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धनिकाहून अधिक मान्य, विद्वज्जन

   
Script: Devanagari

धनिकाहून अधिक मान्य, विद्वज्जन

   श्रीमंत लोकांपेक्षां विद्व न्‌ मनुष्यास अधिक मान मिळतो. तु०-विद्वत्व च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन । स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्‍ सर्वत्र पूज्यते॥- ३८.७.

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