तत्त्वान्वय का - ॥ समास चौथा - आपनिरूपणनाम ॥

श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
अब सब का जन्मस्थान । सभी जीवों का जीवन । जिसे आपोनारायण । ऐसे कहते ॥१॥
पृथ्वी का आधार आवरणोदक । सप्तसिंधुओं का सिंधोदक । नाना मेघों का मेघोदक । चल पडा भूमंडल पर ॥२॥
नाना नदियां नाना देश में । बहती जाकर मिलीं सागर में । कम ज्यादा पुण्य राशी में । अगाध महिमा ॥३॥
नदियां पर्वतों से झरीं । अनेक संकरी जगहों में घिरीं । झरझर करती चलीं । असंभाव्य ॥४॥
कूप वापी सरोवर । उदंड तालाब अति विशाल । छलकता जल निर्मल । नाना देशों में ॥५॥
गोमुख से पाट जाते । नाना नहरें बहते । नाना झरने झरते । झरता नीर ॥६॥
खोह कुएं झरने । पर्वत फूटकर बहे नीर । ऐसे उदक के प्रकार । भूमंडल में ॥७॥
जितने गिरि उतनी धारा । गिरती भयंकर । झरते नाले बहते अपार । उडते फव्वारे ॥८॥
भूमंडल का नीर सारा । कितना करें वर्णन उसका । नाना फव्वारों में किया । बंदिस्त पानी ॥९॥
डबरे गढ़े टांकी हौज । नाना गिरीकंदरों में अनेक । नाना लोक में नाना जल । भिन्न भिन्न ॥१०॥
तीर्थ एक से बढकर एक । महापवित्र पुण्यदायक । अगाध महिमा शास्त्रकारक । कहकर गये ॥११॥
नाना तीर्थों के पुण्योदक । नाना स्थान स्थान पर शीतलोदक । वैसे ही नाना उष्णोदक । जगह जगह ॥१२॥
नाना वल्लरियों में जीवन । नाना फलों फूलों में जीवन । नाना कंद मूलों में जीवन । गुणकारी ॥१३॥
क्षारोदक सिंधोदक । विषोदक पीयूषोदक । नाना स्थलांतरों में उदक । नाना गुणों के ॥१४॥
नाना इक्षुदंड के रस । नाना फलों के नाना रस । नाना प्रकारों के गोरस । शहद पारा गुडत्रय ॥१५॥
नाना मुक्ताफलों का पानी । नाना रत्नों में जगमगाता पानी । नाना शस्त्रों का पानी । नाना गुणों का ॥१६॥
शुक्लित श्रोणीत लार मूत्र स्वेद । नाना उदकों के नाना भेद । विवरण कर देखें तो विशद । होते रहते ॥१७॥
देह उदक का केवल । उदक का ही भूमंडल । चंद्रमंडल सूर्यमंडल । उदक के कारण ॥१८॥
क्षारसिंधु क्षीरसिंधु । सुरासिंधु आज्यसिंधु । दधिसिंधु इक्षुरससिंधु । शुद्धसिंधु उदक का ॥१९॥
ऐसे उदक विस्तारित हुआ । मूल से लेकर अंत तक आया । बीच में भी जगह जगह प्रकट हुआ । जगह जगह गुप्त ॥२०॥
जो जो बीज से मिश्रित हुआ । वहां वह स्वाद लेकर उठा । इक्षुदंड में मिठास पाया । परम सुंदर ॥२१॥
उदक से बंधा यह शरीर । उदक ही चाहिये तद्नंतर । उदक का उत्पत्ति विस्तार। कहें भी तो कितना ॥२२॥
उदक तारक उदक मारक । उदक नाना सौख्यदायक । देखने पर उदक का विवेक । अलौकिक है ॥२३॥
भूमंडल पर बहता नीर । उसके नाना ध्वनियां सुंदर । कलकल छलछल अपार । बहती धारा ॥२४॥
जगह जगह पर खोह भरते । विशाल सरोवर खचाखच भरते । छलकते लहराते । नहरें पाट ॥२५॥
उलटी गंगा बहती कहीं । उदक रहता सन्निध ही । झरझर बहते झरने कहीं । भूगर्भ में ॥२६॥
भूगर्भ में खोह भरे । किसी ने देखे ना सुने । जगह जगह गढ्ढे पडे । विद्युल्लता से ॥२७॥
पानी भरा पृथ्वी तल में । पृथ्वी में पानी खेले । पृथ्वी पर प्रकट होये । उदंड पानी ॥२८॥
स्वर्ग मृत्यु पाताल में । एक नदी तीन ताल में । मेघोदक अंतराल में । वृष्टि करे ॥२९॥
पृथ्वी का मूल जीवन । जीवन का मूल दहन । दहन का मूल पवन । एक से बढकर एक ॥३०॥
इससे महान परमेश्वर । महद्भूतों का विचार । उससे भी महान परात्पर । परब्रह्म जानिये ॥३१॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आपनिरूपणनाम समास चौथा ॥४॥

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Last Updated : December 09, 2023

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