देवशोधन नाम - ॥ समास पहला - देवशोधननाम ॥

N/Aश्रीसमर्थ ने ऐसा यह अद्वितीय-अमूल्य ग्रंथ लिखकर अखिल मानव जाति के लिये संदेश दिया है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
चित्त सुचित करें । जो कहा उसे जी में धरें । हो कर सावधान बैठें । निमिष एक ॥१॥
किसी एक ग्राम या देश में । रहना होता है हमें । न भेंट लेने पर वहां के प्रभु से । सौख्य कैसे ॥२॥
इस कारण जिसे हो जहां रहना । उसने उस प्रभु से भेंट करना । याने फिर होता श्लाघ्यवाना । सभी कुछ ॥३॥
प्रभु की भेंट न लेने से । वहां मान्यता कैसे । अपना महत्त्व जाने में । देर न लगे ॥४॥
इस कारण राजा से रंक तक। कोई एक तो नायक । उससे मिलने का विवेक । विवेकी जानते ॥५॥
उससे न मिलकर उसके नगर में । रहे तो धरते बेगारी । वहां न करने पर भी चोरी । का आरोप लगे ॥६॥
इस कारण जो सयाना । जानिये उसे प्रभु से भेंट करना । ऐसे न करने पर हीन दीन । संसार उसका ॥७॥
ग्राम में श्रेष्ठ ग्रामाधिपति । उससे श्रेष्ठ देशाधिपति । देशाधिपति से भी नृपति । श्रेष्ठ जानें ॥८॥
राष्ट्र का प्रभु वह राजा । बहुराष्ट्र वह महाराजा । महाराजा का भी राजा । वह चक्रवर्ती ॥९॥
एक नगरपति एक गजपति । एक हयपति एक भूपति । सभी में चक्रवर्ती । श्रेष्ठ राजा ॥१०॥
अस्तु ऐसे सबका । एक ब्रह्मा निर्माणकर्ता । उस ब्रह्मा का भी निर्माता । कौन है ॥११॥
ब्रह्मा विष्णु और हर । इनका निर्माता वही श्रेष्ठ । वह पहचानिये परमेश्वर । नाना यत्न करके ॥१२॥
वह देव समझ में आये ना । तो यमयातना चूके ना । ब्रह्मांडनायक पहचान पाये ना । यह ठीक नहीं ॥१३॥
जिसने संसार में लाया । सारा ब्रह्मांड निर्माण किया । उसे न पहचान पाया । वही पतित ॥१४॥
इस कारण देव पहचानें । जन्म सार्थक ही करें । न समझे तो फिर सत्संग धरें । याने समझे ॥१५॥
जो जानता भगवंत । उसका नाम कहा है संत । जो शाश्वत और अशाश्वत । का निपटारा करे ॥१६॥
अचल अडिग देव । ऐसा जिसका अंतर्भाव । वही जानिये महानुभाव । संत साधु ॥१७॥
जो जनों के बीच रहता । मगर जनों से भिन्न बातें कहता । जिसके अंतरंग में ज्ञान जागता । वही साधु ॥१८॥
जानिये परमात्मा निर्गुण । उसीको कहिये ज्ञान । इससे भिन्न अज्ञान । सभी कुछ ॥१९॥
पेट भरने के कारण । करना नाना विद्याओं का अध्ययन । उसे कहते ज्ञान । मगर उससे सार्थक न होता ॥२०॥
देव पहचानो एक । वही ज्ञान है सार्थक । अन्य सभी निरर्थक । उदरविद्या ॥२१॥
जन्म भर पेट भरा । देह रक्षा करता रहा । आगे सभी व्यर्थ गया । अंतकाल में ॥२२॥
एवं पेट भरने की विद्या । उसे ना कहे सद्विद्या । सर्वव्यापक वस्तु सद्या । मिलती वह ज्ञान ॥२३॥
ऐसा जिसके पास ज्ञान । वही जानिये सज्जन । उसीसे समाधान । पूछना चाहिये ॥२४॥
अज्ञानी को मिले अज्ञान । वहां कैसे मिलेगा ज्ञान । अभागे को अभागे का दर्शन । हो तो भाग्य कैसा ॥२५॥
रोगी गया पास रोगी के । वहां कैसा स्वास्थ उसे । निर्बल को पास निर्बल के । आधार कैसा ॥२६॥
पिशाच के पास पिशाच गया । वहां क्या सार्थक हुआ । उन्मत से उन्मत्त मिला । उसे समझाये कौन ॥२७॥
भिखारी के पास मांगने पर भिक्षा । दीक्षाहीन के पास दीक्षा । उजाला चाहिये तो कृष्णपक्षा । से मिलेगा कैसे ॥२८॥
अबद्ध के पास गया अबद्ध । वह कैसे होगा सुबुद्ध । बद्ध से यदि मिले बद्ध । सिद्ध नहीं ॥२९॥
देही के पास गया देही । वह कैसे होगा विदेही । इस कारण ज्ञाता के सिवा नहीं । ज्ञान प्राप्त ॥३०॥
इस कारण ज्ञाता देखें । उससे अनुग्रह पायें । सारासारविचार से जीव पायें । मोक्ष ॥३१॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे देवशोधननाम समास पहला ॥१॥

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Last Updated : December 01, 2023

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