हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|देवशोधन नाम| ॥ समास पांचवां - मायाब्रह्मनिरूपणनाम ॥ देवशोधन नाम ॥ समास पहला - देवशोधननाम ॥ ॥ समास दूसरा - ब्रह्मपावननाम ॥ ॥ समास तीसरा - मायोद्भवनाम ॥ ॥ समास चौथा - ब्रह्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - मायाब्रह्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - सृष्टिकथननाम ॥ ॥ समास सातवां - सगुणभजननाम ॥ ॥ समास आठवां - दृश्यनिरसननाम ॥ ॥ समास नववां - सारशोधननाम ॥ ॥ समास दसवां - अनिर्वाच्यनाम ॥ देवशोधन नाम - ॥ समास पांचवां - मायाब्रह्मनिरूपणनाम ॥ श्रीसमर्थ ने ऐसा यह अद्वितीय-अमूल्य ग्रंथ लिखकर अखिल मानव जाति के लिये संदेश दिया है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास पांचवां - मायाब्रह्मनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ श्रोता पूछते ऐसे । माया ब्रह्म वे कैसे । श्रोता वक्ता के कारण से । निरूपण सुनें ॥१॥ब्रह्म निर्गुण निराकार । माया सगुण साकार । ब्रह्मा को नहीं पारावार । माया का है ॥२॥ ब्रह्म निर्मल निश्चल । माया चंचल चपल । ब्रह्म निरूपाधि केवल । माया उपाधिरूपी ॥३॥ माया दिखे ब्रह्म दिखे ना । माया भासे ब्रह्म भासे ना । माया नाश पाये ब्रह्म नाश पाये ना । कल्पांत काल में ॥४॥ माया रचे ब्रह्म रचे ना । माया मिटे ब्रह्म मिटे ना । माया रुचे ब्रह्म रुचे ना । अज्ञान को ॥५॥ माया उपजे ब्रह्म उपजे ना । माया मरे ब्रह्म मरे ना । माया धरे ब्रह्म धरे ना । धारणा को ॥६॥ माया फूटे ब्रह्म फूटे ना । माया टूटे ब्रह्म टूटे ना । माया नीरस होये ब्रह्म नीरस होये ना । अविनाश वह ॥७॥ माया विकारी ब्रह्म निर्विकारी । माया सर्वकारी ब्रह्म ना करे कुछ भी । माया नाना रूपधारी । ब्रह्म वह अरूप ॥८॥ माया पंचभूतिक अनेक । ब्रह्म वह शाश्वत एक । माया ब्रह्म का विवेक । विवेकी जानते ॥९॥ माया लघु ब्रह्म अपार । माया असार ब्रह्म सार । माया अर्ति पार । ब्रह्म नहीं ॥१०॥ सकल माया विस्तारित हुई । ब्रह्मस्थिति आच्छादित हुई । फिर भी उसे चुनकर अलग की । साधुजनों ने ॥११॥ काई त्यागकर नीर लीजिये । नीर त्यागकर क्षीर लीजिये । माया त्याग कर अनुभव लीजिये । ब्रह्म वैसे ॥१२॥ ब्रह्म आकाश जैसा निर्मल । माया वसुंधरा जैसा मैल । ब्रह्म सूक्ष्म माया केवल । स्थूलरूपी ॥१३॥ ब्रह्म वह अप्रत्यक्ष रहे । माया वह प्रत्यक्ष दिखे । ब्रह्म वह सम रहे । माया वह विषमरूपी ॥१४॥ माया लक्ष्य ब्रह्म अलक्ष्य । माया साक्ष ब्रह्म असाक्ष । माया में दोनों पक्ष । ब्रह्म में पक्ष ही नहीं ॥१५॥माया पूर्वपक्ष ब्रह्म सिद्धांत । माया असंत ब्रह्म संत । ब्रह्म को नहीं कारण हेत । माया को है ॥१६॥ ब्रह्म अखंड घन ठोस । माया खोखली पंचभूतिक । ब्रह्म वह निरंतर परिपूर्ण । माया वह पुरातन जर्जर ॥१७॥ माया बने ब्रह्म बने ना । माया पडे ब्रह्म पडे ना । माया बिगडे ब्रह्म बिगडे ना । जैसे का वैसे ॥१८॥ ब्रह्म रहे ही रहता । करते ही माया का निरसन होता । ब्रह्म को कल्पांत न होता । माया का है ॥१९॥माया कठिन ब्रह्म कोमल । माया अल्प ब्रह्म विशाल । माया नश्वर सर्वकाल । ब्रह्म ही रहे ॥२०॥ वस्तु न होती बोलने जैसी । माया जैसे बोले वैसी । काल को न होती वस्तु की प्राप्ति । माया पर झपटे ॥२१॥ नाना रूप नाना रंग । उतने माया के प्रसंग । माया भंग होती ब्रह्म अभंग । जैसे का वैसे ॥२२॥ अब रहने दो यह विस्तार । चलता जाता सचराचर । वह सब माया परमेश्वर । सबाह्य अभ्यंतर में ॥२३॥सकल उपाधिरहित । वह परमात्मा अलग । जल में रहकर भी जल से अलिप्त । आकाश जैसा ॥२४॥माया ब्रह्म का विवरण । करने पर चूके जन्म मरण । संतों को जाते ही शरण । मोक्ष लाभ होता ॥२५॥अरे इन संतों की महिमा । बोली नहीं जाती सीमा । जिनसे ही परमात्मा । अंतरंग ही होता ॥२६॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे मायाब्रह्मनिरूपणनाम समास पांचवां ॥५॥ N/A References : N/A Last Updated : December 01, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP