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महाकाली के ऐश्वर्यदायी मंत्र

कालीतंत्र - महाकाली के ऐश्वर्यदायी मंत्र

तंत्रशास्त्रातील अतिउच्च तंत्र म्हणून काली तंत्राला अतिशय महत्व आहे.


महाकाली के ऐश्वर्यदायी मंत्र

पन्द्रह वर्णीय मंत्र
क्रें क्रें क्रों क्रों पशून् गृहाण हूं फट् स्वाहा ।

अठारह वर्णीय मंत्र
क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं महाकाली क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।

बीस वर्णीय मंत्र
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं महाकाली क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं स्वाहा ।
महाकाली के उक्त तीनों ही मंत्र ऐश्वर्यदायी है ।

मंत्र साधना
दक्षिण कालिका की पूजा-पद्धति के अनुसार ही इनकी भी न्यास पूजा आदि कृत्य करने वांछित हैं । मात्र बलि उत्सर्ग करते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण साधक करे ।

ऐं ह्नीं ऐह्येहि जगन्मातर्जगताम जननि ग्रहण ग्रहण बलिं सिद्धिं देहि देहि शत्रु क्षयं कुरु कुरु हूं हूं ह्नीं ह्नीं फट् फट् ॐ कालिकायै नमः फट् स्वाहा ।

यंत्र-पूजन
महाकाली, गुप्तकाली, भद्रकाली तथा श्मशानकाली के येंत्रों स्वरूप एक जैसा ही है जो निम्नवत है:

उक्त देवियों के पूजन में विशेषता यह है कि यंत्र के भूपुर में इन्द्रादि दिक्पाल तथा उनके वज्र आदि अस्त्र भूपुर के चतुर्द्वार में विष्णु, शिव, सूर्य, और गणेश, भूगृह में लोकपाल, बाह्यभाग में देवी के अस्त्र तथा भूपुर के चारों ओर पूर्वादि क्रम से विष्णु, शिव, सूर्य तथा गणेश का पूजन किया जाता है ।

ध्यान-मंत्र

महाकाली, गुप्तकाली, भद्रकाली तथा श्मशान काली का ध्यान निम्नवत है । नीचे मंत्र में जहां गुप्तकालिकाम् शब्द आया है, वहां महाकालीकाम्, भद्रकालिकाम्, श्मशानेश्वरीम् अर्थात यथानुसार परिवर्तन कर ले । अन्य सब विधियां दक्षिण कालिका पूजन पद्धति जैसी ही हैं ।

यंत्र को सामने रख कर निम्नानुसार ध्यान इस प्रकार करे:
महामेघ प्रभां देवी कृष्णवस्त्रोसिधारिणीम् ।
ललज्जिह्वां घोरदंष्ट्रां कोटराक्षीं हसन्मुखीम् ॥
नागहारलतोपेतां चन्द्रार्द्धकृत शेखराम् ।
द्यां लिखन्तीं जटामेकां लेलिहानासवं पिबम् ॥
नाग यज्ञोपवीताङ्गी नागशय्या निषेदुषीम् ।
पञ्चाशन्मुण्डसंयुक्तं वनमाला महोदरीम् ॥
सहस्त्रफण संयुक्तमनन्तं शिरसोपरि ।
चतुर्दिक्षु नागफणा वेष्टितां गुप्तकालिकाम् ॥
तक्षक सर्पराजेन वामकङ्कण भूषिताम् ।
अनन्त नागराजेन कृतदक्षिण कङ्कणम् ॥
नागेन रसनाहार कक्पितां रत्न नूपुराम् ।
वामे शिव स्वरूपं तत्कल्पितं वत्स्‌रूपकम् ॥
द्विभुजां चिन्तयेद्देत्नीं नागयज्ञोपवीतिनीम् ।
नरदेह समाबद्ध कुण्डल श्रुति मण्डिताम् ॥
प्रसन्नवदनां सौम्यां शिवमोहिनीम् ॥
अट्टहासां महाभीमां साधकाभीष्टदायिनीम् ॥

अर्थात देवी के शरीर का वर्ण मेघवत् कृष्ण है । वह कृष्णवस्त्र तथा खड्‌ग धारण किए हुए है, जीभ-रक्तिम है तथा दांत और दाढें अत्यन्त विकराल हैं । दोनों नेत्र कोटर में घुसे हुए हैं । मुख हास्यपूर्ण हैं, कंठ में नागों का हार पडा है । शीश पर अर्द्धचन्द्र है तथा मस्तक की जटाओं में एक आकाशगामिनी है जो रक्तपान कर रही है । वह नाग का ही यज्ञोपवीत पहने है तथा नागशय्या पर स्थित है । उसके कंठ में पचास मुण्डों से युक्त वरमाला पडी है । उदर वृहद है तथा मस्तक पर हजारों फणधारी अनन्त नागराज शोभायमान हैं । वह चारों ओर नागफणों से वेष्टित है । नागराज तक्षक को वामकंकण तथा अनन्त नाग को दक्षिण कंकण के रूप में धारण किए हैं । करधनी भी नाग-निर्मित है । वह रत्न जटित नूपुर धारन किए हैं । वाम भाग में शिवस्वरूप कल्पित वत्स (बालक) है ।

उस नागयज्ञोपवीतिनी देवी की दो भुजाएं हैं । वह अपने दोनों कानों में नरदेह युक्त कुण्डलों को धारण किए है । उसका मुख प्रसन्न है तथा आकृति सौम्य है । ऐसी नवरत्न-विभूषित शिव-मोहिनी देवी की नारक आदि ऋषि-मुनिगण सेवा कर रहे हैं । अट्टहास करनेवाली ऐसी महाभीषिका देवी कालिका साधकों को मनोवांछित वर देनेवाली है ।

दक्षिणकाली मंत्र सिद्धि

मंत्रः ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं ह्नूं ह्नूं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं ह्नीं ह्नीं ह्नूं ह्नूं स्वाहा ।

विनियोग
अस्य श्री दक्षिणकाली मंत्रस्य भैरव ऋषिः उष्णिक् छन्दः, दक्षिण कालिके देवता, क्रीं बीजम्, ह्नूं शक्तिः, क्रीं कीलकम्, ममाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यास
ॐ भैरव ऋषये नमः (शिरसि) ।
उष्णिक्‌छन्दसे नमः (मुखे) ।
दक्षिणकालिका देवतायै नमः (ह्रदि) ।
क्रीं बीजाय नमः (गुहये) ।
ह्नूं शक्तये नमः (पादयो:) ।
क्रीं कीलकाय नमः (नाभौ) ।
विनियोगाय नमः (सर्वाङ्गे) ।

करन्यास
ॐ क्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ क्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ क्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ क्रैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ क्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ क्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

हृदयादिन्यास
ॐ क्रां ह्रदयास नमः ।
ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ क्रूं शिखायै वष‍ट् ।
ॐ क्रैं कवचाय हुम् ।
ॐ क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ क्रः अस्त्राय फट् ।

सर्वाङ्गन्यासः
ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लृं लृं नमो (हृदि)
ॐ एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं नमो (दक्ष भुजे)
ॐ ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं नमो वाम (भुजे)
ॐ णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं नमो दक्ष (पादे)
ॐ मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं नमो वाम (पादे) (इत विन्यासः)

ॐ क्रीं नमः (ब्रह्मरन्ध्रे) ।
ॐ क्रीं नमः (भ्रू मध्ये) ।
ॐ क्रीं नमः (ललाटे) ।
ॐ ह्नीं नमः (नाभौ) ।
ॐ ह्नीं नमः (गुह्ये) ।
ॐ ह्नूं नमः (वक्त्रे) ।
ॐ ह्नूं नमः (गुर्वङ्गे) ।
तदोपरांत मूल मंत्र से ९ अथवा ५ बार व्यापक न्यास करे ।

ध्यान

ॐ सद्यश्छिन्न शिरः कृपाणमभयं हस्तैर्वरं बिभ्रतीं
घोरास्यां शिरसि स्त्रजा सुरुचिरान्मुन्युक्त केशावलिम् ।
सृक्कासृक्प्रवहां श्मशान निलयां श्रुत्योः शवालंकृतिं
श्यामाङ्गी कृत मेखलां शवकरै र्देवीं भजे कालिकाम् ॥ (मंत्रमहोदधि के अनुसार)

ॐ शवारूढां महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम् ।
चतुर्भुजां खङ्गमुण्डवराभय करां शिवाम् ॥
मुण्डमालाधरां देवीं ललज्जिह्वां दिगम्बराम् ।
एवं सञ्चिन्तयेत्कालीं श्मशानालय वासिनीम् ॥ (कालीतंत्रानुसार)

पीठशक्ति पूजा

ॐ जयायै नमः । ॐ विजयायै नमः । ॐ अजितायै नमः । ॐ अपराजितायै नमः । ॐ नित्यायै नमः । ॐ विलासिन्यै नमः । ॐ दोग्ध्रूयै नमः । ॐ अघोरायै नमः ।

(मध्य में )
ॐ मङ्गलायै नमः ।

इसके पश्चात दक्षिण काली के यंत्र अथवा मूर्ति को तांबे के पात्र में रखकर, उसे घृत द्वारा अभ्यंग-स्नान कराएं । फिर उसके ऊपर दुग्ध-धारा तथा जल-धारा छोडकर स्वच्छ वस्त्र में लपेटे और ॐ ह्नीं कालिका योग पीठात्मने नमः मंत्र द्वारा पुष्पादि असान देकर, पीठ के मध्यभाग में स्थापित करे । फिर पद्धति-मार्ग से प्रतिष्ठा करके मूल मंत्र द्वारा मूर्ति की कल्पना करते हुए  पाद्य से पुष्पांजलि पर्यन्त विभिन्न उपचारों द्वारा पूजा कर देवी की आज्ञा से निम्नानुसार आवरण-पूजा करे ।


Last Updated : December 28, 2013

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