नवविधाभक्तिनाम - ॥ समास चौथा - पादसेवनभक्तिनिरुपणनाम ॥

‘हरिकथा’ ब्रह्मांड को भेदकर पार ले जाने की क्षमता इसमें है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पीछे हुआ निरुपण । नामस्मरण के लक्षण । अब सुनें पादसेवन । चौथी भक्ति ॥१॥
पादसेवन वही जानिये । कायावाचामनोभाव से । सद्गुरु के पांव की सेवा करें । सद्गति के लिये ॥२॥
नाम इसका पादसेवन । सद्गुरुपद में अनन्यपन । जन्ममरण का करने निरसन । यातायात ॥३॥
सद्गुरुकृपा बिन कहीं । भवतरणोपाय नहीं । इस कारण तत्परता से ही । सद्गुरु पांव सेवन करें ॥४॥
सद्वस्तु दिखाये सद्गुरुवर । सकल सारासारविचार । परब्रह्म का निर्धार । दृढ हो अभ्यंतर में ॥५॥
जो वस्तु दृष्टि से दिखे ना । और मन को भी भासे ना । संग त्यागे बिन आये ना । अनुभव में ॥६॥
अनुभव लें तो संगत्याग न होये । संगत्याग से अनुभव न दिखे । अनुभवियों को ही यह भासे । अन्यों को उलझन ॥७॥
संगत्याग और निवेदन । विदेहस्थिति अलिप्तपन । सहजस्थिति उन्मनी विज्ञान । ये सातों ही एकरूप ॥८॥
इनसे भी अलग नामाभिधान । समाधान के संकेत वचन । सकल ही पादसेवन । से समझने लगते ॥९॥
वेदवेदगर्भ वेदांत । सिद्धभाव गर्भ सिद्धांत । अनुभव अनिर्वाच्य व्यक्त । सत्य वस्तु ॥१०॥
बहुधा अंग अनुभव के । सकल समझते संत संग से । चौथे भक्ति के प्रसंग से । गौप्य वह प्रकटे ॥११॥
प्रकट रह कर भी न रहे । गुप्त रह कर भी भासे । भिन्न जो भासाऽभास से । गुरुगम्य मार्ग ॥ १२॥
मार्ग होता अंतरिक्ष । जहां सर्व ही पूर्वपक्ष । देखने जाओ तो अलक्ष्य । लक्ष्य होये ना ॥१३॥
लक्ष्य से जिसे लक्ष्य करे । ध्यान में जिसका ध्यान करे । वही तो हम स्वयं होये । त्रिविधा प्रचीति ॥१४॥
अस्तु ये अनुभव के द्वार से । समझते सारासार विचार से । सत्संग कर सत्योत्तर से । प्रत्यय में आते ॥१५॥
सत्य देखें तो नहीं असत्य । असत्य देखें तो नहीं सत्य । सत्याऽसत्य के कृत्य । हैं दर्शक के पास ॥१६॥
दर्शक देखने लगे जिसे । वे तद्रुपत्व से प्राप्त होये । तभी फिर जानिये दृढ होये । समाधान ॥१७॥
नाना साधन देखें अगर । सुदृढ होते सद्गुरु के करने पर । सद्गुरु न होने पर । सर्वथा सन्मार्ग नहीं ॥१८॥
प्रयोग साधन सायास । नाना साक्षेप विद्याभ्यास । गुरुगम्य को अभ्यास । से पाते नहीं ॥१९॥
जो अभ्यास से अभ्यासित न होते । जो साधनों को असाध्य होते । वे सद्गुरु बिना कैसे । समझ पायेंगे ॥२०॥
इस कारण ज्ञानमार्ग । जानने के लिये धरें सत्संग । सत्संग बिना प्रसंग । बोलें ही नहीं ॥२१॥
सेवा करें सद्गुरु के चरण । इसका नाम पादसेवन । चौथे भक्ति के लक्षण । वे किये निरुपित ऐसे ॥२२॥
देव ब्राह्मण महानुभाव । सत्पात्र भजन के ठांव । ऐसे ही ठौर पर सद्भाव । दृढ धरें ॥२३॥
यह प्रवृत्ति के कथन । बोले गये रक्षा के कारण । परंतु करें सद्गुरु के चरणसेवन । इसका नाम पादसेवन ॥२४॥
पादसेवन चौथी भक्ति । त्रिजगत् को पावन करती । जिसके कारण सायुज्यमुक्ति । साधक को होती ॥२५॥
इस कारण महान से महत्तर । चौथी भक्ति का निर्धार । जिसके कारण भवपार । बहुत प्राणी पातें ॥२६॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे पादसेवनभक्तिनिरुपणनाम समास चौथा ॥४॥

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Last Updated : November 30, 2023

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