हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|तत्त्वान्वय का| ॥ समास दूसरा - सूर्यस्तवननिरूपणनाम ॥ तत्त्वान्वय का ॥ समास पहला - वाल्मीकस्तवननिरूपणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - सूर्यस्तवननिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - पृथ्वीस्तवननिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - आपनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - अग्निनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवा - वायुस्तवननिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - महद्भूतनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - आत्मारामनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - नानाउपासनानिरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - गुणभूतनिरूपणनाम ॥ तत्त्वान्वय का - ॥ समास दूसरा - सूर्यस्तवननिरूपणनाम ॥ श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास दूसरा - सूर्यस्तवननिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ धन्य धन्य यह सूर्यवंश । सकल वंशों में विशेष । मार्तण्डमण्डल का प्रकाश । फैला भूमंडल में ॥१॥ सोम अंग में है लांछन । एक पक्ष में होता क्षीण । रवि किरण फैलते ही जो स्वयं । होता कलाहीन ॥२॥सूर्य के समक्ष इस कारण । नहीं कोई दूसरा समान । जिसके प्रकाश से प्रकाशमा॑न । होते प्राणिमात्र ॥३॥नाना धर्म नाना कर्म । उत्तम मध्यम अधम । सुगम दुर्गम नित्यनेम । चलते सृष्टि में ॥४॥ वेदशास्त्र और पुराण । मंत्र यंत्र नाना साधन । संध्या स्नान पूजाविधान । सूर्य बिन दयनीय ॥५॥ नाना योग नाना मत । देखें तो असंख्यात् । चलते अपने अपने पथ । सूर्योदय होने पर ॥६॥ प्रपंचिक अथवा परमार्थिक । कार्य करना कोई एक । दिन के बिन निरर्थक । सार्थक नहीं ॥७॥ सूर्य का अधिष्ठान आंखें । आंखें न हो तो फिर वे अंधे । इस कारण कुछ भी न चले । सूर्य बिन ॥८॥कहोगे अंधे कवित्व करते । फिर यह भी सूर्य की ही गति । शीतल होने पर अपनी मति । तब मतिप्रकाश कैसा ॥९॥ उष्ण प्रकाश वह सूर्य का । शीत प्रकाश वह चंद्र का । उष्णत्व ना हो तो देह का । घात होता ॥१०॥इसलिये सूर्य के बिन । सहसा न चले कारण । श्रोताओं आप विचक्षण । खोजकर देखें ॥११॥ हरिहरों की अवतार मूर्ति । शिवशक्ति के अनंत व्यक्ति । इनसे पूर्व था गभस्ति । अब भी है ॥१२॥ जितने संसार में आये । उन्होंने सूर्यसमक्ष व्यवहार किये । अंत में देह त्यागकर गये । प्रभाकर के समक्ष ॥१३॥ चंद्र इस पार हुआ । क्षीरसागर में मथकर निकाला । चौदा रत्नों में शामिल हुआ । बंधु लक्ष्मी का ॥१४॥विश्वचक्षु यह भास्कर । ऐसे जानते छोटे बड़े । इस कारण दिवाकर । श्रेष्ठों से भी श्रेष्ठ ॥१५॥ अपार नभमार्ग क्रमण । ऐसा ही प्रत्यय से आवागमन । इस लोकोपकार का कारण । आज्ञा समर्थ की ॥१६॥ दिन ना हो तो अंधकार । सब ना समझे सारासार । दिन के बिना तस्कर । अथवा दिवाभीत पक्षी ॥१७॥सूर्य के सामने अन्य । किसे लायें समक्ष । तेजोराशि निश्चित । उपमारहित ॥१८॥ ऐसे यह सविता सब का । है पूर्वज रघुनाथ का । अगाध महिमा मानवी वाचा । क्या वर्णन कर सके ॥१९॥ रघुनाथवंश पूर्वापार । एक से एक बढकर । मुझ मतिमंद को यह विचार । कैसे समझे ॥२०॥ रघुनाथ का समुदाय । वहां लगा जो अंतर्भाव । इस कारण बखानने उसका महत्त्व । वाग्दुर्बल मैं ॥२१॥सकल दोषों का परिहार । करने पर सूर्य को नमस्कार । स्फूर्ति बढे निरंतर । सूर्यदर्शन से ॥२२॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सूर्यस्तवननिरूपणनाम समास दूसरा ॥२॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP