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कुष्ठरोगोपशमनव्रत

रोग हनन व्रत - कुष्ठरोगोपशमनव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


कुष्ठरोगोपशमनव्रत

( भगवान् शङ्कर ) - राजयक्ष्मादिके समान यह रोग भी पूर्वजन्ममें किये हुए अगणित जीवोंकी हत्या - जैसे महापापोंका परिणाम है । किसी मनुष्य के शरीरमें इस रोगका एक छींटा भी दीख जाय तो उसके प्रति जनसमाजकी अश्रद्धा और अरुचि हो जाती हैं । आयुवेंदके अनुसार यह रोग अठारह प्रकारका होता है तथा शरीरगत वात, पित्त और कफके कुपित होने एवं रक्त - मांस - त्वचा और जलके बिगड़ जानेसे इसका उदय होता है । उन अठारह भेदोंमेंसे कपाल, उदुम्बर, मण्डल, सिध्म, काकणक, पुण्डरीक और ऋक्ष - जिह्ना - ये सात ' महाकुष्ठ ' माने गये हैं और कुष्ठ, गजचर्म, चर्मदल, विचर्चिक, विपादिक, पाषा, कच्छु, विस्फोटक, दद्रु, किटिटस और अलसक - ये ग्यारह ' क्षुद्रकुष्ठ ' हैं । इनमें किस दोषसे कौन - सा कुष्ठ होता तथा किस प्रकार और कैसा कष्ट देता हैं, यह आयुवेंदके मान्यतम ग्रन्थोंमें विस्तारके साथ बतलाया गया है तथा वहीं इसको दूर करनेके लिये पृथक् - पृथक् उपाय भी बताये गये हैं । परंतु बहुत - से मनुष्योंकी कोढ़ अनेक उपाय करनेपर भी नहीं मिटती - बढ़ती ही जाती है । इससे जान पड़ता है, उनके पूर्वकृत पापोंकी निवृत्ति नहीं हुई है । कर्मविपाकसंग्रहमें कुष्ठकी उत्पत्तिके मुख्य कारण इस प्रकार बतलाये गये हैं - पूर्वजन्ममें गौ - ब्राह्मणादिकी हत्या करने, घर, खेती या जन्तुओंको जलाने तथा दीन - हीन या अपाहिज ( लूले - लँगड़े, अन्धे - बहरे और असमर्थ ) आदिका सर्वस्व हरण करने आदि कारणोंसे कुष्ठ होता है । पापकी मात्राके अनुसार ही कुष्ठ - रोगकी भी मात्रा होती है और कोढ़ी मनुष्योके साथ खाने - पीने, उनके वस्त्रादि धारण करने तथा उनके श्वासोच्छ्वासका स्पर्श होने आदिसे यह रोग एकसे दूसरेंमें प्रविष्ट होता है । वास्तवमें इससे बचते रहना ही अच्छा हैं । यदि इसमें रोगीके साथ आहार - विहारादिका सम्बन्ध रखा जाय तो यह एकसे दूसरेमें और दूसरेसे तीसरेमें फैल जाता है । सूर्यारुणने इसके प्रतीकारका यह उपाय बतलाया है कि रोगीकी जितनी सामर्थ्य हो उतनी तौलके सुवर्णका वृषभ ( नन्दिकेश्वर ) बनवाकर उसको रेशमी वस्त्रोंसे सुशोभित करे । फिर गन्ध - पुष्पादिसे चर्चित करके

' मम पूर्वजन्मार्जितसमस्तपापनिसरनपूर्वकं प्रस्तुतकुष्ठोपशमनकामनया शिवप्रीतये सुवर्णवृषभं वयोवृद्धाय वेदाभ्यासिने सत्पात्रब्राह्मणायाहं दास्ये ।'

इस संकल्पके साथ उसका दान करे और रात्रिमें एक समय भोज करे ।

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Last Updated : January 16, 2012

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