बहुजिनसी - ॥ समास पांचवां - करंटेपरीक्षानिरूपणनाम ॥

‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।


॥ श्रीरामसमर्थः ॥
अनाज उदंड गिना । परंतु वजन नहीं भक्षण किया । वैसे ही विवरण बिना हुआ । प्राणीमात्र का ॥१॥
कंठस्थ कहे तो रुके ना । पूछे तो कुछ समझे ना । अनुभव देखे तो अनुमान । में पडे ॥२॥
शब्दरत्नों को परखें । प्रत्यय की चुनकर लें । बाकी सारे त्याग दें । एक ओर ॥३॥
नामरूप सारा त्यागें । फिर अनुभव सम्मुख रखें । सार असार एक ही समझें। यह मूर्खता ॥४॥
लेखक का कहना समझ लें । अथवा व्यर्थ पढते जायें । इस दृष्टांत से समझे । कोई एक ॥५॥
जहां नहीं समझाने वाला । वहां सारा कानाफूसी का मामला । पूछने पर झल्लाना । वक्ता करे ॥६॥
नाना शब्द इकट्ठे किये । प्रचीत बिना उपाय किये । परंतु सारे ही व्यर्थ गये । समुदाय में ॥७॥
मुठ्ठी भर अनाज डाला । और जल्दी जल्दी पाट चलाया । उससे आटा बारीक पिसा । यह तो होये ना ॥८॥
ग्रास पर खाये ग्रास । चबाने को नहीं अवकाश । अन्न से भर गया मुख । आगे कैसे ॥९॥
सुनो फडनिसी के लक्षण । बेरंग ना होने दे एक भी क्षण । समस्तों के अंतःकरण । सम्हालते जायें ॥१०॥
सूक्ष्म नाम सुख से लें । उनके रूपों को पहचानें । पहचानकर समझाईयें । श्रोताओं को ॥११॥
समस्या पूर्ति से सुखी होते । श्रोता सारे आनंदित होते । सारे क्षण क्षण वंदन करते । गोसावी को ॥१२॥
समस्या पूर्ति से वंदन करते । समस्या पूर्ति ना हो तो निंदा करते । गोसावी चिढचिढ करते । किस हिसाब से ॥१३॥
शुद्ध सोना देखकर लें । कसौटी लगाकर उसे तपायें । श्रवण मनन से जानें । प्रत्यय को ॥१४॥
वैद्य की प्रचिती आये ना । व्यथा से दूर हटे ना । और लोगों पर गुस्सा करना । किस हिसाब से ॥१५॥
खोटा कहीं भी चले ना । खोटे को कोई माने ना । इसकारण अनुमान । में लायें खरा ॥१६॥
लिखना ना आते व्यापार किया । कुछ एक दिन चला । पूछने जांचनेवाला मिला। तब सारा झूठ ॥१७॥
सारे हिसाब का ज्ञान रखें । प्रत्यक्ष साक्षी से कहें। फिर जांचनेवाला क्या करें । कहो तो ॥१८॥
स्वयं अपना ही उलझ जाये । समझावन होगी कैसे । अज्ञानी कोई एक होने से । विपत्ति आती ॥१९॥
सामर्थ्य बिन युद्ध पर गया । वो पूर्णतः लुट गया । किस को दोष देगा । कौन कैसे ॥२०॥
जो प्रचीति में खरा उतरे । उसे लें अत्यादर से । अनुभव बिना जो उत्तर आये । वे छिलकों समान ॥२१॥
सिखाने जायें तो क्रोधित होये । परंतु आगे फजीहत होये । खोटा निश्चय तात्काल उडे । लोगों में ॥२२॥
खरा त्याग खोटा लेने पर । निंदित होने में क्या समय । त्रिभुवन में नारायण ने । न्याय किया ॥२३॥
यह न्याय छोडें तो अंत में । सारा जग ही पीछे पड़े । झगडते झगडते जनों में । दुःखी कितना होये ॥२४॥
अन्याय ने बहुतों को आधार दिया । यह देखा ना सुना । पागलों ने व्यर्थ ही पक्ष लिया । असत्य का ॥२५॥
असत्य याने पाप । सत्य जानिये स्वरूप । दोनों में साक्षेप । किसका करें ॥२६॥
माया में बोलना चलना सच्चा । माया ना हो तो बोलना कैसा । इसकारण निःशब्द का । मूल खोजें ॥२७॥
वाच्यांश जानकर त्यागें । लक्ष्यांश विवरण कर ग्रहण करें । इससे निःशब्द के मूल में । घोटाला दिखे ना ॥२८॥
अष्टधा प्रकृति पूर्वपक्ष । छोडकर अलक्ष्य की ओर लगाये लक्ष्य । मननशील परम दक्ष । वही यह जाने ॥२९॥
नाना भूस और कण । समान ही कहना अप्रमाण । रस त्याग छिलका कौन । सयाना सेवन करे ॥३०॥
पिंड में नित्यानित्यविवेक । ब्रह्मांड में सारासार अनेक । सकल खोज एक । सार लें ॥३१॥
माया के लिये कोई एक । अन्वय और व्यतिरेक । वह माया ना हो तो विवेक । कैसा करें ॥३२॥
तत्त्व से तत्त्व सारा खोजें । महावाक्य में प्रवेश करें। आत्मनिवेदन से प्राप्त करें। समाधान ॥३३॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसवादे करंटपरीक्षानिरूपणनाम समास पाचवा ॥५॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 09, 2023

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP