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जहँ मूल न डार न पत है रे ...

भजन - जहँ मूल न डार न पत है रे ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


जहँ मूल न डार न पत है रे, बिन सींचे बाग सहज फूला ।

बिन डाँड़ीका फूल है रे, निर्बासके बास भँवर भूला

दरियावके पार हिडोलना रे कोउ बिरही बिरला जा झूला ।

'यारी' कहै उस झूलनेमें, झूलै कोऊ आसिक दोला

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Last Updated : December 25, 2007

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