संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुराण|श्री स्कंद पुराण|काशीखण्ड| अध्याय ९१ काशीखण्ड अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ अध्याय ९८ अध्याय ९९ अध्याय १०० विषयानुक्रमणिका काशीखण्डः - अध्याय ९१ भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) ने कथन केल्यामुळे ह्या पुराणाचे नाव 'स्कन्दपुराण' आहे. Tags : puransanskrutskand puranपुराणसंस्कृतस्कन्द पुराण अध्याय ९१ Translation - भाषांतर ॥ स्कंद उवाच ॥पार्वतीशस्य महिमा कथितस्ते मयानघ ॥मुने निशामयेदानीं गंगेश्वरसमुद्भवम् ॥१॥यं श्रुत्वा यत्रकुत्रापि गंगास्नानफलं लभेत् ॥चक्रपुष्करिणीतीर्थं यदा गंगा समागता ॥२॥तेन दैलीपिना सार्धमस्मिन्नानंदकानने ॥क्षेत्रप्रभावमतुलं ज्ञात्वा शंभुपरिग्रहात् ॥३॥स्मृत्वा लिंगप्रतिष्ठायाः काश्यां लोकोत्तरं फलम् ॥गंगया स्थापितं लिंगं विश्वेशात्पूर्वतः शुभम्॥ ४॥गंगेश्वरस्य लिंगस्य काश्यां दृष्टिः सुदुर्लभा ॥तिथौ दशहरायां च यो गंगेशं समर्चयेत् ॥५॥तस्य जन्मसहस्रस्य पापं संक्षीयते क्षणात् ॥कलौ गंगेश्वरं लिंगं गुप्तप्रायं भविष्यति ॥६॥तस्य संदर्शनं पुंसां जायते पुण्यहेतवे ॥दृष्टं गंगेश्वरं लिंगं येन काश्यां सुदुर्लभम् ॥७॥प्रत्यक्षरूपिणी गंगा तेन दृष्टा न संशयः ॥कलौ सुदुर्लभा गंगा सर्वकल्मषहारिणी ॥८॥भविष्यति न संदेहो मित्रावरुणनंदन॥ततोपि तिष्ये संप्राप्ते काश्यत्यंतं सुदुर्लभा ॥९॥ततोपि दुर्लभं काश्यां लिंगं गंगेश्वराभिधम् ॥यस्य संदर्शनं पुंसां भवेत्पापक्षयाय वै ॥१०॥श्रुत्वा गंगेश माहात्म्यं न नरो निरयी भवेत् ॥लभेच्च पुण्यसंभारं चिंतितं चाधिगच्छति ॥११॥इति श्रीस्कांदे महापुराण एकाशीति साहस्र्यां संहितायां चतुथें काशीखंड उत्तरार्धे गंगेश्वरमहिमाख्यानं नामैकनवतितमोऽध्यायः ॥९१॥ N/A References : N/A Last Updated : November 27, 2024 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP