हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|ठाकुर प्रसाद| सप्तम स्कन्ध ठाकुर प्रसाद भागवत का उद्देश्य प्रथम स्कन्ध सूची द्वितीय स्कन्ध सूची तृतीय स्कन्ध सूची चतुर्थ स्कन्ध सूची पञ्चम स्कन्ध सूची षष्ठ स्कन्ध सूची सप्तम स्कन्ध सूची अष्टम स्कन्ध सूची नवम स्कन्ध सूची दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) दशम स्कन्ध (उत्तरार्ध) एकादश स्कन्ध सूची द्वादश स्कन्ध सूची प्रथम स्कन्ध द्वितीय स्कन्ध तृतीय स्कन्ध चतुर्थ स्कन्ध पञ्चम स्कन्ध षष्ठ स्कन्ध सप्तम स्कन्ध अष्टम स्कन्ध नवम स्कन्ध दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) दशम स्कन्ध (उत्तरार्ध) एकादश स्कन्ध द्वादश स्कन्ध ठाकुर प्रसाद - सप्तम स्कन्ध ठाकुर प्रसाद म्हणजे समाजाला केलेला उपदेश. Tags : bookthakur prasadठाकुर प्रसादहिन्दी सप्तम स्कन्ध Translation - भाषांतर श्रीराम श्रीराम श्रीरामगोप्य: कामाद भयात् कंसो द्वेषाच्चेद्यादयो नृपा: ।संबंधाद वृष्णय: स्नेहाद ययं भक्त्या वयं विभो ॥इस प्रकार ईश्वर में किसी भी भाव से तन्मय होना चाहिए ।तस्मात् केनाप्युपायेन मन: कृष्णे निवेशयेत् ।हित्वाऽत्मपातं गृहमन्धकूपं वनं गतो यद्धरिमाश्रयेत ॥सुर नर मुनि सबकी यह रोती,स्वारथ लोगि करहिं सब प्रीती ।आत्मा वैस सर्वेषां प्रिय: ।न वा अरे पत्यु: कामाय पति: प्रियो भवति आत्मनस्तु कामाय पति: प्रिया भवति ।न वा अरे जायाया: कामाय जाया प्रिया भवति आत्मनस्तु कामाय जाया प्रिया भवति ।न वा अरे पुत्राणां कामाय पुत्रा: प्रिया: भवति आत्मनस्तु कामाय पुत्रा: प्रिया: भवन्ति ।कौमार आचरेत प्राज्ञो धर्मान् भागवतानिह ।दुर्लभं मानुषं जन्म तदस्य ध्रुवमर्थदम् ॥यावत् स्वस्थमिदं कलेवरगृह यावच्च दूरे जरा ।यावच्चेन्द्रियशक्तिरप्रतिहता यावत्क्षयो नायुष: ।प्रात्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्य: प्रयत्नो महान् ।प्रोद्दीप्ते भवने तु कूपखननं प्रत्युद्यम: कीदृश: ॥ततो यतेत कुशल: क्षेमाय मयाश्रित: ।शरीरपौरुषं यावन्न बिपद्येत पुष्कलम् ॥तस्मात् सर्वेषु भूतेषु दया कुरुत सौह्रदम् ।आसुरं भावमुन्मुच्य यथा तुष्य्त्यधोक्षज: ।प्रहलादजी ने बालकों को आज्ञा दी - प्रेम से कीर्तन करो ।न दानं न तपो नेज्या न शौचं न व्रतानि च ।प्रीयतेऽमलया भक्त्या हरिरन्यदबिडम्बनम् ॥प्रहलादजी सभी से कीर्तन - मंत्र जप कराने लगे ।हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥क्वासौ यदि स सर्वत्र कस्मात् स्तंभे न द्दश्यते ।पानी पीना छान के, गुरु करना जान के ।अगुन अरूप अलख प्रज जोई ।भगत प्रम बस सगुन सो होई ॥हरि ब्यापक सर्वत्र समाना ।प्रेम ते अगट होहिं मैं जाना ॥सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा ॥धन्य धन्य बोडाण की नारी सवा बाल भए वनमाली ॥नर कपडनकों डरत हैं, नरक पडनकों नाहिं ।गुडाचा गणपति, गुडाचा नैवेद्य ।उत्तिष्ठ मम गोविंद उत्तिष्ठ गरुडध्वज ।उत्तिष्ठ कमलाकांत त्रैलोक्यं मंगलं क्रुरु ॥यथा देहे तथा देवे यथा देवे तथा गुरौ ।त्वदीयं वस्तु गोविंद तुभमेव समर्पये ।त्रस्तोऽस्म्यहं कृपणवत्सल दुस्सहोग्रसंसारचक्रकदनाद गसताँ प्रणीत: ।बद्ध: स्वकर्ममिरुशत्तम तेऽङघ्रिमूलं प्रोतोऽपवर्गशरणं हवयसे कदा नु ॥द्दष्टा मया दिवि विभोऽखिलधिष्ण्यपानामायु: श्रियो विभव इच्छति याञ्जनोऽयम ।येस्मत्पितु: कुपितहासविजृम्भितभ्र - र्विस्फूर्जितेन लुलिता: स तु रे निरस्त: ॥आयु: श्रियं विभवमैन्द्रियमा विरिञ्चात् न इच्छामि ते ।श्री राम नाम जपन से सारे कष्ट जायें, श्रीरामाजपनसे सारा शुभ हो जाये ।श्रीराम रसना रटे जो सदा, श्रीराम रामय विश्व सारा सुहाये ।मीराबाई ने कहा है :---मेरो मन राम ही राम रटै रे ।रामनाम जप लीजै प्रानी, कोतिक पाप कटै रे ॥डंको नाम सुरतकी डोरी, कलियां प्रोम चढाऊं ए माय, प्रेमको ढोल बन्यो अति भारी, मगन हो गुण गाऊं ए माय ।तन करूं ताल अमन करूं ढपली, सोती सुरत जगाऊँ ए माय, कीर्तन करूं मैं प्रीतम अगे, सो अमरापुर पाऊं ए माए ।मो प्रबला पर किरपा कीजो, सो प्रमरापुर पाऊं ए माए ।मो प्रबला पर किरपा कीजो, गुणा गोविंद का गाऊं ए मायम मीरा के प्रभु गिरधर नागर रज चरणों की पाऊं ए माय ।रामनाम मेरे मन बसियो रास रसियो रिफाऊं ए माय, रामरसियो रिफाऊं ए माय ।ये हि संस्पर्शजा भोगा दुखयोनय एव ते ।अद्यन्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध: ॥शिवो भूत्वा शिवं यजेत् ।करागे वसति लक्ष्मी: करमूले सरस्वती ।करमध्ये तु गोविंद: प्रभाते करदर्शनम् ॥कामानां ह्रदयसरोहं भवस्तु वृणो वरम् ।काम्यानां कर्मणं न्यासं संन्यासं कवयो विदु: ।यूयं नृलोके बत भूरिभागा लोकं पुनान अमुनयोऽभियन्ति ।येषां गृहानावसतीति साक्षाद गूढं परं ब्रम्हा मनुष्यलिंगम् ॥सा वा प्रयम् ॥सत्यं भूतहितं प्रोक्तम् ।तुलसी दया न छीङिए जव लग घट में प्राण ।हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥ N/A References : N/A Last Updated : November 11, 2016 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP