आत्मदशक - ॥ समास आठवा - सूक्ष्मजीवनिरूपणनाम ॥

 देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
रेणु से सूक्ष्म कीटक । बहुत छोटा उनका आयुष्य । युक्ति बुद्धि उतनी ही अल्प । होती उनमे ॥१॥
ऐसे नाना जीव रहते । देखने जाओ तो ना दिखते । अंतःकरणपंचक की स्थिति है । उनमें भी ॥२॥
उनके योग्य उनका ज्ञान । विषय इंद्रियां समान । सूक्ष्म शरीरों का करके विवरण । देखता कौन ॥३॥
उन्हें चींटी अति विशाल । अनजाने चल रहा है कुंजर । चींटी को मूत्र का पूर । कहते यों ॥४॥
उस चींटी के समान शरीर । छोटे बडे है अपार । समस्तों में जीवेश्वर । करता निवास ॥५॥
ऐसा कीडों का समुदाय अपार । उदंड भरा है विस्तार । अत्यंत साक्षपी जो नर । वह देखें विवरण करके ॥६॥
नाना नक्षत्रों में नाना कीडे । उन्हें लगते पर्वत जैसे । आयु भी उसी अनुपात में । लगती दीर्घ ॥७॥
पक्षी इतने छोटे नहीं । पक्षी इतने बडे नहीं । सर्प और मत्स्य भी । इसी तरह ॥८॥
चींटी से बढकर । चढते बढते शरीर । अंतरंग उनका करें निर्धार । तो समझमें आता ॥९॥
नाना वर्ण नाना रंग । नाना जीवनों के तरंग । कोई सुरंग कोई विरंग । कहे भी तो कितने ॥१०॥
कोई सुकुमार कोई कठोर । निर्माण कर्ता जगदीश्वर । सुवर्णसमान शरीर । देदीप्यमान ॥११॥
शरीरभेद आहारभेद । वाचाभेद गुणभेद । अंतरंग में बसता अभेद । एकरूप से ॥१२॥
कोई त्रस्त कोई मारक । देखने पर नाना कौतुक । कई एक अमौलिक । सृष्टि में ॥१३॥
ऐसी सारी विवरण कर देखे । ऐसा प्राणी कौन है । अपने तक ही पहचान लेते । किंचित्मात्र ॥१४॥
नवखंड यह वसुंधरा । सप्तसागरों का फेरा । ब्रह्मांड के बाहर की नीरा । कौन देखें ॥१५॥
उस नीरा में जीव रहते । देखने पर वे असंख्यात् है । उन विशाल जीवों की स्थिति ये । कौन जाने ॥१६॥
जहां जीवन वहां जीव । यह उत्पत्ति का स्वभाव । देखने पर इसका अभिप्राव । उदंड है ॥१७॥
पृथ्वी गर्भ में नाना नीर । उन नीरों में शरीर । छोटे बडे नाना प्रकार । कौन जाने ॥१८॥
कुछ प्राणी अंतरिक्ष में रहते । जिन्होंने ना देखी क्षिती । ऊपर ऊपर ही उड़ जाते । पंख निकलने के बाद ॥१९॥
नाना खेचर और भूचर । नाना वनचर और जलचर । लक्ष चौरासी योनि प्रकार । कौन जाने ॥२०॥
छोडकर तेज अग्नि । जहां वहां जीवयोनि । कल्पना से होते प्राणी । कौन जाने ॥२१॥
कोई नाना सामर्थ्य से हुये । कोई इच्छा से हुये । कोई शब्द से पाये । उश्राप देह ॥२२॥
कुछ देह बाजीगरी के । कुछ देह अवडम्बरी के । कुछ देह देवताओं के । नाना प्रकार ॥२३॥
कुछ उपजे क्रोध से । कुछ जन्में तप से । कुछ उश्राप से पाये । पूर्वदेह ॥२४॥
भगवंत की करनी ऐसे । कहे भी कितनी कैसे । विचित्र माया के गुणों से । होते रहती ॥२५॥
अनेक अवघट करनी की । किसी ने देखी ना सुनी । विचित्र कला समझनी । चाहिये संपूर्ण ॥२६॥
थोडा बहुत समझ में आया । पेट भरने की विद्या पाया । प्राणी व्यर्थ ही अभिमान में गया । मैं ज्ञाता कहकर ॥२७॥
ज्ञानी एक अंतरात्मा । सर्वो के बीच सर्वात्मा । समझने उसकी महिमा । बुद्धि कैसी ॥२८॥
सप्तकंचुक ब्रह्मांड । उसमें सप्तकंचुक पिंड । उस पिंड में उदंड । प्राणी रहते ॥२९॥
अपने देह का न समझे । फिर वे सारे क्या समझे । लोग होते उतावले । अल्पज्ञान से ॥३०॥
अणु रेणु जैसे जिनस । उनके लिये हम विराट पुरुष । हमारा उदंड आयुष्य । उनके हिसाब से ॥३१॥
उनकी रीति प्रथा उनके । नियम अनेक व्यवहार के । जो सभी कौतुक जाने । ऐसा कौन ॥३२॥
धन्य परमेश्वर की करनी । अंतःकरण में ना अनुमान में आती । व्यर्थ ही अहंता पापिनी । डालती घेरा ॥३३॥
अहंता छोड करें विवरण । देव की करनी कितनी महान । देखें तो मनुष्य का जीवन । है थोड़ा ॥३४॥
क्षणभंगुर काया थोड़ा जीवन । गर्व करते निष्कारण । गिरने को यह तन । समय ना लगे ॥३५॥
मलिन जगह में जन्म हुआ । और मलिन रस से ही पला । इसे कहते बड़ा । किस हिसाब से ॥३६॥
मैला और क्षणभंगुर । अखंड व्यथा चिंतातुर । लोग व्यर्थ ही कहते महान । पागलपन ॥३७॥
काया माया दो दिनों की । आदि अंत में ची ची । मुल्लमा चढाकर व्यर्थ ही । बडप्पन दिखाते ॥३८॥
ढांकने पर भी होता प्रकट । जहां तहां फैले दुर्गंध । जो कोई विवेक से होता विशाल । वही धन्य ॥३९॥
व्यर्थ ही क्यों झगड़े । अहंता की मस्ती तोड़े । विवेक से देव को ढूंढे । यह उत्तमोत्तम ॥४०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सूक्ष्मजीवनिरूपणनाम समास आठवां ॥८॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 09, 2023

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP