हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|ठाकुर प्रसाद| अष्टम स्कन्ध ठाकुर प्रसाद भागवत का उद्देश्य प्रथम स्कन्ध सूची द्वितीय स्कन्ध सूची तृतीय स्कन्ध सूची चतुर्थ स्कन्ध सूची पञ्चम स्कन्ध सूची षष्ठ स्कन्ध सूची सप्तम स्कन्ध सूची अष्टम स्कन्ध सूची नवम स्कन्ध सूची दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) दशम स्कन्ध (उत्तरार्ध) एकादश स्कन्ध सूची द्वादश स्कन्ध सूची प्रथम स्कन्ध द्वितीय स्कन्ध तृतीय स्कन्ध चतुर्थ स्कन्ध पञ्चम स्कन्ध षष्ठ स्कन्ध सप्तम स्कन्ध अष्टम स्कन्ध नवम स्कन्ध दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) दशम स्कन्ध (उत्तरार्ध) एकादश स्कन्ध द्वादश स्कन्ध ठाकुर प्रसाद - अष्टम स्कन्ध ठाकुर प्रसाद म्हणजे समाजाला केलेला उपदेश. Tags : bookthakur prasadठाकुर प्रसादहिन्दी अष्टम स्कन्ध Translation - भाषांतर हरि तुम हरो जन की भीर ।द्रोपदी की लाज राखी तुम बढायो चीर ॥भक्त कारन रूप नरहरि धर्यो अप शरीर ।हिरनकश्यपमार लीन्हों धर्यो नाहिन धीर ॥बूडते गजराज राख्यो किया बाहर नीर ।दासि मीरा लाल गिरधर दु:ख जहाँ तहँ पार ॥पुण्यस्य फलं इच्छन्ति, पुण्यं न कुर्वन्ति मानवा: ।न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।संसार ही सरोवर है ।जीव ही गजेन्द्र है ।काल मगर है ।भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता: ।माद्दक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय ।साधु पुरुष कैसे होते हैं, वह तुलसीदासजी से सुनिए :---संत ह्रदय नवनीत समान । कहा कबिन्ह पर कहै न जाना ॥निज परिताप द्रवइ नवनीता । परदु:ख द्रवह संत सुपुनीता ॥परहित सरिस धर्म नर्हि भाई ।परपीडा सम नहिं अधमाई ॥रसवर्ज रसोऽप्यस्य पर द्दष्टवा निवर्तते ।गीता में कहा गया हैं :---दैवी हयेषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।मामेव ये प्रपद्यंते मायामेतां तरन्ति ते ॥यत्र योगौहयोगिनाम् ।जित देखौं तित श्याममयी है ।श्याम कुंज वन जमुना श्यामा, श्यामा गगन घन घटा छई है ॥सब रंगन में श्याम भरयो है, लोग कहत यह बात नई है ।नीलकंठ को कंठ श्याम है, मनो श्यामता फैल गई है ॥न स्पृशेत् दारवीमपि ।नाहं जानामि केयूरे नाहं जानामि कुंडले ।नूपुरेत्वऽभिजानामि नित्यं पादाभिवंदनात् ॥बलवानिन्द्रियगामो विद्वासंमपि कर्षति ।भर्तृहरि ने भी तो कहा है :---विश्वामित्रोपराशरप्रभृतयो वाताम्बुपर्णाशनास्तेऽपि स्त्रीमुखपङ्कजललितं दृष्टैव मोहं गता: ।शाल्यन्नं सघृतं पयोदधियुतं भुञ्जन्ति ये मानवा: तेषामिन्द्रियनिग्रहो यदि भवेत् विन्ध्यस्तरेत् सागरम् ।श्रीकृष्ण को दुर्बलता पसंद नहीं है । नरसिंह मेहता ने कहा है :---हरिनो मारग छे शुरानो, नहीं कायरनुं काम जाने ।हरि का मार्ग शूरवीरों का है, कयरों का नहीं ।श्रुति भी कहती हैं :---नायमात्मा बलहीनेन लभ्य: ।कौपीनवंत: खलु भाग्यवन्त: ।सुर नर मुनि सस्बकी यह रीती ।स्वारथ लागि करहि सब प्रीतो ।गोपियाँ भी तो कहती हैं :---शिरसि धेहि न: श्रीकरग्रहम् ।गोभि :---इन्द्रियै: भक्तिरसं पिबति सा गोपी ।त्वदीयं वस्तु गोविंद तुभ्यमेव समर्पये ।मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन ।अत: भगवान कहते हैं :---ब्रम्हान यमनुगृहणामि तद्विशो विद्यानाम्यहम् ।यन्मद: पुरुष: स्तब्धो लोकं माम चावमन्यते ॥ईश्वर: सर्वभूतानां ह्रददेशेऽर्जुन तिष्ठति ।श्रीराम - स्तुतिश्रीरामचंद्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणं नवकंज - लोचन, कंज -मुख, कर कंज, पद कंजारुणं ।कंदर्प प्रगणित अमित छवि, नवनील - नीरज सुंदर, पट पीत मानहुतडित रुचि शुचि, न्ॐइ जनक सुतावंरं ।भज दीनबंधु, दिनेश, दानव दैत्य वंश निकंदनं, रघुनंद अनन्द कंद कोशलचंद्र दशरथ नन्दनं ।शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अंग विभूषणं, प्राजानुभुज शर - चापधर, संग्रामजित खरदूषणं ।इति वदति तुलसीदास शंकर शेश मुनि मनरंजनं, मम ह्रदय कंज विनास कुरु, कामादि खल दल गंजनं ।सियावर रामचंद्र की जय :---- N/A References : N/A Last Updated : November 11, 2016 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP