हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|बहुजिनसी| ॥ समास छठवां - उत्तमपुरुषनिरूपणनाम ॥ बहुजिनसी ॥ समास पहला - बहुदेवस्थाननिरूपणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - सर्वज्ञसंगनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - निस्पृहसिकवणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - देहदुर्लभनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - करंटेपरीक्षानिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - उत्तमपुरुषनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - जनस्वभावनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - अंतरदेवनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - निद्रानिरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - श्रोताअवलक्षणनिरूपणनाम ॥ बहुजिनसी - ॥ समास छठवां - उत्तमपुरुषनिरूपणनाम ॥ ‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास छठवां - उत्तमपुरुषनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ नाना वस्त्र नाना आभूषण । इनसे शृंगारित करे तन । विवेक विचार राजकारण | से अंतरंग शृंगारिये ॥१॥ शरीर सुंदर सतेज । वस्त्र आभूषणों से किया सज्ज । अंतरंग में ना हो चातुर्यबीज । कदापि शोभा ना आये ॥२॥ वाचाल हेकड कठोर वचनी । अखंड रहता साभिमानी । अंतःकरण में न्याय नीति । का विचार ना करे ॥३॥ सनकी शीघ्रकोपी सदा । कदापि ना धरे मर्यादा । राजकारण में कदा । संवाद न साधे ॥४॥ ऐसे लौंद बेईमान । कदापि नहीं सत्यवचन । पापी अपस्मार जन । राक्षस जानें ॥५॥ समय एक जैसा रहे ना । नेम सहसा चलेना । नियम धरें तो अंतर पडता । राजकरण में ॥६॥ अति सर्वत्र वर्जित करें। प्रसंग देखकर चलें । हठनिग्रह न करें। विवेकी पुरुष ॥७॥ बहुत ही करे जो हठ । वहां आ जाती फूट । किसी एक का अंत । होना चाहिये ॥८॥ अच्छा है कि ईश्वर साभिमानी । विशेष तुलजाभवानी। परंतु सदा करें करनी । विचारांती ॥९॥ अखंड ही सावधान । बहुत क्या करें सूचन । परंतु कुछ एक अनुमान । में लाना चाहिये ॥१०॥ समर्थ के पास बहुत जन । रहना चाहिये साभिमान । निश्चल करके मन । लोग रहते ॥११॥ म्लेंच्छ दुर्जन उदंड । बहुत दिनों से चल रहा विद्रोह। इस कारण अखंड । सावधान रहें ॥१२॥ सकल कर्ता वह ईश्वरु । उसने किया अंगिकारु । उस पुरुष का विचारु । विरला ही जाने ॥१३॥ न्यायनीति विवेक विचार । नाना प्रसंग प्रकार । परखना परांतर । देन ईश्वर की ॥१४॥ महायत्न सावधानी से । समय पर धीरज धरे । अद्भुत ही कार्य करे । देन ईश्वर की ॥१५॥ यश कीर्ति प्रताप महिमा । उत्तम गुणों की नहीं सीमा । नहीं दूसरी उपमा । देन ईश्वर की ॥१६॥ देव ब्राह्मण आचार विचार । कई जनों को आधार । सदा हो परोपकार । देन ईश्वर की ॥१७॥ इहलोक परलोक देखना । सावधानी से रहना । बहुत जनों को सहन करना । देन ईश्वर की ॥१८॥ देवों का समर्थन करना । ब्राह्मण की चिंता करना । बहुत जनों को पालना । देन ईश्वर की ॥१९॥धर्मस्थापना के नर । वे ईश्वर के अवतार । हुये है आगे होंगे । देन ईश्वर की ॥२०॥ उत्तम गुणों का ग्राहक । तर्क तीक्ष्ण विवेक । धर्मवासना पुण्यश्लोक । देन ईश्वर की ॥२१॥ सभी गुणों में सार । तजविज विवेक विचार । जिससे पा सके पार । इहलोक परलोक का ॥२२॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे उत्तमपुरुषनिरूपणनाम समास छठवां ॥६॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP