हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|आत्मदशक| ॥ समास तीसरा - श्रेष्ठअतरात्मानिरूपणनाम ॥ आत्मदशक ॥ समास पहला - चातुर्यलक्षणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - निस्पृहव्यापलक्षणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - श्रेष्ठअतरात्मानिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पाचवां चंचललक्षणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - चातुर्यविवरणनाम ॥ ॥ समास सातवां - अधोर्धनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवा - सूक्ष्मजीवनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - पिंडोत्पत्तिनिरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - सिद्धांतनिरूपणनाम ॥ आत्मदशक - ॥ समास तीसरा - श्रेष्ठअतरात्मानिरूपणनाम ॥ देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास तीसरा - श्रेष्ठअतरात्मानिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ मूल से इधर उधर सारा ! फैला पचीकरण पसारा । इस में साक्षीत्व का डोरा । वह भी तत्त्वरूप ॥१॥ दोनों ओर जमी सेना । उच्च सिंहासन पर राजा । समझे विचार इसका । अंतर्याम में ॥२॥ देहमात्र अस्थिमास का । वैसे ही जानें नृपति का । मूल से लेकर सृष्टि का । तत्त्वरूप ॥३॥ राया की सत्ता से चलते । परंतु पंचभूत ही सारे । मूलतः अधिक ज्ञातृत्व का है। अधिष्ठान वह ॥४॥विवेक से बहुत विशाल हुये । इस कारण अवतारी कहे गये। मनु चक्रवर्ती हुये। इसी न्याय से ॥५॥ जहां उदड ज्ञातृत्व । वे ही उतने सदेव । थोडे ज्ञातृत्व से निर्देव । होते लोग ॥६॥ व्याप को समेटते जाते । धक्के चपेटे सहते । उसने प्राणी सदेव होते । देखते देखते ॥७॥ ऐसा ये अब भी होता । मूर्ख लोगों को नहीं समझता । विवेकी मनुष्य समझता । सब कुछ ॥८॥ बुद्धि के पास छोटा बडा । सामान्य लोगों को समझे ना । पहले जो उपजा । बडा कहते उसे ॥९॥ आयु में छोटा नृपति' । वृद्ध उसे नमस्कार करते। विचित्र विवेक की गति । समझनी चाहिये ॥१०॥सामान्य लोगों का ज्ञान । वह सारा ही अनुमान । दीक्षा परंपरा के लक्षण । होते ही ऐसे ॥११॥ नहीं कहें तो किसे । सामान्य को क्या समझे । किस किस को कहे । कितना कुछ ॥१२॥ छोटे का होता भाग्य उदित । तो उसे मानते तुच्छ । इस कारण मेलजोल के लोग । दूर रखें ॥१३॥ निश्चित समझे ना वचन । निश्चित आये ना राजकरण । व्यर्थ ही धरते बडप्पन । मूर्खतावश ॥१४॥ निश्चित कुछ भी समझे ना । निश्चित कोई भी माने ना । पहले जन्मा उसका बडप्पन । कौन माने ॥१५॥बडे में बडप्पन नहीं । छोटे में छोटापन नहीं । ऐसा जो बोले उसमें नहीं । सयानापन ॥१६॥ गुण के बिना बडप्पन । यह तो सारा ही अप्रमाण । इसकी प्रचीत प्रमाण । बडप्पन मे ॥१७॥ तथापि अग्रजों का मान रखें । अग्रज अपना बड़प्पन समझे । ना समझे तो आगे कष्ट आयेंगे । बड़प्पन से ॥१८॥ तस्मात अग्रज अंतरात्मा । जहां चेता वहीं महिमा । यह तो प्रकट ही है हमें । दोष नहीं ॥१९॥ कोई एक इस कारण । विवेक से सीखे सयानापन । विवेक ना रखे तो सम्मान । टूट जाता ॥२०॥सम्मान टूटा याने गया । जन्म लेकर क्या किया । बलात् सकट में डाल दिया । अपने आप को ॥२१॥सभी औरतें गालिया देतीं । सकट में गिरा ऐसा कहतीं । मूर्खता की प्राप्ति । खड़ी हुई समक्ष ॥२२॥ ऐसा कोई भी ना करें । सब सार्थक ही करें । न समझे तो विवरण करें । ग्रथांतर में ॥ २३॥सयाने को कोई तो बुलाते । मूर्ख को लोग भगा देते । जीव को यदि सपत्ति चाहिये । तो सयाना बनें ॥२४॥ अजी इस सयानेपन के लिये । बहुतों के कष्ट करने पड़ते । परंतु सयानापन सीखे । यह उत्तमोत्तम ॥२५॥जो मान्य हुआ बहुतों को । वह सयाना हुआ समझो । जनों में सयाने मनुष्य को । क्या कमी ॥२६॥अपना हित न करे लौकिकीं। वह जानिये आत्मघातकी । इस मूर्ख समान पातकी । अन्य नहीं ॥२७॥स्वयं संसार में दुःखी होता । लोगों की डांट खाता । जनों में जो सयाना रहता । वह ऐसा न करे ॥२८॥साधकों को सिखाया सहजता से । मान्य हो तो लें सुख से । अमान्य हो तो त्याग दें इसे । एक ओर ॥२९॥ आप श्रोताओं परम दक्ष । अलक्ष्य में लगाते लक्ष्य । यह तो सामान्य प्रत्यक्ष । जानते हो ॥३०॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे श्रेष्ठअंतरात्मानिरूपणनाम समास तीसरा ॥३॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP