हिंदी सूची|पूजा एवं विधी|नित्यकर्म-विधि:| सूर्योपस्थान नित्यकर्म-विधि: कर दर्शन प्रात:स्मरण वेदोक्त प्रातःस्मरण सूक्त स्नान की विधि सन्ध्योपासन विधि: तर्पण विधि: सूर्योपस्थान समर्पण नित्य होम विधि: बलिवैश्वदेव विधि: ब्रह्मयज्ञ विधि: संक्षिप्त भोजन विधि: शिवपूजनविधि: विष्णु पूजन विधि: राम पूजनविधि: हनुमत्पूजनविधि: दुर्गापूजनविधि: श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् शिवमहिम्न: स्तोत्रम् आदित्यहृदयस्तोत्रम् रामरक्षास्तोत्रम् महामृत्युञ्जयस्तोत्रम् अन्नपूर्णास्तोत्रम् चाक्षुषोपनिषद् सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तश्लोकी गीता चतु:श्लोकीभागवतम् विधीः - सूर्योपस्थान जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान, पूजा, संध्या, देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है । Tags : karmapoojavidhiकर्मपूजाविधीहिन्दी सूर्योपस्थान Translation - भाषांतर सूर्योपस्थानइसके बाद निम्नाङिकत मन्त्र पढकर सूर्योपस्थान सूर्य को प्रणाम एवं प्रार्थना करे---ॐ अद्दश्रमस्य केतवो विरश्मयो जनाँ२॥अनु। भ्राजन्तो ऽअग्नयो वथा । उपयामगृहीतोऽसि सूर्याय त्वा भ्राजायैष ते योनि: सूर्याय त्वा भ्राजाय । सूर्य भ्राजिष्ठ भ्राजिष्ठस्त्वं देवेष्वसि भ्राजिष्ठोऽहम्मनुष्येषु भूयासम् ॥ॐ ह, स: शुचिषद्द्वसुरन्तरिक्षसद्धोता व्वेदिषदतिथिर्दुरोणसत् ।नृपद्द्वरसद्दतसद्वयोमसदब्जा गोजा ऽऋतजा ऽअद्रिजा ऽऋतं बृहत् ॥‘प्रज्ञा की हेतुभूत एवं सम्पूर्ण पदार्थों का ज्ञान करानेवाली इन सूर्यदेव की किरणें समस्त प्राणियों के भीतर विशेषरूप से अनुगत व्याप्त देखी गयी हैं, जैसे देदीप्यमान अग्नि सर्वत्र व्याप्त देखी जाती है । हे सोम ! तुम उपयामपात्रद्वारा गृहीत अहो, मैं दीप्तिमान् सूर्यदेव के निमित्त तुम्हे ग्रहण करता हूँ । यह तुम्हारा स्थान है, मैं दीप्तिशाली भगवान् सूर्यदेव के लिये तुम्हें इस स्थान पर रखता हूँ । हे अत्यन्त देदीप्यामान सूर्यदेव ! जिस प्रकार तुम सब देवताओं में अत्यन्त प्रकाशमान हो, उसी प्रकार तुम्हारे प्रसाद से मैं भी मनुष्यों में अत्यन्त प्रकाशमान होऊ ।’‘हे सूर्यभगवान् ! आप अहङ्कार का नाश करनेवाले हंस, प्रकाश में गमन करनेवाले (शुचिषत्), अपने में सबको निवासित करनेवाले वसु, वायुरुप से अन्तरिक्ष मे गमन करनेवाले अन्तरिक्षसत्, देवों को बुलानेवाले होता, अग्निरूप से वेदी पर स्थित होनेवाले वेदिषत् सबके पूजनीय अतिथि, यज्ञशाला में आहवनीयादि अग्निरूप से प्राप्त होनेवाले दुरोणसत् प्राणरूप से मनुष्यों में विचरनेवाले नृषत्, श्रेष्ठ स्थानों में गमन करनेवाले वरसत्, यज्ञ में प्राप्त होनेवाले ऋतसत् और आकाश में विचरनेवाले (व्योमसत्) हैं तथा आप जल में उत्पन्न होनेवाले (अब्जा), चार प्रकार के प्राणियों के रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न होनेवाले गोजा, सत्य से उत्पन्न होनेवाले ऋतजा, पर्वतों में उत्पन्न होनेवाले (अद्रिजा) एवं सत्थस्वरूप और महान् हैं । मै आपको प्रणाम करता हूँ ।’इसके पश्चात् दिग्देवताओं को पूर्वादि क्रम से नमस्कार करे---‘ॐ इन्द्राय नम:’ प्राच्यै ॥ ‘ॐ अग्नये नम:’ आग्नेय्यै ॥ ‘‘ॐ यमाय नम:’ दक्षिणायै ॥ ॐ निऋतये नम:’ नैऋत्यै ॥‘ॐ वरुणाय नम:’ पश्चिमायै ॥ ‘ॐ वायवे नम: वायव्यै ॥‘ॐ सोमाय नम:’ उदीच्यै ॥ ‘ॐ ईशानाय नम:’ ऐशान्यै ॥‘ॐ ब्रह्मणे नम:’ ऊर्ध्वायै । ‘ॐ अनन्ताय नम:’ अधरायै ॥इसके बाद जल में नमस्कार करे---ॐ ब्रह्मणे नम: । ॐ अग्नये नम: । ॐ पृथिव्यै नम: ।ॐ ओषधिभ्यो नम: । ॐ वाचे नम: । ॐ वाचस्पतये नम: ।ॐ महद्भ्यो नम: । विष्णवे नम: । ॐ अद्भ्यो नम: ।ॐ अपाम्पतये नम: । ॐ वरुणाय नम: ॥ N/A References : N/A Last Updated : May 24, 2018 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP