हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|आत्मदशक| ॥ समास दूसरा - निस्पृहव्यापलक्षणनाम ॥ आत्मदशक ॥ समास पहला - चातुर्यलक्षणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - निस्पृहव्यापलक्षणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - श्रेष्ठअतरात्मानिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पाचवां चंचललक्षणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - चातुर्यविवरणनाम ॥ ॥ समास सातवां - अधोर्धनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवा - सूक्ष्मजीवनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - पिंडोत्पत्तिनिरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - सिद्धांतनिरूपणनाम ॥ आत्मदशक - ॥ समास दूसरा - निस्पृहव्यापलक्षणनाम ॥ देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास दूसरा - निस्पृहव्यापलक्षणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पृथ्वी पर मानव शरीर । छोटे बडे भरे अपार । पलटते मनोविकारानुसार । क्षण क्षण में ॥१॥ जितनी मूर्ति उतनी प्रकृति । सरीखी न रहती आदि अंति । नियम ही नहीं देखें कितनी । क्या कहकर ॥२॥ कई एक म्लेंच्छ हुये । कई एक फिरंगाने में लुप्त हुये । देश भाषा से रुद्ध हुये । कई एक ॥३॥ थोड़ा सा बचा महाराष्ट्र देश । राजकारण में लोग व्यस्त । भोजन के लिये नहीं अवकाश । उदंड काम ॥४॥ उलझे बहुत युद्धप्रसंग में । उस कारण उन्मत्त हुये । रात दिन करने लगे । युद्धचर्चा ॥५॥ व्यापारी को व्यासंग लगा । अवकाश खत्म हुआ। पेट धंधे में ही व्यस्त हुआ । निरंतर ॥६॥ षट्दर्शन नाना मत । पाखंड बढ़े बहुत । पृथ्वीपर यत्र तत्र । उपदेश देते ॥७॥ स्मार्थी और वैष्णवी ये । बचे खुचे ले गये सारे । देखो तो गड़बड़ ऐसे । उदंड हुई ॥८॥ कई कामना के भक्त । जगह जगह हुये आसक्त । युक्त अथवा अयुक्त । देखता कौन ॥९॥ इस गड़बड़ में गड़बड़ बहुत । किस किसने बढाया अपना पंथ । उसे वैदिक लोक । देख ना पाते ॥१०॥उस में भी हरिकीर्तन । वहां खींचे गये बहुत जन । प्रत्यय का ब्रह्मज्ञान । देखें कौन ॥११॥ इस कारण ज्ञान दुर्लभ । पुण्य से हुआ अलभ्य लाभ । विचारवंतों के लिये सुलभ । सभी कुछ ॥१२॥विचार समझा कहना ना आये । उदंड आती अड़चने ये । उपाय सोचो तो अपाय । आडे आते ॥१३॥ इनमें भी जो तीक्ष्ण । व्यर्थ ना जाने दें एक क्षण । धूर्त तार्किक विचक्षण । सभी को माने ॥१४॥ नाना जिनस उदंड पाठ । कहने लगा धड़ाधड़ । बिकट से की सरल बांट । सामर्थ्य बल से ॥१५॥ प्रबोध शक्ति के अनंत द्वार । जाने सभी के अभ्यंतर । निरूपण से तद्नंतर । चटक लगे ॥१६॥ सभी मत मतांतरे । प्रत्यय बोलकर सपाट करे । प्रथा त्याग स्वच्छ सुथरे । जनों में वेध लगाये ॥१७॥निश्चित भेदक वचन । अखंड देखे प्रसंगमान । उदास वृत्ति का आवरण । चुपचाप उठ जाता ॥१८॥ प्रत्यय बोलकर उठ गया जो । चटक लग गई लोगो को । नाना मार्ग छोड़ उसको । शरण आते ॥१९॥मगर वह कहीं दिखे ना । किसी स्थान पर मिले ना । वेष देखो तो हीनदीना । जैसा दिखे ॥२०॥ उदंड करे गुप्त रूप से । भिखारी समान स्वरूप से । वहां यश कीर्ति प्रताप है। मर्यादा लांघे ॥२१॥ स्थान स्थान पर भजन कराये । स्वयं वहां से निकल जाये । मत्सर मत की उलझने । लगने न दे ॥२२॥गुफा में जाकर रहे । वहां कोई भी ना देखे । सबकी चिंता वहन करे । सर्वकाल ॥२३॥ बीहड स्थल कठिन लोग। वहां रहे नेमस्त । सृष्टि के सकल लोग । खोजते आते ॥२४॥ वहां किसी की चले ना । अणुमात्र अनुमान होये ना । समुदाय कर राजनीति में । लोग लगाये ॥२५॥लोगों से लोग बढ़ाये । जिससे अमर्याद हुये । भूमंडल में सत्ता चले । गुप्त रूप मे ॥२६॥ ठाई ठाई समुदाय उदंड । मनुष्यमात्र होते आकृष्ट । चारों ओर फैले उदंड । परमार्थबुद्धि ॥२७॥ उपासना का गजर । जगह जगह पर अपार । प्रत्यय से प्राणीमात्र । मुक्त किये ॥२८॥ जाने ऐसी युक्तिया अनेक । जिससे सयाने होते लोग। जहां वहां प्रत्यय हो सुदृढ । प्राणी मात्रों को ॥२९॥ऐसी कीर्ति करके जाये। तभी संसार में आये । दास कहे स्वभाविकता से । कहा संकेतरूप में ॥३०॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसवादे निस्पृहव्यापलक्षणनाम समास दूसरा ॥२॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP