नवविधाभक्तिनाम - ॥ समास आठवां - सख्यभक्तिनिरुपणनाम ॥

‘हरिकथा’ ब्रह्मांड को भेदकर पार ले जाने की क्षमता इसमें है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पीछे हुआ निरूपण । सातवें भक्ति के लक्षण । अब सुनो हो सावधान । आठवीं भक्ति ॥१॥
ईश्व से परम सख्य रखें । प्रेम प्रीति से बांधे । आठवें भक्ति के जानिये । लक्षण ऐसे ॥२॥
देव को जिसकी अत्यंत प्रीति । अपने व्यवहार की हो वही रीति । इस तरह भगवंत के प्रति । सख्य हो नेमस्त ॥३॥
भक्ति भाव और भजन । निरुपण और कथाकीर्तन । प्रेमी भक्तों का गायन । भाते ईश्वर को ॥४॥
हमारा वैसाही बर्ताव रहे । हमें भी बही भाये । मन समान सहज ही होये । तो सख्य होता नियमित ॥५॥
देव से सख्यत्व के कारण । अपने सुख करें त्यजन । अनन्यभाव से जीव प्राण । शरीर भी अर्पण करें ॥६॥
त्याग कर अपनी संसार व्यथा । करते जायें देव की चिंता । निरूपण कीर्तन कथा वार्ता । कहें देव की ही ॥७॥
देव के सख्यत्वकारण से । नाता टूटे अपनों से । सर्वस्व अर्पण कर अंत में । प्राण भी अर्पण करें ॥८॥
अपना जायें सर्वस्व । मगर देव से रहे सख्यत्व । ऐसी प्रीति जीवभाव । से भगवंत में लगायें ॥९॥
देव याने अपने प्राण । प्राण को न करें निर्वाण । परम प्रीति के लक्षण । वे होते हैं ऐसे ॥१०॥
ऐसा परम सख्य धरने पर । भक्त की चिंता करते ईश्वर । पांडवों को लाखगृह जलने पर । निकाला विवर द्वार से ॥११॥
देव सख्यत्व से रहें हम से । मर्म इसका तो पास अपने । हम बोले वचन जैसे । वैसे ही आता प्रतिसाद ॥१२॥
हमारा रहने पर अनन्यभाव । तत्काल मिले देव । त्रस्त होता हमारा जीव । तो देव भी त्रस्त होता ॥१३॥

॥ श्लोक ॥    
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ॥

जैसे जिसका भजन । वैसे ही देव भी स्वयं। इस कारण ये सब जान । अपने ही पास ॥१४॥
अपना मनचाहा न होये । उस कारण निष्ठा टूटे । मगर कारण इसके । हम स्वयं ही हैं ॥१५॥
मेघ चातक पर कृपा करे ना । फिर भी चातक पलटे ना । चंद्र समय पर निकले ना । फिर भी चकोर अनन्य ॥१६॥
ऐसा ही रहें सख्यत्व । विवेक से धरें सत्त्व । भगवंत के प्रति ममत्व । कभी ना छोड़े ॥१७॥
सखा मानिये भगवंत । माता पिता गोत । विद्या लक्ष्मी धन वित्त । सभी कुछ परमात्मा ॥१८॥
देव से भिन्न कुछ भी नहीं । ऐसा बोलते सर्व ही । मगर उनकी निष्ठा नहीं । होती वैसे ही ॥१९॥
इसलिये ऐसा न करें । सख्य तो भी सच्चा ही करें । अभ्यंतर में दृढता से धरें । परमेश्वर को ॥२०॥
अपने मनोगत के कारण । देव पर क्रोधित होता मन । ऐसे तो न होते लक्षण । सख्यभक्ति के ॥२१॥
देव का जो मनोगत । वही अपना उचित । इच्छा के लिये भगवंत । से ना बढायें दूरी ॥२२॥
देव की इच्छा से रहें । वही मानें जो देव करे । फिर सहज ही स्वभाव से । कृपालु देव ॥२३॥
देखें अगर कृपा देव की । तो क्या होगी कृपा माता की । माता करें हत्या बालक की । विपत्तिकाल में ॥२४॥
देव ने वध किया किसी भक्त का । कभी न देखा न सुना । शरणागतों के लिये देव हुआ । वज्रपंजर ॥२५॥
देव पक्ष लेते भक्तों का । देव तारणहार पतितों का । देव हो अनाथों का । सहाय्यकर्ता ॥२६॥
देव अनाथों के पक्षक । नाना संकटों से रक्षक । दौड़कर आते अंतरसाक्ष । गजेंद्र के लिये ॥२७॥
देव कृपा का सागर । देव करुणा का जलधर । देव को भक्तों का बिसर । होगा ही नहीं ॥२८॥
देव जाने प्रीति रखना । देव से मैत्रीभाव रखना । आप्तजन काम आते ना । सभी दुष्ट धोखेबाज ॥२९॥
सख्य देव का टूटे ना । प्रीति देव की छूटे ना । देव कभी मुख मोड़े ना । शरणागतों से ॥३०॥
इसकारण सख्य देव से करें । मन की बात उससे कथन करें । आठवीं भक्ति के जानिये । लक्षण ऐसे ॥३१॥
जैसा देव वैसे गुरुवर । शास्त्रों में कहा यह विचार । इसलिये सख्यभाव का प्रकार । रखें सद्गुरु से ॥३२॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सख्यभक्तिनिरूपणनाम समास आठवां ॥८॥

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Last Updated : November 30, 2023

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