हिंदी सूची|भारतीय शास्त्रे|तंत्र शास्त्र|कालीतंत्र| अन्य मंत्र कालीतंत्र महाकाली काली पूजा बलिदान काली मंत्र एवं ध्यान गुप्त काली मंत्र साधना विधि अर्घ्य स्थापन पूजन यंत्र भैरव पूजन कालविनाशिनी काली काली के रूप भद्रकाली के फलदायी मंत्र महाकाली के ऐश्वर्यदायी मंत्र आवरण पूजा भैरव-पूजन भैरवी-पूजन श्मशानकाली साधना अन्य मंत्र दक्षिणकालिका कवचम् काली कीलकम् श्री जगन्मंगल कवचम् कालीक्रम स्तवम् अथ अर्गलम् काली स्तवः महाकौतूहल दक्षिणकाली ह्रदय स्तोत्रम् कालीकर्पूर स्तोत्रम् कालिका हृदय स्तोत्रम् कालिका सहस्त्रनाम स्तोत्रम् काली सहस्त्राक्षरी काली बीज सहस्त्राक्षरी काली अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् काली के १०८ नाम काली शतनाम स्तोत्रम् काली क्षमापराध स्तोत्रम् ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम् गुरु-पूजा विधि महाकाली मंत्र वर्णन मनोपूरक रहस्य पुरश्चरण विधि आदि-अंत का रहस्य मातृका ध्यान विधि कालीतंत्र - अन्य मंत्र तंत्रशास्त्रातील अतिउच्च तंत्र म्हणून काली तंत्राला अतिशय महत्व आहे. Tags : kalishastratantraकालीतंत्रशास्त्रहिन्दी अन्य मंत्र Translation - भाषांतर अन्य मंत्रश्मशान काली के कुछ अन्य मंत्र निम्नलिखित हैं:क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्णीं श्मशानकाली क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।श्यशान काली का उक्त इक्कीस वर्णोंवाला मंत्र साधक की मनोकामनाएं पूर्ण करता है ।क्लीं कालिकायै नमः ।सात वर्णों वाला उक्त मंत्र वांछित मनोरथपूरक है ।दक्षिणकाली विशिष्ट मंत्रक्री (यह एकाक्षरी मंत्र है) ।ह्नीं (यह एकाक्षरी मंत्र है) ।क्रीं क्रीं क्रीं (यह त्र्यक्षरी मंत्र है) ।एकाक्षर मंत्र सभी अभिलाषाओं को पूर्ण करता है तथा त्र्यक्षर मंत्र की साधना से साधक को शास्त्र ज्ञान की लब्धि होती है ।उक्त एकाक्षरी मंत्रों की पूजा पद्धति, न्यास आदि सब दक्षिण काली के बाईस अक्षरी मंत्र जैसा ही है ।इनके करांगन्यास को...ॐ क्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।ॐ ह्नां अगुष्ठाभ्यां नमः ।...इत्यादि क्रम से करना चाहिए ।साधक इनमें से एकाक्षर-मंत्र साधना में देवी का ध्यान निम्नवत करे:शवारूढां महाभीमां घोरदंष्ट्रां वरप्रदाम् ।हास्य युक्तां त्रिनेत्रां च कपाल कर्तृका कराम् ॥मुक्तकेशीं ललज्जिह्वां पिबन्तीं रुधिरं मुहुः ।चतुर्बाहुयुतां देवीं वराभयकरां स्मेरत् ॥उक्त एकाक्षरी मंत्रों का पुरश्चरन एक लाख जप है ।सर्वमनोरथपूरक मंत्रॐ ह्नीं ह्नीं हूं हूं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं ।उक्त इक्कीस अक्षरीय मंत्र सभी मनोभिलाषाओं को पूर्ण करनेवाला है । इसका पुरश्चरण एक लाख जाप है । जप का दशांशा हवन वांछनीय है । पूजा ब न्यास विधिवां पूर्ववत हैं ।बीस, बाईस व तेईस अक्षरी मंत्रॐ ह्नीं ह्नीं हूं हूं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाह ।पूर्वाक्त इक्कीस अक्षर मत्र में स्वाहा अद जोड देने ने य अतेस सक्ष्र्रोंवाला , मंत्र बन जाता है ।ह्नीं ह्नीं हूं हूं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा उक्त बाईस अक्षरों वाला मंत्र है ह्नीं ह्नीं हूं हूं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।उक्त बीस अक्षरों वाला मंत्र है ।उपरोक्त सभी मंत्रों के ध्यान, पूजन आदि की पद्धति पूर्वोक्त दक्षिण कालिका मंत्र के समान है ।चामुंडा काली मंत्र क्रीं क्रीं हूं ।तीन अक्षरों का उक्त मंत्र चामुण्डा कालिका की साधना में प्रशस्त माना गया है । सभी विधियां पूर्ववत् हैं ।काली ह्रदय मंत्रॐ ह्नीं क्रीं मे स्वाहा ।उक्त मंत्र श्रेष्ठ है । इसकी साधना हेतु प्रातः कृत्य से प्राणायाम तक के सभी कृत्य पूर्ण कर निम्नानुसार ऋष्यादि न्यास करे:भैरवः ऋषये नमः । (मस्तके)विराट्छन्दसे नमः । (मुखे)सिद्धकाली ब्रह्मरूपायै भुवनेश्वरी देवतायै नमः । (ह्रदि)क्रीं बीजाय नमः । (गुह्ये)ह्नीं शक्तये नमः । (पादयोः)अन्य मंत्रक्रीं हूं ह्नीं ।उक्त तीन अक्षरों वाला मंत्र महाकाल द्वारा वर्णित है ।क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा ।उक्त पंचाक्षर मंत्र ब्रह्मा द्वारा वर्णित है ।क्रीं क्रीं क्रीं फट् स्वाहा । उक्त षडक्षर मंत्र त्रैलोक्य मोहनकारी है ।क्रीं हूं ह्नीं क्रीं हूं ह्नीं स्वाहा । तथा क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा उक्त दोनों अष्टाक्षर मंत्र धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रदायक हैं ।ऐं नमः क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा ।उक्त एकादशाक्षरी मंत्र मनोभिलाषा पूर्ण करनेवाला है ।उक्त सभी मंत्रों की पूआ-विधि में प्रातः कृत्य से प्राणायाम तक क्रिया संपन्न करने के बाद निम्नानुसार ऋष्यादिन्यास करे: क्रीं ह्नीं ह्नीं दक्षिणे कालिके स्वाहा ।उक्त एकादक्षाक्षर मंत्र चारों पदार्थों का देनेवाला है ।क्रीं हूं ह्नीं दक्षिणे कालिके फट् ।उक्त दशाक्षर मंत्र भी उपरोक्त फलदाता है ।क्रीं क्रीं हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।उक्त अष्टदशाक्षर मंत्र मनोकामना पूर्णकर्ता है ।क्रीं स्वाहा ।उक्त मंत्र के ऋषि भैरव हैं ।क्रीं हूं ह्नीं स्वाहाइस मंत्र के ऋषि पंचवक्त्र हैं । अन्य विधि पूर्ववत है ।क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं स्वाहा ।क्रीं दक्षिणें कालिके स्वाहा ।क्रीं हूं ह्नीं क्रीं हूं ह्नीं स्वाहा ।क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं क्रीं हूं हूं ह्नीं स्वाहा ।क्रीं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं हूं हूं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं हूं हूं स्वाहा ।क्रीं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं हूं हूं क्रीं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं हूं हूं स्वाहा ।नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा ।ॐ नमः आं क्रों आं क्रो फट् स्वाहा कालि कालिके हूं ।ॐ हूं हूं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं दक्षिण कालिके हूं हूं क्रीं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं दक्षिण कालिके स्वाहा ।क्रीं हूं ह्नीं दक्षिणे कालिके क्रीं हूं ह्नीं स्वाहा ।क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं दक्षिणे स्वाहा ।क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं स्वाहा ।ॐ क्रीं हूं ह्नीं हुं फट् स्वाहा ।ॐ क्रीं कालिके स्वाहा ।ॐ क्रीं हूं ह्नीं हुं फट् फट् ।क्रीं हूं ह्नीं ।ॐ क्रीं ।क्रीं क्रीं क्रीं हूं ह्नीं क्रीं क्रीं क्रीं हूं ह्नीं स्वाहा ।ऐं नमः क्रीं ऐं नमः क्रीं कालिकायै स्वाहा ।क्रीं क्रीं क्रीं ह्नीं दक्षिण कालिके स्वाहा ।क्रीं हूं ह्नीं दक्षिण कालिके फट् ।क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।क्रीं हूं ह्नीं स्वाहा ।क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।क्रीं दक्षिण कालिके स्वाहा ।क्रीं हूं हूं ह्नीं हूं हूं क्रीं स्वाहा ।क्री क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।क्री क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं हूं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं हूं हूं स्वाहा ।नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा ।नमः आं आं क्रों क्रों फट् स्वाहा कालिके हूं ।क्रीं क्रीं स्वाहा ।क्रीं क्रीं फट् स्वाहा ।क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा ।ऐं नमः क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा ।नमः आं क्रां आं क्रों फट् स्वाहा कालि कालिके हूं ।उक्त सभी मंत्रों के न्यास तथा पूजन की विधि पूर्वीक्त दक्षिण कालिका के द्वाविंशत्यक्षर मंत्र में बताए अनुसार है ।सामान्यतः इन मंत्रों के पुरश्चरण हेतु दो लाख जप वांछित है । दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः । (शिरसि)पंक्तिश्छन्दसे नमः । (मुखे)ह्नीं शक्तये नमः (नाभौ)कालिकायै देवतायै नमः । (हृदि)न्यासादि के पश्चात निम्नवत ध्यान करे:चतुर्भुजां कृष्णवर्णां मुण्डमाला विभूषिताम् ।खङ्ग च दक्षिणे पाणौ विभ्रतीन्दीवर द्वयं ॥कर्त्री च खर्परं चैव क्रमाद् वामेन विभ्रती ।द्यौ लिखन्ती जटायेकां विभ्रती शिरसा स्वयं ॥मुण्डमालाधरा शीर्षे ग्रीवायामथ चापराम् ।वक्षसा नागहारं च विभ्रती रक्तलोचना ॥कृष्णवस्त्रधरा कट्यां व्याघ्राजिन समन्विता ।वामपादं शवहृदि संस्थाप्य दक्षिणं पदं ॥विलाप्य सिंह पृष्ठेतु लेलिहाना शवं स्वयं ।सादृहासा महाघोर रवयुक्ता सुभीषणा ॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 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