तत्त्वान्वय का - ॥ समास सातवां - महद्भूतनिरूपणनाम ॥

श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पृथ्वी का मूल जीवन । जीवन का मूल अग्न । अग्नि का मूल पवन । पीछे किया निरूपित ॥१॥
अब सुनो पवन का मूल । वो यह अंतरात्मा ही केवल । अत्यंत ही चंचल । सभी में ॥२॥
वह आते जाते दिखे ना । स्थिर होकर बैठे ना । जिसके रूप का अनुमान होये ना । वेदश्रुति से ॥३॥
मूल में मूल का स्फुरण । वही अंतरात्मा का लक्षण । जगदीश्वर से त्रिगुण । हुये आगे ॥४॥
त्रिगुणों से उपजे भूत । स्पष्ट दशा हुई प्राप्त । उनु भूतों का स्वरूप । पहचानें विवेक से ॥५॥
उनमें मुख्य आकाश । चारों भूतों में विशेष । इसके प्रकाश से प्रकाशित । सब कुछ ॥६॥
एक विष्णु महद्भूत । ऐसा भूतों का संकेत । परंतु इसकी प्रचीत । देखनी चाहिये ॥७॥
विस्तार से कहे है भूत । भूतों में जो व्यापक । विवरण कर देखने पर । आता प्रत्यय में ॥८॥
आत्मा की चपलता के समक्ष । वायु कितना बेचारा वह । आत्मा की चपलता प्रत्यक्ष । समझकर देखें ॥९॥
आत्मा के बिना काम चलेना । आत्मा दिखेना न मिलेना । गुप्तरूप में विचार नाना । देखकर छोडे ॥१०॥
पिंड ब्रह्मांड में है व्याप्त । नाना शरीरों में विलसित । विवेकी जनों को हुआ भासित । जगदंतर में ॥११॥
आत्मा के बिना देह चले । यह तो कल्पांत में भी न होये । व्यक्ति अष्टधा प्रकृति के । रूप में आये ॥१२॥
मूल से लेकर अत तक । आत्मा ही करे सब कुछ । आत्मा के उस पार । निर्विकारी परब्रह्म वह ॥१३॥
आत्मा शरीर में है क्रियान्वित । इंद्रिय ग्राम करता प्रेरित । भोगता नाना सुख दुःख । देहात्मयोग से ॥१४॥
सप्तकंचुक यह ब्रह्मांड । उसमें सप्तकुंचक पिंड । उस पिंड में आत्मा ठोस । विवेक से पहचानें ॥१५॥
शब्द सुनकर समझता । समझकर प्रत्युत्तर देता । कठिन मृदु शीतोष्ण जानता । त्वचा से ॥१६॥
नेत्र में भरकर पदार्थ देखना । नाना पदार्थों को परखना । ऊंच नीच समझना । मन में ॥१७॥
क्रूरदृष्टि सौम्यदृष्टि । कपटदृष्टि कृपादृष्टि । नाना प्रकार की दृष्टि । भेद जाने ॥१८॥
जिव्हा में नाना स्वाद । चुनना जाने भेदाभेद । जो भी जाने वह सब विशद । करके कहे ॥१९॥
उत्तम अन्न का परिमल । नाना सुगंध परिमल । नाना फलों के परिमल । घ्राणेंद्रिय में जाने ॥२०॥
जिव्हा से स्वाद लेना बोलना । हस्त इंद्रियों से लेना देना। पाद इंद्रियों से आना जाना । सर्वकाल ॥२१॥
शिश्न इंद्रिय से सुरतभोग । गुद इंद्रिय से मलोत्सर्ग । मन से सकल सांग । कल्पना कर देखे ॥२२॥
ऐसे व्यापार अनेक प्रकार के । त्रिभुवन में अकेला ही करे । उसकी महानता का वर्णन करें । ऐसा दूसरा कोई नहीं ॥२३॥
उसके बिन दूसरा कौन । जो उसकी महिमा करे वर्णन । आत्मा की व्याप्ति विस्तीर्ण । न भूतो न भविष्यति ॥२४॥
चौदह विद्या चौंसठ कला । धूर्तता की नाना कला । वेदशास्त्रपुराण आत्मियता । उसके बिना कैसी ॥२५॥
इहलोक का आचार । परलोक का सारासारविचार । उभय लोकों का निर्धार । आत्मा ही करे ॥२६॥
नाना मत नाना भेद । नाना संवाद विवाद । नाना निश्चय भेदाभेद । आत्मा ही करे ॥२७॥
मुख्य तत्त्व विस्तारित हुआ । जिसने उसे रूप दिया । इसी के कारण सार्थक हुआ । सब कुछ ॥२८॥
लिखना पढ़ना याद करना । पूछना कहना अर्थ लगाना । गाना बजाना नाचना । आत्मा के कारण ॥२९॥
नाना सुखों से आनंदित होता । नाना दुःखों से पीडित होता । देह धरता और छोडता । नाना प्रकार से ॥३०॥
अकेला ही नाना देह धरे । अकेला ही नटता अनेक प्रकार से । नट नाट्य कला कौशल उसके । बिना नहीं ॥३१॥
अकेला ही हुआ बहुरूपी । बहुरूपी बहुसाक्षेपी । बहुरूपों में बहुप्रतापी । और भीरू ॥३२॥
अकेला ही विस्तारित हुआ कैसा । देखे बहुविध तमाशा । दाम्पत्य बिना कैसा । विस्तारित हुआ ॥३३॥
स्त्रियों को चाहिये पुरुष । पुरुष को चाहिये स्त्री वेश । ऐसे प्रीति का संतोष । परस्पर में ॥३४॥
स्थूल का मूल वह लिंग । लिंग में ये प्रसंग । इस प्रकार से जग । प्रत्यक्ष चले ॥३५॥
पुरुषों का जीव और स्त्रियों की जीवी । उठापटक ऐसी होती । परंतु सूक्ष्म की गुत्थी । समझनी चाहिये ॥३६॥
स्थूल के कारण लगता भेद । सूक्ष्म में सारा ही अभेद । ऐसा कथन शुद्ध । आता प्रत्यय में ॥३७॥
स्त्री ने स्त्री को भोगा । ऐसा तो कभी नहीं हुआ । स्त्री की अंतरंग में लगा । ध्यान पुरुष का ॥३८॥
स्त्री को पुरुष पुरुष को वधु । ऐसा होता संबंधु । इसकारण से सूक्ष्म संवादु । सूक्ष्म में ही है ॥३९॥
पुरुष इच्छा में प्रकृति । प्रकृति में पुरुष व्यक्ति । कहते पुरुष प्रकृति । इसे न्याय से ॥४०॥
पिंड से ब्रह्मांड देखें । प्रचीति से प्रचीति में लायें । न समझे फिर भी समझ लें । पुनः पुनः विवरण कर ॥४१॥
द्वैतइच्छा थी मूल में । अब वह आई ब्रह्मांड में । भूमंडल में और मूल में । जांच कर देखें ॥४२॥
यहां प्रदीर्घ हुआ साक्षेप । मिटा श्रोताओं का आक्षेप । जो प्रकृति पुरुष के रूप । हुये निर्णित ॥४३॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे महद्भूतनिरूपणनाम समास सातवां ॥७॥

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Last Updated : December 09, 2023

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