये आत्मनिवेदन । वही सहजता से करूं कथन । प्रांजल रूप में ॥२॥
सुनो निवेदन के लक्षण । करें स्वयं को ईश्वरार्पण । करें तत्त्वविवरण । तो समझें ॥३॥
मैं भक्त ऐसे कहे । और विभक्तपन से ही भजे । ये सभी ही जानें । विलक्षण ॥४॥
लक्षण होकर विलक्षण । ज्ञान होकर अज्ञान । भक्त होकर विभक्तपन । वे होते ऐसे ॥५॥
भक्त याने विभक्त नहीं । और विभक्त याने भक्त नहीं । विचार के बिना कुछ भी नहीं । समाधान ॥६॥
तस्मात विचार करें । देव कौन यह पहचानें । अपना स्वयं खोज करें । अंतर्याम में ॥७॥
मैं कौन ऐसा प्रश्न कर । किया तत्त्व निरीक्षण अगर । स्पष्ट दिखता विचार । अहं नहीं ॥८॥
तत्त्व से तत्त्व जब हटे । तब अहं कैसे बचे । आत्मनिवेदन इस प्रकार से । हुआ सहज ही ॥९॥
तत्वरूप सकल भासे । विवेक देखने पर न रहे । प्रकृति न रहे आत्मा रहे । अहं कैसा ॥१०॥
एक मुख्य परमेश्वर । दूसरी प्रकृति जगदाकार । तीसरा मैं कैसा चोर । लाया बीच में ॥११॥
ऐसा यह सिद्ध ही रहता । मिथ्या ही लगे देहअहंता । परंतु विचार से देखा जाता । तो कुछ भी नहीं ॥१२॥
देखने पर तत्त्वविवंचना । पिंडब्रह्मांडतत्त्वरचना । विश्वाकार में व्यक्ति नाना । तत्त्वों से विस्तारित हुये ॥१३॥
साक्षत्व से तत्त्व न रहते । आत्म प्रचीति से साक्षत्व न बचे । आत्मा रहे आदि अंत में । अहं कैसा ॥१४॥
आत्मा एक स्वानंदघन । और अहमात्मा यह वचन । तो फिर अहम् कैसे भिन्न । बचा वहां ॥१५॥
सोहं हंसा यह उत्तर । इसका देखें अर्थांतर । देखने पर आत्मा का विचार । अहं कैसे वहां ॥१६॥
आत्मा निर्गुण निरंजन । उससे रहें अनन्य । अनन्य अर्थात् नहीं अन्य । अहं कैसे वहां ॥१७॥
आत्मा याने अद्वैत । जहां नहीं द्वैताद्वैत । वहां अहंपन का हेत । बचेगा कैसा ॥१८॥
आत्मा पूर्णत्व से परिपूर्ण । जहां नहीं गुणागुण । निखिल निर्गुण में अहं । कौन कैसा ॥१९॥
त्वंपद तत्पद असिपद । निरसन कर सकल भेदाभेद । वस्तु मूलतः अभेद । अहं कैसा ॥२०॥
निरसन होते ही जीवशिवउपाधि । जीव कैसे शिव के आदि । स्वरूप में होने पर दृढबुद्धि । अहं कैसा ॥२१॥
अहं मिथ्या साच देव । देव भक्त अनन्यभाव । इस वचन का अभिप्राव । अनुभवी जानते ॥२२॥
इसका नाम आत्मनिवेदन । ज्ञानियों का समाधान । नवम भक्ति के लक्षण । वे किये निरुपित ऐसे ॥ २३॥
पंचभूतों में आकाश । सकल देवों में जगदीश । नवविधा भक्ति में विशेष । भक्ति नववीं ॥२४॥
नवमी भक्ति आत्मनिवेदन । होते ही चूके जन्ममरण । यह वचन सत्य प्रमाण । असत्य नहीं ॥२५॥
ऐसी यह नवविधा भक्ति । करके पाइये सायुज्यमुक्ति । सायुज्यमुक्ति को कल्पांत में भी । विचलता नहीं ॥२६॥
तीनों मुक्तियां है चंचल । सायुज्यमुक्ति जानो अचल । त्रैलोक्य का भी आता निर्वाण पल । सायुज्यमुक्ति रहेगी अविचल ॥२७॥
समस्त चत्वार मुक्ति में । वेदशास्त्र कहते ऐसे । तीन नष्ट होती इनमें । चौथी अविनाशी ॥२८॥
पहली मुक्ति वह सलोकता । दूसरी वह समीपता । तीसरी वह सरूपता । चौथी सायुज्यता मुक्ति ॥२९॥
ऐसी ये चत्वार मुक्ति । भगवद्भजन से प्राणी को मिलती । श्रोताओं यही स्पष्ट निरूपित की जाती । सावधानी से सुनें आगे ॥३०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आत्मनिवेदनभक्तिनाम समास नववां ॥ ९॥

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Last Updated : November 30, 2023

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