विधीः - कर दर्शन

जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान, पूजा, संध्या, देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।


वागीशाद्या: सुमनस: सर्वार्थानामुपक्रमे ।
यं नत्वा कृतकृत्या: स्युस्तं नमामि गजाननम् ॥१॥
अथोच्यते द्विजातीनां नित्यकर्म गथाविधि ।
यत्कृत्वा पुण्यमाप्नोति तस्मान्नित्यं समाचरेत् ॥२॥

कर-दर्शन
प्रत्येक मनुष्य प्रात:काल ब्राह्ममुहूर्त में उठकर सर्वप्रथम अपने दोनों हाथों का दर्शन करते हुए नीचे लिखे हुए मन्त्र को बोलें---
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती ।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम् ॥
(आचारप्रदीप)

‘मनुष्य के दोनों हाथों के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती और मूल में ब्रह्मा रहते हैं । अत: प्रात:काल सर्वप्रथम अपने हाथों का दर्शन करना चाहिये ।’

पृथिवी-प्रार्थना
पश्चात् पृथिवी माता को हाथ से स्पर्श कर प्रणाम करें और पादस्पर्श के लिये क्षमा माँगते हुए पृथिवी पर पैर रक्खें ।
समुद्रवसने देवि ! पर्वतस्तनमण्डले ।
जगन्मातर्नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥
(मदनपारिजात)

‘हे जगन्मात: ! हे समुद्ररूपी वस्त्रों को धारण करनेवाली ! और पर्वतरूप स्तनों से युक्त पृथिवी देवि ! तुम को नमस्कार है । तुम मेरे पादस्पर्श को क्षमा करो ।’
पश्चात् हाथ, मुख धोकर अपने गुरु, माता, पिता आदि गुरुजनों को प्रणाम करें । अनन्तर गणेश आदि देवताओं का प्रातःस्मरण करें ।

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Last Updated : May 24, 2018

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