हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|आत्मदशक| ॥ समास पहला - चातुर्यलक्षणनाम ॥ आत्मदशक ॥ समास पहला - चातुर्यलक्षणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - निस्पृहव्यापलक्षणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - श्रेष्ठअतरात्मानिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पाचवां चंचललक्षणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - चातुर्यविवरणनाम ॥ ॥ समास सातवां - अधोर्धनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवा - सूक्ष्मजीवनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - पिंडोत्पत्तिनिरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - सिद्धांतनिरूपणनाम ॥ आत्मदशक - ॥ समास पहला - चातुर्यलक्षणनाम ॥ देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास पहला - चातुर्यलक्षणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ अस्थि मांस के शरीर । उसमें रहता जीवेश्वर । नाना विकारों से विकार । में प्रवीण होता ॥१॥ घना पोला स्वभाव । विवरण कर जानिये जीव । होना या ना होना सर्व । जीव जाने ॥२॥ एक का मांग मांग कर लेना । एक के बिना मांगे ही देना । प्रचीति से है सुलक्षण । पहचानें ॥३॥ जीव जीव में लगायें । आत्मा में आत्मा मिलायें । रह रहकर शोध लें। परांतर का ॥४॥ जनेऊ के धागे उलझे । ढिलाई से गुंथ गये । नेम से रखने पर शोभा दे । दृष्टि सम्मुख ॥५॥ वैसे ही मन से मन । विवेक से करे मिलन । ढीलेपन से अनुमान । होता है ॥६॥ अनुमान से अनुमान बढे । संकोच से कार्यभाग बिगडे । इस कारण प्रत्यय ये। पहले देखें ॥७॥ दूसरों के जी का समझे ना । परातर जान सके ना । वश्य होते लोक नाना । किस प्रकार ॥८॥ बुद्धि त्यागकर परे । लोग वशीकरण करते । अपूर्णता से ढीले पडते । ठाई ठाई ॥९॥ जगदीश है जगदांतर में । टोटके किस पर करें । जो कोई विवेक से विवरण करे । वही श्रेष्ठ ॥१०॥ श्रेष्ठ कार्य करे श्रेष्ठ । कृत्रिम करे वह कनिष्ठ । कर्मानुसार प्राणी नष्ट । अथवा भले ॥११॥ राजा जाते राजपथ से । चोर जाते चोरपंथ से । पागल ठगे अल्पस्वार्थ से । मूर्खतावश ॥१२॥ मूर्ख को लगे मैं सयाना । मगर वह पागल दीनता भरा । चातुर्य के चिन्ह नाना । चतुर जाने ॥१३॥ जो जगदंतर से मिला । वह जगदंतर ही हुआ । इहलोक और परलोक में उसे भला । क्या कमी ॥१४॥बुद्धि भगवंत की देन । मनुष्य कच्चा बुद्धि बिन । फुकट का राज्य छोड । भीख माग ॥१५॥ जो जो जहा हुये निर्माण । वे सब वहां हुये मान्य । अभिमानवश उलझन । में फंसे ठाई ठाई ॥१६॥ सारे ही कहते महान हम । सारे ही कहते सुंदर हम । सारे ही कहते चतुर हम । भूमंडल में ॥१७॥ ऐसा विचार जब मन में लाते । कोई भी छोटा ना कहलाये । ज्ञाता अनुमान में लाते । सबकुछ ॥१८॥अपने अपने साभिमान से । लोग चलते अनुमान से । मगर इसे विवेक से । देखना चाहिये ॥१९॥ झूठे का साभिमान लेना । सत्य सारा ही त्यागना । मूर्खता के लक्षण । रहते ऐसे ॥२०॥ सत्य का जो साभिमान । वह जानिये निराभिमान । न्याय अन्याय समान । कदापि नहीं ॥२१॥ न्याय याने वह शाश्वत । अन्याय याने वह अशाश्वत । स्वैर और नियमित । एक कैसे ॥२२॥ कोई भोगते प्रकट भाग्य । कोई तस्कर जाते भाग । एक की महंती प्रकट । एक की चोरी छिपी ॥२३॥आचारविचार बिन । जो जो करे वह सब थकान । धूर्त और विचक्षण । खोजें वही ॥२४॥उदंड बाजारी मिले । मगर उन्हें धूर्त ही सम्हाले । धूर्त के पास कुछ ना चले । बाजारियों की ॥२५॥ इस कारण मुख्य मुख्य । उससे ही करें सख्य । इस प्रकार असंख्य । मिलते बाजारी ॥२६॥ धूर्त को धूर्त पसंद पडे । धूर्त की-धूर्त ही प्रशंसा करे । पागल व्यर्थ ही घूमते । कार्य बिना ॥२७॥ धूर्त को धूर्तता की पहचान । उससे मिला मन से मन । मयर यह गुप्तरूपेण । करना चाहिये सर्वः ॥२८॥समर्थ का रखने पर मन । वहां आते उदंड जन । जन और सज्जन । आर्जव करते ॥२९॥ पहचान से पहचान साधें । बुद्धि से बुद्धि बोधें । नीतिन्याय से मार्ग रोकें । पाखंड का ॥३०॥ वेश धरें बावला । भीतर रहें नाना कला । सभी लोगों की आत्मियता । तोडें नहीं ॥३१॥निस्पृह और नित्य नूतनः । प्रत्यय का ब्रह्मज्ञान । प्रकट ज्ञाता सज्जन । दुर्लभ जग में ॥३२॥ नाना जिनस कण्ठस्थ । सबका अंतरंग होता शांत । चंचलता से तद्नंतर । सभी स्थानों पर ॥३३॥ एक जगह बैठे रहे । तो फिर सारा कारोबार ही डूबे । सावधानी से जिसे उसे । भेंट दें ॥३४॥ मेलजोल से मन रखें । चातुर्य के लक्षण ये । मनुष्य मात्र उत्तम गुणों से । समाधान पाये ॥३५॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे चातुर्यलक्षणनाम समास पहला ॥१॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP