हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|देवशोधन नाम| ॥ समास सातवां - सगुणभजननाम ॥ देवशोधन नाम ॥ समास पहला - देवशोधननाम ॥ ॥ समास दूसरा - ब्रह्मपावननाम ॥ ॥ समास तीसरा - मायोद्भवनाम ॥ ॥ समास चौथा - ब्रह्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - मायाब्रह्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - सृष्टिकथननाम ॥ ॥ समास सातवां - सगुणभजननाम ॥ ॥ समास आठवां - दृश्यनिरसननाम ॥ ॥ समास नववां - सारशोधननाम ॥ ॥ समास दसवां - अनिर्वाच्यनाम ॥ देवशोधन नाम - ॥ समास सातवां - सगुणभजननाम ॥ श्रीसमर्थ ने ऐसा यह अद्वितीय-अमूल्य ग्रंथ लिखकर अखिल मानव जाति के लिये संदेश दिया है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास सातवां - सगुणभजननाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ ज्ञान से दृष्य मिथ्या हुआ । फिर क्यों चाहिये भजन करना । उससे क्या प्राप्त हुआ । यह मुझे निरूपित कीजिये ॥१॥ ज्ञान से श्रेष्ठ कुछ ना । तो फिर क्यों चाहिये उपासना । जनों को कर के उपासना । क्या प्राप्त ॥२॥मुख्य सार वह निर्गुण । वहां दिखे ही ना सगुण । भजन करने का गुण । मुझे निरूपित कीजिये ॥३॥जो संपूर्ण नाशवंत । उसे भजें किंनिमित्य । सत्य त्यागकर असत्य । का कौन भजन करे ॥४॥ असत्य का प्रत्यय आया । फिर क्यों नेम लगाया । सत्य त्याग पसारा किया । किस कारण ॥५॥निर्गुण से मोक्ष होता । प्रत्यक्ष प्रत्यय आता । सगुण क्या देते हुये दिखता । कहिये स्वामी ॥६॥ सगुण को नाशवान बोलते । पुनः भजन करो कहते । फिर अब किस कारण ये । भजन करू ॥७॥ स्वामी के संकोच से बोल सके ना । और यह कुछ भी माने ना । साध्य हो जाने पर साधन का । प्रवर्तन किस कारण ॥८॥ ऐसा श्रोता बोले । शब्द बोले डरते डरते । इसका उत्तर सुनें । कहे वक्ता ॥९॥ गुरू के वचनप्रतिपालन । यह मुख्य परमार्थ का लक्षण । वचनभंग करते ही विलक्षण । सहज ही होता ॥१०॥ इस कारण आज्ञा को वंदन करें । सगुणभजन मानें । हे देव श्रोता कहे । क्या प्रयोजन ॥११॥ क्या माना उपकार । किसे हुआ साक्षात्कार । अथवा प्रारब्ध के अक्षर । मिटाये देव ने ॥१२॥ होनी तो ना पलटे । भजन से जन क्या पाते । यह अगर देखे । तो ना होता अनुमान कुछ भी ॥१३॥स्वामी की आज्ञा प्रमाण । कौन करेगा अप्रमाण । परंतु इसका क्या गुण । मुझे निरूपित करें ॥१४॥ सावधान । कहो ज्ञान के लक्षण । तुझे भी कुछ कर्म है या नहीं ॥१५॥ करना पड़े भोजन । करना पड़े उदकप्राशन । मलमूत्रत्याग लक्षण । वे भी छूटे ना ॥१६॥ जनों का समाधान रहे । पहचाने अपने पराये । और भजन ही छोड़ दे । यह कौन सा ज्ञान ॥१७॥ ज्ञान विवेक से मिथ्या हुआ । परंतु सब कुछ नहीं छोड़ दिया । फिर भजन ने ही क्या किया । बोल बापा ॥१८॥ साहेब देख लोट जाये । लाचारी हर समय दिखाये । और देव को न माने । यह कौन सा ज्ञान ॥१९॥हरिहरब्रह्मादिक । ये जिसके आज्ञाधारक । तू एक मानवी रंक । भजे भी ना तो क्या हुआ ॥२०॥ हमारे कुल में रघुनाथ । रघुनाथ से हमारा परमार्थ । जो समर्थ का भी समर्थ । देवों को छुडाये ॥२१॥उसके हम सेवकजन । सेवा करते हुआ ज्ञान । वहां अभाव रखने से पतन । पाओगे ही ॥२२॥ गुरू कहते सारासार । उसे कैसे कहें असार । तुझे क्या कहें विचार । सयाने समझते ॥२३॥ समर्थ के मन से टूटे । जानिये वही अदृष्ट खोटे । राज्यपद से अभागे । वंचित जैसे ॥२४॥ मन में लगे महान मैं ही । वह नहीं ब्रह्मज्ञानी । विचार देखने पर देहाभिमानी । प्रत्यक्ष दिखे ॥२५॥वस्तुभजन करे ना । न करे ऐसा भी कहे ना । तो फिर यह जानिये कल्पना । छुपकर रही ॥२६॥ ना वह ज्ञान ना वह भजन । व्यर्थ ही आया देहाभिमान । यहां नहीं अनुमान । प्रत्यय तेरा ॥२७॥ फिर अब ऐसे न करें । रघुनाथ भजन में लगें । वही ज्ञान कहें । विचलित न हो ऐसा ॥२८॥ करें दुर्जनों का संहार । भक्तजनों को आधार । ऐसा यह तो चमत्कार । रोकडा चले ॥२९॥ मन में धरें सो होता । विघ्न सारा ही नष्ट होता । करने पर रघुनाथ ने कृपा । प्रतीत आती ॥३०॥रघुनाथ भजन से ज्ञान हुआ । रघुनाथ भजन से महत्त्व बढा । इस कारण तूने करना । चाहिये पहले ॥३१॥ यह तो है सप्रचीत । और तुझे न आये प्रचीत । साक्षात्कार से ही निश्चित । प्रत्यय करें ॥३२॥ रघुनाथ स्मरण कर कार्य करें । वह तत्काल ही सिद्धि पाये । कर्ता राम ही रहे । अभ्यंतर में ॥३३॥ कर्ता राम मैं नहीं स्वयं । ऐसे सगुण निवेदन । निर्गुण में जो अनन्य । निर्गुण ही होता ॥३४॥ यदि कहें कि मैं कर्ता । कुछ भी नहीं होता सर्वथा । प्रचित देखना होता अब तत्परता । से देखो शीघ्र ॥३५॥ मैं कर्ता ऐसे कहेगा । उससे तू कष्ट पाता । राम कर्ता कहते ही पाता । यश कीर्ति प्रताप ॥३६॥ एक भावना के कारण । देव से होता भिन्न । राम कर्ता इस भावना कारण । होती उसकी कृपादृष्टि ॥३७॥ हम हैं दो दिनों के । और देव बहुत काल से । हम थोड़े से पहचान के । देव को त्रैलोक्य जाने ॥३८॥इस कारण रघुनाथ भजन । उसे मानते बहुत जन । ब्रह्मादिक आदि जन । राम भजन में तत्पर ॥३९॥ज्ञानबल से उपासना । हम भक्त अगर मानेना । फिर पतन इस दोष का । पायेंगे अभक्तपन से ॥४०॥अभिमान से देव की उपेक्षा करें । तो उसका वही जाने । अप्रमाण वह मंगलमय । नहीं है श्रेष्ठ ॥४१॥ देह से लगी उपासना । अहंभाव विवेक से बचे ना । ऐसी ये स्थिति सज्जना । अंतरंग की ॥४२॥ सकल मिथ्या हो जाता। यह राम भजन से समझता । यह दृश्य ज्ञानियों के मत से दिखता । स्वप्न जैसे ॥४३॥ मिथ्या स्वप्न विवंचना । वैसी सृष्टि की रचना । दृश्य मिथ्या साधुजन । को समझ में आये ॥४४॥आक्षेप हुआ श्रोताओं में । मिथ्या फिर क्यों दिखता हमें । इसका उत्तर अगले समास में । कहा गया है ॥४५॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सगुणभजननाम समास सातवां ॥७॥ N/A References : N/A Last Updated : December 01, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP