हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|बहुजिनसी| ॥ समास सातवां - जनस्वभावनिरूपणनाम ॥ बहुजिनसी ॥ समास पहला - बहुदेवस्थाननिरूपणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - सर्वज्ञसंगनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - निस्पृहसिकवणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - देहदुर्लभनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - करंटेपरीक्षानिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - उत्तमपुरुषनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - जनस्वभावनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - अंतरदेवनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - निद्रानिरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - श्रोताअवलक्षणनिरूपणनाम ॥ बहुजिनसी - ॥ समास सातवां - जनस्वभावनिरूपणनाम ॥ ‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास सातवां - जनस्वभावनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ जनों का लालची स्वभाव । आरंभ में ही कहते देव । याने मुझे कुछ देव । ऐसी वासना ॥१॥ भक्ति कुछ भी ना करे । और प्रसन्नता की इच्छा धरे । जैसे कुछ भी सेवा न करते । स्वामी से मांगे ॥२॥ कष्ट बिन फल नहीं । कष्ट बिन राज्य नहीं । किये बिन होता नहीं । साध्य जनों में ॥३॥ आलस से काम बिगड़ता । यह तो प्रत्यय आता । कष्ट से जी चुराते । हीन जन ॥४॥ पहले कष्ट के दुःख सहते । वे आगे सुख के फल भोगते । पहले आलस से सुखी होते । उन्हें आगे दुःख ॥५॥ इहलोक अथवा परलोक । दोनो ओर एक सा विवेक । दीर्घसूचना का कौतुक । समझना चाहिये ॥६॥कमाया उतना खा जाते । वे कठिन समय में मर जाते। दीर्घसूचना से बर्ताव करते । वे ही भले ॥७॥इहलोक के लिये संचितार्थ । परलोक के लिये परमार्थ । संचित के बिना व्यर्थ । जीते जी मर जाते ॥८॥एक बार मरने से छूटे ना । पुनः जन्म जन्मांतर में यातना । स्वयं को मारे बचाये ना । वह आत्महत्यारा ॥९॥ प्रतिजन्म में आत्मघात । कौन करें गणित । इस कारण जन्ममृत्य । कैसे चूकें ॥१०॥ देव सब कुछ करते । ऐसे प्राणिमात्र कहते । उसकी भेंट का लाभ ये । अकस्मात् हुआ ॥११॥ विवेक का लाभ होये । जिससे परमात्मा का ठांव मिले । विवेक देखने पर मिला ये । जनों को विवेक ॥१२॥ देव देखें तो है एक । परंतु करता अनेक । उन अनेकों को एक । ना कहें ॥१३॥ देव का कर्तृत्व और देव । समझना चाहिये अभिप्राव । समझे बिन अनेक जीव । यूं ही बोलते ॥१४॥व्यर्थ ही बोलते मूर्खता से । बडप्पन दिखाने के लिये । तृप्ति के लिये करते जैसे । अलग ही उपाय ॥१५॥जिन्होंने उदंड कष्ट किये । वे भाग्य भोगते रहे । अन्य वे बोलते ही रहे । अभागे जन ॥१६॥ अभागों के अभागे लक्षण । समझ जाते विचक्षण । भलों के उत्तम गुण । अभागों को ना समझे ॥१७॥फैली उसकी कुबुद्धि । वहां कैसे होगी शुद्धि । कुबुद्धि ही सुबुद्धि । ऐसा उसे लगे ॥१८॥ मनुष्य जिसने होश खोया । क्या सच माने उसका । विचार के नाम पर जहां । शून्याकार ॥१९॥ विचार से इहलोक परलोक । विचार से होता है सार्थक । विचार से नित्यानित्यविवेक । देखना चाहिये ॥२०॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे जनस्वभावनिरूपणनाम समास सातवां ॥७॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP