हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|ठाकुर प्रसाद| चतुर्थ स्कन्ध ठाकुर प्रसाद भागवत का उद्देश्य प्रथम स्कन्ध सूची द्वितीय स्कन्ध सूची तृतीय स्कन्ध सूची चतुर्थ स्कन्ध सूची पञ्चम स्कन्ध सूची षष्ठ स्कन्ध सूची सप्तम स्कन्ध सूची अष्टम स्कन्ध सूची नवम स्कन्ध सूची दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) दशम स्कन्ध (उत्तरार्ध) एकादश स्कन्ध सूची द्वादश स्कन्ध सूची प्रथम स्कन्ध द्वितीय स्कन्ध तृतीय स्कन्ध चतुर्थ स्कन्ध पञ्चम स्कन्ध षष्ठ स्कन्ध सप्तम स्कन्ध अष्टम स्कन्ध नवम स्कन्ध दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) दशम स्कन्ध (उत्तरार्ध) एकादश स्कन्ध द्वादश स्कन्ध ठाकुर प्रसाद - चतुर्थ स्कन्ध ठाकुर प्रसाद म्हणजे समाजाला केलेला उपदेश. Tags : bookthakur prasadठाकुर प्रसादहिन्दी चतुर्थ स्कन्ध Translation - भाषांतर दृढ श्रद्ध भक्ति से, दृढ प्रेम से जड भी चेतन बनता है ।जीवमात्र के साथ मौत्री रखो ।जगत: पितरो वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ॥क्रतुभ्रंषस्त्वत्त: कृतुफलविधानव्यसनिनो ध्रवंकर्तु: श्रद्धाविधुरमभिचाराय हि मखा: ।नमस्कार: प्रियो भानु: जलधाराप्रियो शिव: ।अलंकारप्रियो कृष्ण: ब्रम्हाणे मोदकप्रिय: ॥गीता जी में तप की व्याख्या करते हुए कहा गया है ।भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ।ध्रुवाख्यान स्वामी शंकराचार्य इसीलिए तो आज्ञा देते हैं कि :---स्वाद्वन्नं न तु याच्यतां विधिवसात्प्राप्तेन संतुष्यताम् ।वये पोर ते थोर हौनी गेले, वये थोर ते चोर हौनी मेले ।आराधयाधोक्षोजपादपद्म यदीच्छसेऽध्यासनमुतमो यथा ।अनन्यभावे निजधर्मभाविते ममस्यवस्थाप्य भजस्व पुरुषम् ॥दु:शीलो मातृदोषेन, पितृदोषेन मूर्खता ।कार्पण्यं वंशदोषेन, श्रात्मदोषाद दरिद्रता ॥ध्रुव का अटल निश्चय देखकर नारदजी ने कहा :---धमार्थकाममोक्षाख्यं य इच्छेच्छये आत्मन: ।एकमेव हरेस्तत्र कारणं पादसेवनम् ॥तस्मात् गच्छ भद्रं ते यमुनायास्तटं शुभम् ।पुण्यं मधुवनं यत्र सान्निध्यं नित्यदा हरे: ॥स्नान करने से शरीर की शुद्धि होती है ।दान करने से धन की शुद्धि होती है ।ध्यान करने से मन की शुद्धि होती है ।मैं तुम्हें एक मंत्र भी दे रहा हूँ ।ॐ नम: भगवते वासुदेवाय ।मासैरहं षङभिरमुष्य पादयोर्छायामुपेत्पापगत: ।मधोर्वनं मर्त्यदिद्दक्षया गत: ।योऽन्त: प्रविश्य मम वाचमिमां प्रसुप्तां संजीवयत्यखिलशक्तिधर: स्वधाम्ना ।अन्यांश्च हस्तच्रणश्रवणत्वगादीन् प्राणन्नमो भगवते पुरुषाय तुभ्यम् ॥उपनिषद में भी कहा है :---नायामत्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन ।यमैवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा वृणुते तनू स्वाम् ॥तुकाराम ने कहा है :---आधीं केला सत्सङ्ग तुका झाला पाडुरङ्ग ।त्याचे भजन राहिना मूळ स्वभाव जाईना ॥रामचरितमानस में भी कहा गया है :---पुत्रवती जुबती जग सोई ।उघुबर भगत जासु सुत होई ॥महाराज मनु कहते हैं :---तितिक्षया करुणया मैत्र्या चार्खिलजंतुषु ।समत्वेन च सर्वात्मा भगवान् संप्रसीदति ।सम्प्रसन्ने भगवति पुरुष: प्राकृतैर्गुणै: ।विमुक्तो जीवनिर्मुक्तो ब्रम्हानिर्वाणमृच्छति ॥अस अभिमान जाइ जनि मोरे ।मैं सेवक रघुपति पति मोरे ॥जितने तारे गगन में, उतने शत्रु होयं ।जा पै कृपा रघुनाथ की, बाल न बांका होय ॥गृहेष्वाविशतां चापि पुंसां कुशलकर्मणम् ।मद्वार्तायातयामानां न बन्धाय गृहा मता: ॥कृते प्रतिकृतम् कुर्यात एष धर्म: सनातन: ।यह है इन दोनो के अवतारों की भिन्नता ।दयया सर्वभूतेषु संतुष्टया येन केन वा ।सर्वेंन्द्रियोपशान्त्या च तुष्यत्याशु जनार्दन: ॥हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥अप्सरा मन में अभी तक बैठी हुई है ।अब पूर्वचित्त अप्सरा की कथा सुनिये । Last Updated : November 11, 2016 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP