हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|बहुजिनसी| ॥ समास चौथा - देहदुर्लभनिरूपणनाम ॥ बहुजिनसी ॥ समास पहला - बहुदेवस्थाननिरूपणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - सर्वज्ञसंगनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - निस्पृहसिकवणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - देहदुर्लभनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - करंटेपरीक्षानिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - उत्तमपुरुषनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - जनस्वभावनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - अंतरदेवनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - निद्रानिरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - श्रोताअवलक्षणनिरूपणनाम ॥ बहुजिनसी - ॥ समास चौथा - देहदुर्लभनिरूपणनाम ॥ ‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास चौथा - देहदुर्लभनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ देह के कारण गणेशपूजन । देह के कारण शारदावदन । देह के कारण गुरु सज्जन । संत श्रोता ॥१॥ देह के कारण कवित्व होते । देह के कारण अध्ययन करते । देह के कारण अभ्यास करते । नाना विद्याओं का ॥२॥ देह के कारण ग्रंथलेखन । नाना लिपियों की पहचान । नाना पदार्थशोधन । देह के कारण ॥३॥ देह के कारण महाज्ञानी । सिद्ध साधु ऋषि मुनि । देह के कारण प्राणी । करते तीर्थाटन ॥४॥ देह के कारण श्रवण होता । देह के कारण मनन बढता । देह के कारण देह में अपना होता। मुख्य परमात्मा ॥५॥ देह के कारण कर्ममार्ग । देह के कारण उपासनामार्ग । देह के कारण ज्ञानमार्ग । भूमंडल में ॥६॥ योगी वीतरागी तापसी । देह के कारण नाना सायासी । देह के कारण ही । आत्मा प्रकट हो सके ॥७॥इहलोक आणि परलोक । देह के कारण सकल सार्थक । देह बिना निरर्थक । सब कुछ ॥८॥ पुरश्चरण अनुष्ठान । गोरांजन धूम्रपान । शीतोष्ण पंचाग्नि साधन । देह के कारण ॥९॥ देह के कारण पुण्यशील । देह के कारण पापी केवल । देह के कारण अनर्गल । शुचिष्मंत ॥१०॥ देह के कारण अवतारी । देह के कारण वेषधारी । नाना विद्रोह पाखंडकारी । देह के कारण ॥११॥ देह के कारण विषय भोग । देह के कारण सकल त्याग । होते जाते नाना रोग । देह के कारण ॥१२॥ देह के कारण नवविधा भक्ति । देह के कारण चतुर्विध मुक्ति । देह के कारण नाना युक्ति । नाना मत ॥१३॥ देह के कारण दानधर्म । देह के कारण नाना मर्म । देह के कारण पूर्वकर्म । कहते जनों में ॥१४॥ देह के कारण नाना स्वार्थ । देह के कारण नाना अर्थ । देह के कारण होते है व्यर्थ । और धन्य ॥१५॥देह के कारण नाना कला । देह के कारण न्यून निराला । देह के कारण उत्कठा । भक्तिमार्ग की ॥१६॥नाना सन्मार्गसाधन । देह के कारण टूटते बंधन । देह के कारण निवेदन । होता मोक्ष लाभ का ॥१७॥देह सभी में उत्तम । देह में रहता पुरुषोत्तम । सारे घट में आत्माराम । विवेकी जानते ॥१८॥ देह के कारण नाना कीर्ति । अथवा नाना अपकीर्ति । देह के कारण होती जाती। अवतारमालिका ॥१९॥ देह के कारण नाना भ्रम । देह के कारण नाना संभ्रम । देह से ही उत्तमोत्तम । पद भोगते ॥२०॥ देह के कारण सब कुछ । देह के बिना नहीं कुछ । जगह पर ही आत्मा हो लुप्त । जैसे था ही नहीं ॥२१॥देह परलोक के लिये तारक । नाना गुणों का गुणागर । नाना रत्नों का विचार । देह से ही ॥२२॥ देह से ही गायनकला । देह से ही संगीतकला । देह से ही अंतर्कला । जान पाते ॥२३॥ देह ब्रह्मांड का फल । देह दुर्लभ ही केवल । परंतु इस देह में निर्मल । समझाकर लें ॥२४॥ देह के कारण छोटे बडे । अपने अपने व्यापार करते । उनमें भी छोटे बडे । कई एक ॥२५॥ जो जो देह धारण कर आये । वे सब कुछ तो कर गये । हरिभजन से पावन हुये । कई एक ॥२६॥ अष्टधा प्रकृति के मूल । संकल्प रूप ही केवल । नाना संकल्पों से देहफल । लेकर आये ॥२७॥ हरिसंकल्प था मूलतः । वही अब फल में दिखता । नाना देहांतर में तत्त्वतः । खोजने पर समझे ॥२८॥बेली का मूल बीज । बेली को उदक रूप समझ । आगे फल में बीज । मूल के अंश में ॥२९॥ मूल के कारण आते फल । फल के कारण होती मूल । इसी तरह से भूमंडल पर । होते रहता ॥३०॥अस्तु कुछ भी करना । कैसे हो देह के बिना । देह का सार्थक करना । याने अच्छा ॥३१॥ आत्मा के कारण देह हुआ । देह के कारण आत्मा टिका । उभय योग से चलता गया । कार्यभाग ॥३२॥गुप्तरूप में करे चोरी से । वह आत्मा को समझ में आये । कर्तृत्व इसी स्वभाव से । सब कुछ ॥३३॥ देह में आत्मा रहता । देह पूजा से आत्मा संतुष्ट होता । देह पीडा से आत्मा क्षुब्ध होता । प्रत्यक्षरूप से ॥३४॥ देह के अभाव से पूजा पाये ना । देह के बिना पूजा फले ना । जनों में जनार्दन इस कारण । संतुष्ट करें जनों को ॥३५॥ उदंड प्रकट हुआ विचार । धर्मस्थापना तद्नंतर । वहीं पूजा का अधिकार । पुण्यशरीर को ॥३६॥ सभीका भजन करे अगर । मूर्ख कहलाता शरीर । गधे की पूजा करने पर । उसे क्या समझता ॥३७॥पूज्य को पूजा का अधिकार । व्यर्थ ही सतुष्ट करे इतर । न दुखाये किसी का अंतरंग । यही भला ॥३८॥सकल जगदंतर का देव । क्षुब्ध हो तो रहने को कहां ठांव । जग से अलग जनों का उपाव । और नहीं ॥३९॥ परमेश्वर के अनंत गुण । मनुष्य क्या बताये पहचान । परंतु अध्यात्मग्रंथश्रवण । होने से समझे ॥४०॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे देहदुर्लभनिरूपणनाम समास चौथा ॥४॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP