हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|आत्मदशक| ॥ समास चौथा - शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम ॥ आत्मदशक ॥ समास पहला - चातुर्यलक्षणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - निस्पृहव्यापलक्षणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - श्रेष्ठअतरात्मानिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पाचवां चंचललक्षणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - चातुर्यविवरणनाम ॥ ॥ समास सातवां - अधोर्धनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवा - सूक्ष्मजीवनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - पिंडोत्पत्तिनिरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - सिद्धांतनिरूपणनाम ॥ आत्मदशक - ॥ समास चौथा - शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम ॥ देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास चौथा - शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ वृक्ष उपजते पृथ्वी से । लकडी होती वृक्ष से । आगे लकडी भस्म होने से । फिर पृथ्वी ही होती ॥१॥ पृथ्वी से बेल होती । नाना जिनसों में फैलती । सूखकर सड़कर होप्ती । फिर से पृथ्वी ही ॥२॥ नाना फसल से नाना अन्न । मनुष्य करते भोजन । नाना विष्ठा नाना वमन । पृथ्वी ही होते ॥३॥ नाना पक्ष्यादिकों ने भक्षण किया । फिर भी आगे वैसा ही हुआ । सूखकर भस्म हो गया । पुनः पृथ्वी ॥४॥ सुनो मनुष्य मरते ही । कृमि भस्म या मिट्टी । ऐसी अनेक काया मिटती । आगे पृथ्वी ॥५॥ नाना तृण पदार्थ सड़ते । आगे वे मिट्टी बनते । नाना कीड़े मर जाते । पुनः पृथ्वी ॥६॥ पदार्थ खचाखच भरे अपार । कितना कहें विस्तार । पृथ्वी बिना आधार । है किसे ॥७॥ पेड़ पत्तियां और तृण । पशु के खाने पर बनता गोबर । खाद मूत्र भस्म मिलाकर । पुनः पृथ्वी ॥८॥उत्पत्ति स्थिति संहार होते जिसे । वह सारे मिल जाते पृथ्वी से । जो जो आते और मिटते । पुनः पृथ्वी ॥९॥ नाना बीजों के राशी । बढकर गगन से भिडती । आगे अंत मे मिल जाती । पृथ्वी में ॥१०॥ लोग नाना धातु गाडते । बहुत दिनों बाद मिट्टी बनते । सुवर्ण और पाषाण की गति है। ऐसी ही ॥११॥मिट्टी से होता सुवर्ण । और मृत्तिका ही होती पाषाण । महाअग्नि संग होकर भस्म । पृथ्वी ही होती ॥१२॥ सुवर्ण से जरी बनती । जरी अंत में सड जाती । रस बनकर पिघलती । पुन्हा पृथ्वी ॥१३॥ पृथ्वी से धातु उपजते । अग्निसंग रस बनते । उस रस के जग में होते । कठिन रूप ॥१४॥ नाना जलों से गध छूटे । वहा पृथ्वी का रूप प्रकटे । दिनोंदिन जल सूखे । रहती पृथ्वी ॥१५॥ पत्र पुष्प फल आते । नाना जीव खाकर जाते । वे जीव मरने पर पृथ्वी होते । नियम ही है ॥१६॥जितना कुछ भी बना आकार । उसे पृथ्वी का आधार । आते जाते प्राणीमात्र । अंततः पृथ्वी ॥१७॥ ये सब कितना कहें । विवेक से सारा ही जानें । उत्पत्ति विनाश का समझें । मूल ऐसे ॥१८॥ आप सूखकर पृथ्वी हुई । पुनः आप में ही लय हुई । अग्नियोग से भस्म हुई । इस कारण ॥१९॥ आप हुआ तेज से । आगे तेज ने सुखाया । उसे । वह तेज उपजा वायु से । आगे वायु झपटे उसे ॥२०॥वायु गगन से निर्माण हुआ । आगे गगन में ही विलीन हुआ । उत्पत्ति विनाश को ऐसा देखो भली तरह ॥२१॥ जो जो जहां से निर्माण होता । वह वहीं विलीन होता । इस रीति से नाश होता । पंचभूतों का ॥२२॥ भूत याने जो निर्माण हुआ । पुनः पश्चात नष्ट हुआ । आगे शाश्वत जो बचा । वह परब्रह्म ॥२३॥ वह परब्रह्म जब तक समझे ना । तब तक जन्ममृत्यु चूके ना । चत्वार खाणी के जीव नाना । होना पड़ता ॥२४॥ जड़ का मूल वह चंचल । चंचल का मूल वह निश्चल । निश्चल को नहीं मूल । देखें ठीक से ॥२५॥ हो चुका वह पूर्वपक्ष । दृश्यनिरसन याने सिद्धांत । पक्षातीत जो सर्वव्याप्त । वह परब्रह्म ॥२६॥ यह जानें प्रचीति से । संकेत दृढ करें विचार से । विचार बिन श्रम करने से । मूर्खता होगी ॥२७॥ ज्ञानी दब गया संकोच से । निश्चल परब्रह्म कैसे उसे । व्यर्थ ही गड़बड़ करे । माया में ॥२८॥ माया निःशेष नष्ट हुई । आगे स्थिति कैसी रही । विचक्षण ने विवरण कर देखनी । चाहिये स्वय ॥२९॥निःशेष माया का निरसन । होते ही आत्मनिवेदन । वाच्याश नही विज्ञान । जानें कैसे ॥३०॥ लोगों की बातों में जो आया । वह अनुमान में ही डूब गया । इस कारण प्रत्यय को भला । पुनः पुनः देखें ॥३१॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसवादे शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम समास चौथा ॥४॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP