तत्त्वान्वय का - ॥ समास नववां - नानाउपासनानिरूपणनाम ॥

श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पृथ्वी पर लोग नाना । जिनकी नाना उपासना । भावार्थ से प्रेरित भजन । करते जगह जगह ॥१॥
अपने देव को भजते । नाना स्तुति स्तवन करते । हर कोई निर्गुण कहते । उपासना को ॥२॥
इसका कैसा है भाव । मुझसे कहिये अभिप्राव । अरे यह स्तुति का स्वभाव । ऐसा है ॥३॥
निर्गुण याने बहुगुण । बहुगुणी अंतरात्मा है जान । समस्त उसके अंश यह प्रमाण । देखो प्रचीति से ॥४॥
जो मान्य सकल जनों को । पहुंचता एक अंतरात्मा को । अधिकार के अनुसार करो । मान्य इसे ॥५॥
श्रोता कहे यह अनुमान । जड़ में सींचो अगर जीवन । वह पाता है पानोपान । यह सद्य प्रचीति ॥६॥
वक्ता कहे तुलसी पर । उदक डालो पात्र भर । ऊपर न ठहरे निमिष भर । छेदे भूमि को ॥७॥
बडे वृक्ष का करें कैसे । चोटी तक पात्र ले जायें कैसे । इसका अभिप्राय मुझसे । कथन कीजिये हे देव ॥८॥
मेघों से जल बरसता । वह मूल की ओर आता । जहां हांथ ही न पहुंचता । वहां करें भी क्या ॥९॥
सभी को मूल मिले । ऐसा पुण्य कैसे होये । साधुजन ही पहुंच पाये । विवेकी मन से ॥१०॥
तथापि वृक्ष के लिये । जीवन डालते ही कहां गिरे । बात समस्या की ये । है ही नहीं ॥११॥
विगत आशंका का निरसन । होते ही हुआ समाधान । अब गुण को निर्गुण । कहते कैसे ॥१२॥
चंचलता से हुआ विकारित । उसे कहते हैं सगुण । अन्य शेष वह रहा निर्गुण । गुणातीत ॥१३॥
वक्ता कहे यह विचार । खोजकर देखें सारासार । अंतरंग में रहने पर निर्धार । नाम नहीं ॥१४॥
विवेक ही है मुख्य राजा । और सेवक का नाम राजा । इसका विचार समझा । विवाद खोटा ॥१५॥
कल्पांत प्रलय में जो बचा । उसे निर्गुण ब्रह्म कहा गया । अन्य वह सभी हुआ । मायांतर्गत ॥१६॥
सेना शहर बाजार । नाना यात्रा छोटी महान । शब्द गूंजते अपार । कैसे चुनें ॥१७॥
काल में वर्षा काल । मध्यरात्रि होते नीरव । नाना जीव बोलते सकल । कैसे चुनें ॥१८॥
नाना देश भाषा मत । भूमंडल में असंख्यात् । बहुत ऋषि बहुत मत । कैसे चुनें ॥१९॥
वृष्टि होते ही अंकुर । सृष्टि में उगते अपार । नाना तंतु छोटे बड़े । कैसे चुनें ॥२०॥
खेचर भूचर जलचर । नाना प्रकार के शरीर । नाना रंग चित्र विचित्र । कैसे चुनें ॥२१॥
दृश्य कैसे साकार हुआ । अनेक प्रकार से विकारित हुआ । प्रचंड़ ही फैला । कैसे चुनें ॥२२॥
अंतराल में गंधर्वनगर । नाना रंगों की ब्योछार । बहुत व्यक्ति बहुत प्रकार । कैसे चुनें ॥२३॥
दिवस रजनी का प्रकार । तारे और अंधकार । विचार और अविचार । कैसे चुनें ॥२४॥
विस्मरण और स्मरण । नेमस्त और छछोरापन । प्रचीत और अनुमान । इसी न्याय से ॥२५॥
न्याय और अन्याय । होय और ना होय । विवेक बिन कैसे यह । आये समझ में ॥२६॥
कार्यकर्ता और निकामी । शूर और कुकर्मी । धर्मी और अधर्मी । समझना चाहिये ॥२७॥
धनवान और दिवालिया । साहुकार और तस्कर । खरा खोटा यह विचार । समझना चाहिये ॥२८॥
वरिष्ठ और कनिष्ठ । भ्रष्ट और अंतरनिष्ठ । सारासार विचार स्पष्ट । समझना चाहिये ॥२९॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे नानाउपासनानिरूपणनाम समास नववां ॥९॥

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Last Updated : December 09, 2023

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