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शूद्रा
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শূদ্রাণী
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ਸ਼ੂਦ੍ਰਾਣੀ
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शूद्राणी
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ଶୁଦ୍ରାଣୀ
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શૂદ્રાણી
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शुद्रीण
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शूद्रीण
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شوٗدرٛین
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শূদ্রা
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শূদ্রী
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শূদ্রপত্নী
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महाशूद्रा
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शूद्राभार्य्य
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लोहमालक
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शूद्रापरिणयन
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शूद्रापुत्त्र
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शूद्रावेदन
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अनन्तरजात
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मधुश्रेणि
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प्रायश्चित्तमयूख - प्रायश्चित्त ६ वे
विधिविहित नित्यकर्म (संध्यादि) न केल्यामुळे, पाप केल्याने व सुरा इत्यादि निषिद्ध पदार्थांचे सेवन केल्यानें त्याच्या शुद्धिसाठी जें कर्म सांगण्यात येतें तें प्रायश्चित्त होय.
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शूद्रावेदिन्
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कर्मकार
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सौधन्वन
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गद्धेनें खेत खाया, पाप ना पुन
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गद्ध्याने खाल्लें पाप ना पुण्य
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उद्बन्ध
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विष्णुस्मृतिः - अध्यायः २६
स्मृतिग्रंथ म्हणजे धर्मशास्त्रावरील एक आवश्यक वचनांचा भाग.
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वेदिन्
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महानंदिन्
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चंद्रगुप्त
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ब्राह्मणांचे कसब - चाल नववी
हिंदुस्थानात ब्राह्मण सत्ताधारी होण्यापूर्वी या पुण्यक्षेत्री परशुरामाने महारांना महाअरीत पाताळी कसे घातले याविषयी हा पोवाडा.
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भविष्यपर्व - एकविंशोऽध्यायः
महर्षी व्यासांनी रचलेला हा महाभारताचा पुरवणी ग्रंथ आहे.
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अर्य
Meanings: 21; in Dictionaries: 4
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तुरी
Meanings: 17; in Dictionaries: 10
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प्रायश्चित्तमयूख - प्रायश्चित्त ४ थे
विधिविहित नित्यकर्म (संध्यादि) न केल्यामुळे, पाप केल्याने व सुरा
इत्यादि निषिद्ध पदार्थांचे सेवन केल्यानें त्याच्या शुद्धिसाठी जें
कर्म सांगण्यात येतें तें प्रायश्चित्त होय.
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पराशरस्मृतिः - द्वितीयोध्यायः
स्मृतिग्रंथ म्हणजे धर्मशास्त्रावरील एक आवश्यक वचनांचा भाग.
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श्रीसप्तशतीगुरुचरित्र - अध्याय ४८
श्रीसप्तशतीगुरुचरित्र वाचल्याने गुरूचरित्र वाचल्याचेच समाधान आणि पुण्य मिळते.
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पूर्वभागः - अध्यायः ४०
अठरा पुराणांमध्ये भगवान् शंकराची महान महिमा लिंगपुराणात वर्णिलेली आहे. यात ११००० श्लोक आहेत. प्रथम योग आणि नंतर कल्प असे विवेचन गुरू वेदव्यास यांनी या पुराणात सांगितले आहे. हा शिव पुराणाच पूरक ग्रंथ आहे.
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उत्तरखण्डः - अध्यायः ८२
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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भविष्यपर्व - तृतीयोऽध्यायः
महर्षी व्यासांनी रचलेला हा महाभारताचा पुरवणी ग्रंथ आहे.
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काव्यरचना - मानवी स्त्रीपुरुष
महात्मा फुल्यांनी हे काव्य व्यक्तिमात्रास अनुलक्षुन लिहिले नसून फक्त उपमापर लिहून दिलगिरी व्यक्त केली.
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अजप
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पारशव
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द्वितीयोऽध्याय: - श्लोक १२१ ते १४०
देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।
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प्रथमोऽध्यायः - श्लोक २१ ते ४०
देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।
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प्रेतकाण्डः - अध्यायः ३९
विष्णू पुराणाचा एक भाग असलेल्या गरूड पुराणात मृत्यूनंतरच्या स्थितीबद्दलची चर्चा आहे, शिवाय श्रद्धाळू हिंदू धर्मीयांमध्ये मृत्यूनंतर जी विविध क्रिया कर्मे केली जातात, त्याला गरूडपुराणाची पार्श्वभूमी आहे.
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उत्तरखण्डः - अध्यायः ७२
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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अष्टचत्वारिंशोsध्याय:
श्री. प. प.वासुदेवानन्दसरस्वतीकृत श्रीगुरुचरित्रकाव्य
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मानसारम् - वास्तुप्रकरणम्
'मानसारम्' वास्तुशास्त्रावरील एक प्राचीन ग्रंथ आहे.
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