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प्लीहोदरहरव्रत

रोग हनन व्रत - प्लीहोदरहरव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


प्लीहोदरहरव्रत

( मन्त्नमहोदधि ) -

भृतकाध्यापक ( नौकरी लेकर पढ़ानेवालों ) के या कन्याको दूषित करनेवालोंके ' प्लीहा ' - एक प्रकारकी उदरग्रन्थि, जो पेटके पार्श्व भागमें होती हैं, अत्यन्त छोटी उत्पन्न होकर यथाक्रम बहुत बड़ी हो जाती है । आयुवेंदके अनुसार विदाही ( बहुत दाहन करनेवाले ) तथा अभिष्यन्दी ( उदरगत रक्तछिद्र रोकनेवाले ) अन्नादि पदर्थोंके नितन्तर खाते रहनेसे प्लीहा ( तिल्ली ) होती है और बेर - तुल्यसे बढ़कर तरबूजके तुल्य हो जाती है । इसको घटानेके लिये अति पवित्रताके साथ ब्रह्मचर्यका पालन करके

' यो यो हनूमन्त फलफलित धगधगित आयुराषफुरुडाह ' -

इस मन्त्नके दस हजार जप करे और फिर प्लीहावाले मनुष्यको सीधा लिटाकर उसके उदरपर नागवल्लीदल ( नागरबेलके पत्ते ) रखे । पत्तोंके ऊपर आठ तह किया हुआ कपड़ा रखे और कपड़ेके ऊपर सूखे बाँसके पतले - पतले टुकड़े रखे । इसके बाद बेरकी सूखी लकड़ी लेकर उसको जंगली पत्थरसे उत्पन्न की हुई आगसे जलावे और प्लीहावाले मनुष्यके पेटपर रखे हुए वंशशकल ( बाँसके टुकड़ों ) को उपर्युक्त हनुन्मन्त्नके उच्चारणके साथ ( उस जलती हुई लकड़ीसे ) सात बार ताड़िया करे । इससे उदरगत प्लीहा शान्त होती है । उपर्युक्त विधान सात बार करना चाहिये ।

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Last Updated : January 16, 2012

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