हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|तत्त्वान्वय का| ॥ समास दसवां - गुणभूतनिरूपणनाम ॥ तत्त्वान्वय का ॥ समास पहला - वाल्मीकस्तवननिरूपणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - सूर्यस्तवननिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - पृथ्वीस्तवननिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - आपनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - अग्निनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवा - वायुस्तवननिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - महद्भूतनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - आत्मारामनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - नानाउपासनानिरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - गुणभूतनिरूपणनाम ॥ तत्त्वान्वय का - ॥ समास दसवां - गुणभूतनिरूपणनाम ॥ श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास दसवां - गुणभूतनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पंचभूतों से चले जग । पंचभूतों की ही गड़बड़ । पंचभूतों का होने पर विलय । फिर क्या बचे ॥१॥ वक्ता से पूछे श्रोता । भूतों की बढाई महत्ता । और त्रिगुणों का क्या हुआ । कहिये स्वामी ॥२॥ अंतरात्मा पांचवां भूत । त्रिगुण उसके अंगीभूत । सावध कर चित्त । देखो भली तरह ॥३॥ भूत याने जितने हो गये । त्रिगुण भी इसमें आये । खंडित हुआ इससे । मूल आशंका का ॥४॥ भूतों से अलग कुछ भी नहीं । भूतजात ये सर्व ही । एक दूसरे से भिन्न नहीं । हो कुछ भी ॥५॥ आत्मा से ही उपजा पवन । पवन से प्रकट हुआ अग्न । अग्नि से जीवन । कहते यों ॥६॥ जीवन सर्वत्र फैल गया । उसे रविमंडल ने सुखाया । वन्हि वायु से हुआ । भूमंडल ॥७॥ वन्हि वायु रवि न होने पर । फिर शीतलता होती अपार । उष्णता उस शीतलता के भीतर । इसी न्याय से ॥८॥ सारे मर्म को मर्म किया । तभी तो इतना विकसित हुआ । देहमात्र भी तयार हुआ । मर्म के कारण ॥९॥सभी शीतल ही रहते । फिर प्राणीमात्र मर जाते । सभी उष्ण ही होते । तो झुलस जाता सब कुछ ॥१०॥भूमंडल सूखकर घनीभूत होता । रवि किरणों से वह सूख जाता । तब देव ने सहज ही रचाया । उपाय इसका ॥११॥ इस कारण किया पर्जन्यकाल । ठंडा हुआ भूमंडल । आगे उष्ण कुछ शीतल । शीतकाल जानिये ॥१२॥शीतकाल से हुये त्रस्त लोक । पाला पडा वृक्षादि पर । इसकारण आगे कौतुक । उष्णकाल का ॥१३॥ उसमें भी प्रातःकाल । मध्यान्हकाल सायकाल । शीतकाल उष्णकाल । निर्माण किये ॥१४॥ ऐसे एक के बाद एक किये । निश्चित रूप में क्रम लगाये । जीवित रहे इसीलिये । प्राणीमात्र ॥१५॥ नाना रसों से रोग कठिन । इस कारण औषधि की निर्माण । परंतु सृष्टि का विवरण । समझना चाहिये ॥१६॥ देहमूल रक्त रेत । उस आप से बनते दांत । ऐसी ही भूमडल में प्रचीत । नाना रत्नों की ॥१७॥ सभी का मूल जीवन से बंधा । जीवन से चले सकल धन्धा । जीवन के बिना हरि गोविंदा । प्राणी कैसे ॥१८॥ जीवन से मुक्ताफल । शुक्रसमान तेजोमय । हीरे माणिक इंद्रनील । हुये तेजस्वी ॥१९॥ महिमा किसकी करे कथन । हुआ सारा ही कर्दम । अलग अलग चयन । करे किस प्रकार ॥२०॥ परंतु कहा है कुछ एक । मन को समझने को विवेक । जनों में तार्किक लोक । समझते है सब कुछ ॥२१॥ सारा समझे यह तो होये ना । शास्त्र शास्त्रों में पटेना । अनुमान से निश्चय होये ना । कुछ भी ॥२२॥अगाध गुण भगवंत के । शेष वर्णन न कर सके वाणी से । वेद विधि भी अधूरे । देव बिन ॥२३॥आत्माराम सब को पाले । सारा त्रैलोक्य संभाले । उस एक के बिना धूल है। सबकी ॥२४॥ जहां आत्माराम नहीं । शेष न रह सके कुछ भी । त्रैलोक्य के प्राणी सर्व ही । प्रेतरूपी ॥२५॥ आत्मा न रहने पर आता मरण । आत्मा के बिना कैसा जीवन । भले विवेक का करो आकलन । अंतर्याम में ॥२६॥ समझना जो विवेक का । वह भी आत्मा के बिना कैसा । कोई एक जगदीश का । भजन करें ॥२७॥उपासना प्रकट हुई । फिर यह विचारणा समझ में आई । इसकारण से चाहिये करनी । विचारणा देव की ॥२८॥ उपासना का महान आश्रय । उपासना बिना निराश्रय । उदंड किये तो भी जय । प्राप्त नहीं ॥२९॥ समर्थ नहीं पीछे जिसके । तो कोई भी देता मार उसे । इसकारण अति तत्परता से । भजन करें ॥३०॥भजन साधन अभ्यास । इससे प्राप्त होता परलोक । दास कहे यह विश्वास । रखना चाहिये ॥३१॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे गुणभूतनिरूपणनाम समास दसवां ॥१०॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP